शनिवार का व्रत राहु-केतु की कुदृष्टि से बचाता है, जाने विशेष पूजा विधि और महत्व
हिंदू धर्म में हर दिन किसी न किसी भगवान को समर्पित माना गया है. शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित है. शनिदेव को कर्मफल दाता कहा जाता है
हिंदू धर्म में हर दिन किसी न किसी भगवान को समर्पित माना गया है. शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित है. शनिदेव को कर्मफल दाता कहा जाता है. मान्यता है कि शनिदेव जिससे प्रसन्न होते हैं, उसे रंक से राजा बना देते हैं, लेकिन अगर वे कुपित हो जाएं तो व्यक्ति को राजा से रंक बनते भी देर नहीं लगती. अगर आप भी शनिदेव की कृपा पाना चाहते हैं तो शनिवार के दिन शनिदेव का व्रत रखें. शनिदेव की कृपा से व्यक्ति को सुख-समृद्धि, मान-सम्मान और धन-यश प्राप्ति होती है और शनि संबन्धी कष्ट दूर हो जाते हैं.
शनिवार के व्रत 7, 11, 21, 51 करने चाहिए और इसके बाद व्रत का उद्यापन कर देना चाहिए. व्रत की शुरुआत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के शनिवार से कर सकते हैं. लेकिन श्रावण मास में इसे शुरू करना अत्यंत शुभ माना जाता है. यहां जानिए व्रत की विधि और महत्व के बारे में.
व्रत के दिन सुबह सूर्योदय से पहले यानी ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें. इसके बाद मन में शनिदेव का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें. इसके बाद शनिदेव की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं. काला तिल, काली दाल, फूल, धूप, काला वस्त्र आदि अर्पित करें और सरसों के तेल का दीपक जलाएं. शनि के दस नाम कोणस्थ, कृष्ण, पिप्पला, सौरि, यम, पिंगलो, रोद्रोतको, बभ्रु, मंद, शनैश्चर को पूजा करते समय उच्चारण करें. शनि मंत्र शनैश्चर नमस्तुभ्यं नमस्ते त्वथ राहवे, केतवेअथ नमस्तुभ्यं सर्वशांतिप्रदो भव का जाप करें और शनि चालीसा पढ़ें. अंत में शनिदेव की आरती गाएं और पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाकर एक सरसों के तेल का दीपक जलाएं. इसके बाद किसी जरूरतमंद को भोजन कराएं. खुद दिनभर उपवास रखें. आप चाहें तो फलाहार ले सकते हैं. शाम के समय पूजा के बाद अपना व्रत खोलें.