खाद्य तेल में सस्ता होने के कारण सरसों की मांग में आई तेजी, जानें नया भाव
रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद भारत में खाद्य तेलों का आयात बहुत प्रभावित हुआ है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद भारत में खाद्य तेलों का आयात बहुत प्रभावित हुआ है। भारत मे सबसे ज्यादा खाद्य तेल का आयात इंडोनेशिया और उसके बाद मलेशिया से होता है, लेकिन विश्व संकट के कारण इन देशों ने खाद्य तेलों के आयात में कमी कर दी है। वहीं, मौसमी कारणों की वजह फसल कमजोर होने के कारण अमेरिका और ब्राजील जैसे देशों से सोयाबीन तेलों के आयात में कमी देखी जा रही है
रूस और यूक्रेन से भारत को सूरजमुखी का तेल का आयात करता था, जो वर्तमान में बंद है। अभी के दौर में सभी खाद्य तेलो में सूरजमुखी का तेल सबसे महंगा तेल है। हालांकि, बाकि खाद्य तेलों की कीमत भी कम नहीं है। सभी खाद्य तेल में सबसे सस्ता होने के कारण सरसों की मांग में तेजी आ रही है, लेकिन सरसो की आवक की स्थिति 6 से 7 लाख तक के सीमित दायरे में बने होने के कारण, सरसों के मंडी भाव में कभी तेजी तो कभी गिरावट देखने को मिल रही है।
वर्तमान में देखा जाए तो सरसों में तेजी और मंदी का दौर एक साथ बना हुआ है। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, सरसों का ताज़ा भाव 6,500 रुपये बाजार में आ चुका है, चूंकि आवक सामान्य स्थिति में है। माना जा रहा है कि जैसे ही आवक में थोड़ी कमी होगी, सरसो के भाव बढ़ने के कगार पर होंगे, भाव 7,000 रुपये तक भी जाने का अनुमान है।
वही दूसरी ओर देखेंगे तो सरसों तेल के खपत वाले बड़े-बड़े प्लांट में स्टॉक की वजह से कुछ समय के लिए सरसो तेल की खरीददारी में कमी आई है, इसके कारण भी किसी-किसी मंडी में ₹50 से ₹100 की गिरावट देखा जा रहा है, लेकिन यें गिरावट लंबे समय तक नहीं रहेगी, क्योंकि बाजार में जितनी मांग है, उतनी सप्लाई नहीं हो पा रही है। व्यापारियों के पास तो सरसों तेल का स्टॉक ज्यादा नहीं है। कुछ किसानों के पास सरसो की उपलब्धता है, लेकिन वो भी मंडी भाव में खाद्य तेलों के बढ़ती कीमत को देखकर सरसो के बढ़ते भाव पर नजर बनाए रखे हैं, ताकि उन्हें अच्छा लाभ मिल सके।
विदेशी स्तर की बात करें तो सोयाबीन की फसल मौसमी कारणों से काफी प्रभावित हुई है, इसलिए माना जा सकता है कि विदेशों में भी सरसों तेल की मांग भारत से ही पूरा हो पायेगा, ऐसी स्थिति में भी सरसो के भाव बढ़ने की पूरी संभावना है।