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उन्होंने सिर्फ यह बताया कि इन प्रदूषकों के कारण मस्तिष्क में इंफ्लेमेशन यानी सूजन हो सकता है, जिससे मानसिक समस्याएं खड़ी हो सकती हैं।
वायु प्रदूषण का बच्चों की सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को लेकर एक नया अध्ययन किया गया है। इसमें पाया गया है कि वायु प्रदूषण बच्चों की मानसिक सेहत पर भारी पड़ सकता है। अध्ययन के अनुसार, बहुत अधिक वायु प्रदूषण वाले महौल का संबंध बच्चों में मानसिक समस्याओं से पाया गया है। उच्च स्तर के वायु प्रदूषण में रहने से बच्चों में ऐसी प्रवृत्ति बनने का 50 फीसद खतरा ज्यादा पाया गया है, जिससे वे जीवन में आगे चलकर खुद को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इंग्लैंड की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी और डेनमार्क की आर्हस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया है। शोधकर्ताओं के अनुसार, डेनमार्क में दस वर्ष से कम उम्र के करीब 14 लाख बच्चों का परीक्षण किया गया। यह पाया गया कि उच्च स्तर के नाइट्रोजन डाइआक्साइड वाले माहौल में रहने वाले बच्चे वयस्क होने पर खुद को नुकसान पहुंचा सकते हैं। दूषित हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 वाले माहौल में लंबे समय तक रहने से मानसिक समस्या का खतरा 48 फीसद ज्यादा पाया गया।
नाइट्रोजन डाइआक्साइड का उत्सर्जन मुख्य रूप से कारों से होता है। जबकि डीजल और पेट्रोल के जलने से पीएम 2.5 का उत्सर्जन होता है। ये प्रदूषक तत्व हृदय और फेफड़ों की बीमारियों के प्रमुख कारक माने जाते हैं। शोधकर्ताओं ने यह विवरण नहीं दिया कि ये प्रदूषक किस तंत्र के जरिये मानसिक समस्याओं का कारण बनते हैं। उन्होंने सिर्फ यह बताया कि इन प्रदूषकों के कारण मस्तिष्क में इंफ्लेमेशन यानी सूजन हो सकता है, जिससे मानसिक समस्याएं खड़ी हो सकती हैं।
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