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जानें आखिर क्‍यों भारत सरकार ने पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक को किया खारिज? क्‍या है पर्यावरणविदों की राय

Renuka Sahu
14 Jun 2022 5:34 AM GMT
Know why the Government of India rejected the Environmental Performance Index? What is the opinion of environmentalists
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फाइल फोटो 

पर्यावरणीय प्रदर्शन के मामले में क्‍या भारत की स्थिति सच में बहुत नाजुक है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पर्यावरणीय प्रदर्शन के मामले में क्‍या भारत की स्थिति सच में बहुत नाजुक है। पर्यावरणीय प्रदर्शन के मामले में भारत को 180 देशों की सूची में सबसे निचले पायदान पर रखा गया है। इस सूचकांक को भारत सरकार ने मानने से इन्‍कार कर दिया। इस रिपोर्ट को सरकार ने खारिज कर दिया है। आखिर इस सूचकांक के बारे में पर्यावरणविदों की क्‍या राय है। वह इस रिपोर्ट को क्‍यों खारिज करते हैं। आज इस कड़ी में हम आपको बताएंगे कि पर्यावरणविदों की पर्यावरण संरक्षण को लेकर क्‍या बड़ी चिंता है।

दक्षिण एशिया की स्थिति नाजुक
पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 की रिपोर्ट में सबसे निचले पायदान पर भारत है। इस रिपोर्ट के मुताबिक सबसे कम अंक भारत को मिले हैं। दक्षिण एशिया में भारत की स्थिति सबसे नीचे है। इस लिस्‍ट में भारत (18.9), म्यांमार (19.4), वियतनाम (20.1), बांग्लादेश (23.1) और पाकिस्तान (24.6) को मिले हैं। चीन 28.4 अंकों के साथ 161वां स्थान पर है। इस रिपोर्ट की खास बात यह है कि कम अंक पाने वाले ज्यादातर वह देश हैं, जिन्होंने स्थिरता पर आर्थिक विकास को प्राथमिकता दी है। इसके अलावा इस सूची में सबसे निचले पायदान पर वो मुल्‍क हैं जो अशांति और अन्य संकटों से जूझ रहे हैं। ईपीआई डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि देश की स्थिरता को बढ़ाने में वित्तीय संसाधन, सुशासन, मानव विकास और नियामक गुणवत्ता मायने रखती है।
भारत सरकार ने रिपोर्ट का खारिज किया
1- हालांकि, भारत सरकार ने पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 की रिपोर्ट का पूरी तरह से खारिज कर दिया है। भारत सरकार का कहना है इस रिपोर्ट में कई खामियां हैं। सरकार ने इसके आकलन के पैमाने और तरीकों को लेकर सवाल खड़े किए हैं। पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया था कि हाल ही में जारी पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में खामियां हैं। इस सूचकांक में कई सूचक निराधार मान्यताओं पर आधारित हैं। प्रदर्शन का आंकलन करने के लिए इस्तेमाल किए गए कुछ सूचक अनुमानों और अवैज्ञानिक तरीकों पर आधारित हैं।
2- पर्यावरणविद विजयपाल बघेल का कहना है कि यह सूचकांक विकसित देशों द्वारा तैयार किया जाता है। इस सूचकांक के निर्धारण में विकसित देशों द्वारा तय किए गए मानक होते हैं। इन मानकों में विकासशील और पिछड़े देशों के समक्ष चुनौतियों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है। उन्‍होंने कहां कि भारत दुनिया के उन मुल्‍कों में शामिल हैं, जहां पर्यावरण संरक्षण के लिए बाकायदा कानून हैं। उन्‍होंने कहा कि प्रकृति संरक्षण हमारी सभ्‍यता और संस्‍कृति दोनों में है। हमारे पर्यावरण में मौजूद नदियों, पहाड़ों एवं वृक्षों को हम केवल सहेज कर ही नहीं रखते बल्कि उन्‍हें पूजते भी हैं।
3- उन्‍होंने कहा कि हालांकि पर्यावरण का मुद्दा पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती है। अगर समय रहते हम नहीं चेते तो यह धरती रहने लायक नहीं रहेगी। पर्यावरणविद बघेल का कहना है कि दूसरों पर आरोप लगाने से पहले विकसित मुल्‍कों को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। विकसित देशों अपनी जिम्‍मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकते। विकसित मुल्‍कों ने अपने विकास पथ पर पर्यावरण की बड़ी क्षति की है। इसलिए उनको इस दिशा में बड़ी पहल करनी चाहिए। विकसित मुल्‍क अपनी जिम्‍मेदारी से भाग नहीं सकते हैं। उन्‍होंने जोर देकर कहा कि विकास की यात्रा में पर्यावरण को क्षति पहुंच रही है। विकसित देश इसके लिए जिम्‍मेदार हैं।
4- उन्‍होंने कहा क‍ि ऐसा नहीं कि भारत में पर्यावरण से संबंधित चुनौतियां नहीं हैं। 21वीं सदी में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था बहुत तेजी से प्रगति कर रही है। भारत में बहुत तेजी से विकास हो रहा है। ऐसे में हमें यह सोचना होगा कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बना रहे। पर्यावरण संरक्षण को एक आंदोलन का रूप देना होगा। अब वक्‍त आ गया है इस आंदोलन को सरकारी कागजों से निकाल कर जनसहभागित से जोड़ा जाए। जब तक पर्यावरण संरक्षण एक आंदोलन का रूप नहीं ग्रहण करेगा और जनसहभागिता से नहीं जुड़ेगा तब तक इस दिशा में ठोस प्रगति की उम्‍मीद नहीं सकते हैं।
सूचकांक में डेनमार्क सबसे ऊपर
2022 पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में डेनमार्क सबसे ऊपर है। इसके बाद ब्रिटेन और फिनलैंड को स्थान मिला है। येल और कोलंबिया यूनिवर्सिटी की ओर से प्रकाशित सूचकांक में क्लाइमेट चेंज, पर्यावरणीय स्वास्थ्य और पारिस्थतिकी के महत्व के मामले में देशों की परख के लिए 11 श्रेणियों में 40 प्रदर्शन सूचकों का उपयोग किया गया है। अमेरिका को पश्चिम के 22 धनी लोकतांत्रिक देशों में 20वां और समग्र सूची में 43वां स्थान मिला है। ईपीआई रिपोर्ट में कहा गया है कि अपेक्षाकृत कम रैंकिंग अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के दौरान पर्यावरण संरक्षण के कदमों से पीछे हटने के कारण है।
क्‍या होगी 2025 की तस्‍वीर
रिपोर्ट में कहा गया है कि डेनमार्क और ब्रिटेन सहित फिलहाल केवल कुछ मुट्ठी भर देश ही 2050 तक ग्रीनहाउस गैस कटौती स्तर तक पहुंचने के लिए तैयार हैं। इसमें कहा गया है चीन, भारत और रूस जैसे प्रमुख देशों में तेजी से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बढ़ रहा है और कई अन्य देश गलत दिशा में बढ़ रहे हैं। ईपीआई अनुमानों से संकेत मिलता है कि अगर मौजूदा रुझान बरकरार रहा, तो 2050 में 50 प्रतिशत से अधिक वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए सिर्फ चार देश चीन, भारत, अमेरिका और रूस जिम्मेदार होंगे। इसमें कहा गया कि तेजी से खतरनाक होती वायु गुणवत्ता और तेजी से बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के साथ भारत पहली बार रैंकिंग में सबसे निचले पायदान पर आ गया है।
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