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नॉर्थ पाकिस्तान का ये हिस्सा है रहस्यमय, महिलाएं 60 से 90 वर्ष तक कर सकती हैं.गर्भाधान

Apurva Srivastav
8 March 2021 1:53 PM GMT
नॉर्थ पाकिस्तान का ये हिस्सा है रहस्यमय, महिलाएं 60 से 90 वर्ष तक कर सकती हैं.गर्भाधान
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नॉर्थ पाकिस्तान, पाकिस्तान का वह हिस्सा है जो रहस्य से भरा हुआ है. नॉर्थ पाकिस्तान की हुंजा वैली भी इसी रहस्य का हिस्सा है

नॉर्थ पाकिस्तान, पाकिस्तान का वह हिस्सा है जो रहस्य से भरा हुआ है. नॉर्थ पाकिस्तान की हुंजा वैली भी इसी रहस्य का हिस्सा है और यहां के लोग 120 साल से लेकर 150 साल तक जिंदा रह सकते हैं. जबकि पाकिस्तान की औसत आयु केवल 67 साल है. ब्रिटिश अखबार टेलीग्राफ के मुताबिक हुंजा समुदाय अपने आप में रिसर्च का विषय है.

हुंजा वैली में रहने वाले लोगों की सेहत का राज अभी तक दुनिया के ज्यादा हिस्सों तक नहीं पहुंचा है. हालांकि हुंजा के लोगों की आयु पर कई बार बहस हो चुकी है. विशेषज्ञों की मानें तो यहां रहने वाले लोग दुनिया से दूर एक प्रकार के आइसोलेशन में रह रहे हैं और उनकी कुछ खास आदते हैं जो उन्हें और ज्यादा सेहतमंद बनाती हैं.

90 साल की उम्र में भी बच्चे
माना जाता है कि हुंजा समुदाय के लोग असाधारण तौर पर ज्‍यादा उम्र होने तक बच्चे पैदा कर सकते हैं. वो न तो कभी बीमार पड़ते हैं और कैंसर जैसी बीमारियां भी उन्‍हें छू नहीं सकती हैं. एक वेबसाइट के मुताबिक हुंजा समुदाय की महिलाएं 60 से 90 वर्ष की आयु तक गर्भाधान कर सकती हैं.
यह एक ऐसा दावा है जिस पर शायद ही कोई साधारण महिला यकीन कर पाए. हुंजा घाटी, नॉर्थ पाकिस्‍तान के एकदम सूनसान इलाके में है. यहां के लोग कोई भी प्रोसेस्ड फूड नहीं खाते हैं.

उनके खान पान में सब्जियां, दूध, अनाज और फल खासतौर पर खूबानी को खासतौर पर शामिल करते हैं. ग्‍लेशियर का पानी पीने के साथ-साथ नहाने के काम भी आता है.
कैंसर जैसी बीमारी से दूर
खूबानी वह फल है जिसे हुंजा समुदाय के लोग काफी शौक से खाते हैं. कहते हैं कि इस फल के जूस के सहारे वो कई माह तक जिंदा रह सकते हैं. खूबानी के बीज में एमीग्‍डालिन पाया जाता है और ये विटामिन बी-17 का सोर्स होता है.
इसकी वजह से यहां के लोग कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों से भी दूर रहते हैं. इनके खान-पान में कच्‍चे फल और सब्जियों को प्रयॉरिटी दी जाती है तो ये लोग मीट बहुत कम खाते हैं. यह जगह बाकी दुनिया से कटी हुई है और इस वजह से लोगों को साफ हवा भी आसानी से मिल जाती है.

कहा जाता है कि हुंजा रोजाना योगा करते हैं जिसमें सांस लेने की टेक्निक के साथ ही ध्‍यान भी शामिल होता है. यहां के लोग एनर्जी मैनेजमेंट और रिलैक्‍सेशन पर भरोसा करते हैं. लगातार काम करने के बीच ये आराम करने को प्राथमिकता देते हैं और ऐसी हर बात से दूर रहते हैं जो इमोशनल स्‍ट्रेस को बढ़ाने वाली हो.
हॉलीवुड की फिल्‍म में हुआ जिक्र
सन् 1930 में एक फिल्‍म रिलीज हुई थी लॉस्‍ट होराइजन जिसमें इस समुदाय का जिक्र था. यही फिल्म जेम्स हिल्टन के एक नॉवेल पर आधारित थी और इसमें शांगरी-ला को पहली बार दिखाया गया था.

फिल्म में इंग्लिश सेना के काफिले को चीन से आते हुए दिखाया गया था और ये हिमालय के क्षेत्र में आकर रुकता है. फिल्‍म में स्‍थानीय लोगों की मुलाकात उस क्रू से होती है और बर्फीले तूफान में हुंजा में उन्‍हें शरण मिलती है.
आज भी हैं परियां
यह समुदाय इस कदर रहस्‍य से भरा हुआ है कि आज तक यहां पर परियां हैं, इस बात पर यकीन किया जाता है. लोग मानते हैं हुंजा वैली के आसपास आज भी परियां रहती हैं और ये स्‍थानीय लोगों की बाहरी खतरों से रक्षा करती हैं.
भेड़, बकरियां चराने वाले चरवाहों की मानें तो जब उनके जानवरी ऊंचाई वाली जगहों पर जाने लगती हैं तो परियों की आवाज उन्‍हें सुनाई देती है. समुदाय के एक व्यक्ति ने कुछ साल पहले एक मैगजीन को दिए इंटरव्यू में बताया गया था कि परियां इंसानों जैसी ही दिखती हैं और सुनहरे बाल और हरे रंग के कपड़ों में रहती हैं.


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