सम्पादकीय

जम्मू-कश्मीर: घाटी में बदलती आतंकी रणनीति

Neha Dani
20 Oct 2021 1:37 AM GMT
जम्मू-कश्मीर: घाटी में बदलती आतंकी रणनीति
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सरकार को समग्र रूप से इसी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है।

जम्मू-कश्मीर में बिहार के दो मजदूरों को निशाना बनाने के बाद वहां प्रवासी समुदाय में दहशत फैल गई है। इस केंद्र शासित प्रदेश में इस महीने अब तक 11 लोगों की हत्या हो चुकी है, जिनमें से पांच गैर कश्मीरी हैं। इसने वहां असुरक्षा का वातावरण बना दिया है, जिसकी वजह से घाटी से पलायन शुरू हो गया है, जैसा कि आतंकवादी चाहते हैं। गैर स्थानीय लोगों में दहशत बढ़ गई है, क्योंकि आतंकी समूहों ने बयान जारी कर उन्हें धमकी दी है कि वे उनके निशाने पर हैं। इन हत्याओं के मॉड्यूल का पता लगाने के लिए राज्य पुलिस ने नौ सौ से अधिक लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की है।

हाल के दिनों में आतंकवाद विरोधी अभियान में तेजी लाते हुए नौ मुठभेड़ों में 13 आतंकवादियों को मारा भी गया है, जिनमें से कई निर्दोष लोगों की 'टार्गेट किलिंग' में शामिल थे। हालांकि, इससे पलायन को रोकने और बढ़ते भय को कम करने में बहुत कम मदद मिली है। दरअसल बेगुनाहों को निशाना बनाना आतंकियों की बदली हुई रणनीति है, जहां पहले सुरक्षा बलों पर यह संदेश देने के इरादे से हमला किया जा रहा था कि सैन्य शक्ति को तैनात करके कश्मीरी प्रतिरोध को रोका नहीं जा सकता। चूंकि सुरक्षा बलों को निशाना बनाने की उनकी रणनीति नाकाम होने लगी और आतंकवादियों को कदम पीछे करने पड़े, इसलिए लगता है कि रणनीति में यह बदलाव किया गया है। 1990 के दशक की शुरुआत में कश्मीरी पंडितों और सिखों को इसी तरह से निशाना बनाया गया था, जिसके कारण सामूहिक पलायन हुआ था।
निर्दोष नागरिक एक आसान लक्ष्य होते हैं, क्योंकि आतंकवाद के मौजूदा माहौल के बावजूद अपनी दिनचर्या के चलते घरों से बाहर निकलते हैं। उनकी निगरानी की जा सकती है और मौका देखकर उन पर हमला किया जा सकता है। जम्मू और कश्मीर की पुलिस ने इस तरह की औचक हत्याओं को 'हाइब्रिड वारफेयर' कहा है, जिसमें आतंकवादी बेगुनाह लोगों को गोली मारकर हत्या कर भाग खड़े होते हैं। वे नजदीक से सुरक्षा बलों पर हथगोला फेंककर भी हमला करते हैं। पूरे क्षेत्र में लगे सीसीटीवी हमलावरों की शिनाख्त करने में बेकार साबित हुए हैं।
रणनीति में इस बदलाव के कई कारण हैं। पहला, आतंकवादियों का सफाया तेज गति से हो रहा है। जैसे ही कोई व्यक्ति बंदूक उठाता है और अपनी तस्वीर सोशल मीडिया में साझा करता है, वह सुरक्षा बलों के निशाने पर आ जाता है। इसके साथ ही उसे स्थानीय लोगों का समर्थन मिलना भी कम हो जाता है। इसलिए आतंकवादियों का जीवनकाल बहुत छोटा होता है। मगर बदली रणनीति के कारण हमला करने वाले पुलिस की नजर में नहीं होते, इसलिए उनका खात्मा आसान नहीं होता। हत्या करने के बाद वे स्थानीय आबादी में घुलमिल जाते हैं, जिससे उनको निशाना बनाना कठिन हो जाता है। उन्हें लक्ष्य के बारे में सोशल मीडिया के जरिये या व्यक्तिगत रूप से बताया जाता है और हमले से पहले और उसके बाद वे सामान्य जिंदगी जी रहे होते हैं।
