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जिससे पकिस्तान गरीबी और कुपोषण से बाहर निकलने में विफल है।
पकिस्तान में खाद्य असुरक्षा हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है। देश में जिस रफ्तार से आबादी में बढ़ोतरी हो रही है, उससे तेज़ गति से गरीबी की भी मार पड़ रही है। देश में बढ़ती खाद्य असुरक्षा राष्ट्रीय मुद्दा बन गई है। खाद्य सामानों में आई कमी के चलते आबादी का एक बड़ा हिस्सा कुपोषण का शिकार हो रहा है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) ने पाकिस्तान को 24.7 के स्कोर के साथ 116 देशों में से 92 वें स्थान पर रखा है, जिसका मतलब ये है कि देश के भूख के स्तर को 'गंभीर' श्रेणी में रखा गया है।
पाकिस्तान कर रहा है कुपोषण संबंधित समस्याओं का सामना
पकिस्तान खाद्य कमियों के चलते कुपोषण संबंधित समस्याओं का सामना कर रहा है। खाद्य सामग्री में लगातार हो रही कमी से लोग पोषक और गुणकारी भोजन से दूर हो रहे हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने देश को अल्पपोषण, बच्चे की बर्बादी, और पांच वर्ष से कम मृत्यु दर में शामिल किया है। आपको बता दें कि जीएचआई खाद्य उपलब्धता, इसे खरीदने की शक्ति, प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा, खाद्य गुणवत्ता, आदि के आधार पर देशों का स्थान तय करता है।
वैश्विक भूख पर कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्थुंगरहिल्फ़ द्वारा संयुक्त रुप से प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है, 'जैसा कि वर्ष 2030 करीब आ रहा है, शून्य भूख के लिए दुनिया की प्रतिबद्धता की उपलब्धि दुखद रूप से दूर है'
डॉन की रिपोर्ट अनुसार, पिछले 3 वर्षों में पाकिस्तान की दो अंकों की खाद्य मूल्य में मुद्रास्फीति, घटती आय के साथ पाकिस्तान को और अधिक असुरक्षित बना दिया है, जिससे देश गरीबी के दलदल में धसता जा रहा है।
वहीं दूसरी ओर विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) का अनुमान है कि पाकिस्तान का लगभग 43 फीसद खाद्य असुरक्षित है और उनमें से 18 फीसद और तेजी से घट रहे हैं। डब्ल्यूएफपी ने कुपोषण पर तर्क देते हुए कहा कि पौष्टिक आहार प्राप्त करने में लोग असमर्थ है, जिससे पकिस्तान गरीबी और कुपोषण से बाहर निकलने में विफल है।
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