x
रूस में भी ऊर्जा की खपत बढ़ गई है और कोरोना महामारी के दौरान यहां भी उत्पादन पर असर पड़ा है।
करीब-करीब पूरी दुनिया ऊर्जा संकट का सामना कर रही है। कोयले की कमी से ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना एक बड़ी चुनौती बन गई है। सवाल यह है कि चीन व अन्य यूरोपीय देशों में ऊर्जा संकट क्यों गहराया। इसके पीछे बड़ी वजह क्या है ? क्या चीन की खदानों में कोयला खत्म हो गया है या चीन में कोयले की किल्लत उत्पन्न हो गई है ? क्या दुनिया में तेजी से बदल रहे सियासी समीकरण में इसकी कोई बड़ी भूमिका है। आइए जानते हैं कि ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा की राय।
आखिर अंधेरे में क्यों डूबा चीन ?
देखिए, चीन में ऊर्जा संकट के लिए वह खुद से ही जिम्मेदार है। ऐसा नहीं कि चीन में कोयला का उत्पादन बंद हो गया है या चीन की खदानों में कोयला खत्म हो गया है। दरअसल, चीन अपनी ऊर्जा संयंत्रों के लिए आस्ट्रेलिया से बड़ी तादाद में कोयला लेता था, लेकिन आकस के गठन के बाद दोनों देशों के बीच दूरी बढ़ी। आस्ट्रेलिया और अमेरिका की नजदीकी चीन को नागवार गुजरी। चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने आस्ट्रेलिया से कोयले की आपूर्ति बंद कर दी। चीन सरकार ने यह फैसला अचानक से लिया और आस्ट्रेलिया से कोयले की आपूर्ति तत्काल बंद कर दी गई। इसका असर चीन में कोयले से चलने वाले संयंत्रों पर पड़ा। कोयला पर निर्भर चीनी संयंत्र बंद होने लगे। इसका सीधा असर ऊर्जा उत्पादन पर पड़ा। आकस, दरअसल आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका का एक सुरक्षा गठबंधन है, जिसे चीन अपने खिलाफ मानता है। आकस के गठन के बाद चीन ने आस्ट्रेलिया से अपने संबंधों को तोड़ने के क्रम में यह कदम उठाया। चीन ने आस्ट्रेलिया से कोयला लेना बंद कर दिया।
यूरोपीय देशों में ऊर्जा की कमी के क्या सियासी कारण है ?
जी, बिल्कुल। दरअसल, यूरोपीय देश अपनी प्राकृतिक गैसों की आपूर्ति के लिए रूस पर निर्भर रहते हैं। इन यूरोपीय देशों की 43 फीसद प्राकृतिक गैस की आपूर्ति रूस से होती है। हालांकि, दुनिया में ऊर्जा संकट के कारण रूस से होने वाली इस आपूर्ति में कमी आई है। रूस से पाइप लाइन के जरिए यूरोपीय देशों को प्राकृतिक गैस पहुंचाई जाती है। यह पाइपलाइन यूक्रेन और पोलैंड से होकर जाती है। इन दोनों देशों से रूस के संबंधों में तनाव रहता है। रूस ने गैस आपूर्ति को बेहतर करने के लिए नार्ड स्ट्रीम पाइप लाइन योजना तैयार की है। लेकिन सियासी समीकरणों के चलते कई यूरोपीय देशों ने अभी तक इस पाइप लाइन योजना को मंजूरी नहीं दी है। अमेरिका भी इस पाइप लाइन का विरोधी रहा है। हालांकि, अमेरिका का तर्क है कि अगर सीधी पाइप लाइन योजना को मंजूरी दे दी गई तो यूक्रेन और पोलैंड को इसका आर्थिक खमियाजा भुगतना होगा।इन दोनों देशों को आर्थिक नुकसान होगा।
इस ऊर्जा संकट के लिए कोराना महामारी कितनी जिम्मेदार ?
ऊर्जा संकट के लिए कोरोना महामारी एक बड़ा कारक है। इसको इस तरह से समझिए, भारत समेत दुनिया में कोरोना महामारी के दौरान लाकडाउन और सरकारी प्रतिबंधों के चलते कई उद्योग-धंधे बंद हो गए। इन उद्योग धंधों के बंद होने से यहां खपत होने वाली ऊर्जा ठप हो गई। इससे ऊर्जा की मांग में भारी कमी आई। क्योंकि बिजली का संग्रह नहीं किया जा सकता, इसलिए ऊर्जा संयंंत्रों ने कम उत्पादन का फैसला लिया। इसके चलते कोयले की मांग में भारी गिरावट आई। इस गिरावट के कारण कोयला खदानों में भी मांग की कमी देखी गई। लेकिन कोरोना महामारी के एक बार फिर उद्योग धंधे पटरी पर लौटे। इसके साथ ऊर्जा की खपत में तेजी से इजाफा हुआ। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ऊर्जा की मांग में तीन गुना का इजाफा हुआ है। लेकिन किसी ने इतनी ज्यादा मांग की उम्मीद नहीं की थी इससे मांग और आपूर्ति का समीकरण बदल गया। रूस में भी ऊर्जा की खपत बढ़ गई है और कोरोना महामारी के दौरान यहां भी उत्पादन पर असर पड़ा है।
Next Story