दूसरा, घुसपैठ जारी जरूर है, लेकिन सीमित हो चुकी है। पाकिस्तान से नियुक्त आतंकवादी इस समय सुरक्षा बलों से बचने के लिए अपने ठिकानों पर हैं। एक बार जब उनका पता चल जाता है, तो सुरक्षा बल हताहत होने के बावजूद उन्हें खत्म करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे, जैसा कि पुंछ में हाल ही में हुई मुठभेड़ में हुआ। कुछ समय पहले तक मुठभेड़ों में पत्थरबाजों की मौत के बाद और अधिक युवा पाकिस्तान परस्त आतंकी गुटों से जुड़ते जा रहे थे। हुर्रियत के पतन और हवाला धन पर रोक से हिंसा में कमी आई है, इससे पाकिस्तानी आतंकवादियों की गुजर बसर मुश्किल हो गई है।
स्थानीय युवाओं को आतंकवाद से जोड़ने से पाकिस्तान को यह लाभ मिलता है कि भारत उसे मौजूदा हत्याओं के लिए सीधे जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता। यह सुनिश्चित करेगा कि युद्धविराम जारी रहे, जिससे पाकिस्तान अपनी पश्चिमी सीमाओं पर ध्यान केंद्रित कर सके, जहां स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। इस बदली रणनीति में पाकिस्तान ने ए के राइफलों के बजाए पिस्तौल और हथगोले जैसे हथियारों को शामिल करना शुरू कर दिया है। हाल के दिनों में सभी हथियारों की बरामदगी में बड़ी संख्या में पिस्तौल और हथगोले शामिल हैं।
इन हत्याओं को मुठभेड़ों की तुलना में अधिक मीडिया कवरेज भी मिल रहा है। अभी हो रहे पलायन, जिसे मिनी माइग्रेशन कहना ठीक होगा, के कारण केंद्र और केंद्र शासित क्षेत्र दोनों की सरकारों को लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा, जो कि भविष्य में होने वाले चुनावों पर भी असर डालेगी। इसका लाभ पाकिस्तान को होगा। इससे पाकिस्तान एफएटीएफ जैसी वैश्विक संस्थाओं की नाराजगी से भी बच जाएगा, जहां भारतीय पक्ष उस पर दबाव बनाता है।
सुरक्षा बलों को ऐसे बदलते परिदृश्य में अपना नजरिया बदलने की जरूरत है। औचक हत्याओं में शामिल इन मॉड्यूल को तोड़ने के लिए स्थानीय खुफिया इनपुट सबसे आवश्यक हैं। ये या तो लोगों की व्यक्तिगत निगरानी या इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के माध्यम से मिल सकते हैं। लिहाजा ऐसे अभियान स्थानीय पुलिस नेटवर्क के नेतृत्व में चलाने की जरूरत है, जिन्हें सुरक्षा एजेंसियां मदद करें। मौजूदा परिदृश्य में मुठभेड़ वाली रणनीति काम नहीं कर सकती जिसका नेतृत्व सेना के हाथ में होता है। साथ ही प्रवासी मजदूरों के शिविरों और उनके आवासीय क्षेत्रों में गश्त बढ़ाई जानी चाहिए।
जब तक सफलता नहीं मिलती है और मॉड्यूल को तोड़ा नहीं जाता, तब तक बचाव ही आदर्श होना चाहिए। अति उत्साह में सामूहिक गिरफ्तारियों से सिर्फ स्थानीय लोगों में इस बात को लेकर गुस्सा बढ़ेगा कि उन्हें गलत तरीके से निशाना बनाया जा रहा है। जरूरत है धैर्य, दृढ़ता और समर्थन के लिए स्थानीय लोगों को समझाने की। इसके साथ ही गैर स्थानीय लोगों में भरोसा जगाने की ताकि वे पलायन न करें, क्योंकि पाकिस्तान यही तो चाहता है। सरकार को समग्र रूप से इसी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है।

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