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लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक भारतीय सरजमीं पर नजरें गड़ाए बैठा चीन अब भारतीय जलसंपदा पर 'कब्जा' करने के लिए दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने जा रहा है।
लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक भारतीय सरजमीं पर नजरें गड़ाए बैठा चीन अब भारतीय जलसंपदा पर 'कब्जा' करने के लिए दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने जा रहा है। चीन तिब्बत से लेकर भारत तक बेहद पवित्र मानी जाने वाली यारलुंग त्सांग्पो या ब्रह्मपुत्र नदी पर 60 गीगावाट का महाकाय बांध बनाने की योजना में लग गया है। यह बांध तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के उस प्राचीन इलाके में इलाके में बनाया जा रहा है जहां पर तिब्बत का पहला साम्राज्य पनपा था। चीन का लक्ष्य वर्ष 2060 कार्बन तटस्थता हासिल करने का है जिसके लिए वह तिब्बत में हाइड्रोपावर प्रॉजेक्ट पर पूरा जोर लगा रहा है। वह भी तब जब पूरे बांध का तिब्बत के लोग और पर्यावरणविद विरोध कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि ब्रह्मपुत्र पर बन रहे दुनिया के इस सबसे बड़े बांध का भारत पर क्या असर पड़ेगा.....
विशाल ब्रह्मपुत्र को देवी की तरह से पूजते हैं तिब्बती लोग
मूल रूप से तिब्बत की रहने वाली तेंजिन डोल्मे अब ऑस्ट्रेलिया में रहती हैं और तिब्बती भाषा पढ़ाती हैं। उन्हें चीनी दमन के बाद तिब्बत को छोड़ना पड़ा था। उन्होंने कहा कि तिब्बत में नदियों का सम्मान उनके खून के अंदर बसा है। तेंजिन कहती हैं कि जब हम इन नदियों में तैरते थे तो हमें कहा जाता था कि इन नदियों को बाथरूम की तरह से इस्तेमाल नहीं करें क्योंकि इनके पानी में देवियां वास करती हैं। पवित्र ब्रह्मपुत्र नदी को तिब्बती देवी दोर्जे फाग्मो का शरीर माना जाता है। तिब्बती संस्कृति में देवी दोर्जे का बहुत सम्मान है। तिब्बत पॉलिसी इंस्टीट्यूट के पर्यावरण विशेषज्ञ टेंपा ग्यल्टसेन जमल्हा ने कहा कि नदियों के प्रति यह सम्मान सदियों पुराना है। उन्होंने कहा कि कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में तिब्बत पर चीन का कब्जा होने के बाद अब तिब्बती लोगों की अपनी जमीन पर कोई पकड़ नहीं रह गई है। टेंपा ने अलजजीरा से बातचीत में कहा कि चीनी कब्जे से पहले तिब्बत में कोई बांध नहीं था। ऐसा इसलिए नहीं था कि हम उसे बना नहीं सकते थे, बल्कि इसलिए था कि हम नदियों का सम्मान करते हैं।
दुनिया की सबसे ऊंची नदी पर अब ड्रैगन की टेढ़ी नजर
टेंपा कहते हैं कि चीनी अपने विकास के लिए हर चीज करेंगे, वह भी जो अब तक वर्जित रहा है। यह निराशाजनक है और तिब्बतियों से इस बारे में कोई सलाह नहीं ली गई है। समुद्र तल से करीब 16404 फुट की ऊंचाई पर पश्चिम तिब्बत के ग्लेशियर से निकलने वाली यारलुंग त्सांग्पो या ब्रह्मपुत्र नदी दुनिया की सबसे ऊंची नदी है। ब्रह्मपुत्र नदी हिमालय के सीने को चीरते हुए पूर्वोत्तर भारत के रास्ते बांग्लादेश तक जाती है। ब्रह्मपुत्र नदी 8858 फुट गहरी घाटी बनाती है जो अमेरिका के ग्रैंड केनयॉन से दोगुना गहरी है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस सबसे बड़े बांध का राजनीतिक और पर्यावरणीय दुष्परिणाम सामने आ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के पहले से ही हाइड्रो पावर के मामले में सरप्लस बिजली है लेकिन वह एक खास मकसद से इस विशालकाय बांध को बनाना चाहता है। नदी विशेषज्ञ ब्रियान इयलेर ने कहा कि इस बांध से बनी बिजली का इस्तेमाल चीन अपने नुकसान की भरपाई के लिए करना चाह रहा है जो उसे जीवाश्म ईंशन से स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ने से हो रहा है।
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