विश्व

Climate Change: 100 अरब डॉलर के जलवायु लक्ष्य को पूरा करने में असफल हुए अमीर देश, जानें वजह

Gulabi Jagat
31 July 2022 3:31 PM GMT
Climate Change: 100 अरब डॉलर के जलवायु लक्ष्य को पूरा करने में असफल हुए अमीर देश, जानें वजह
x
जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से निपटने के लिए गरीब और कमजोर देशों को अमीर देशों (Rich Countries) को साल 2020 में 100 अरब डॉलर देने थे. लेकिन वे केवल 83.3 अरब डॉलर ही दे सके. इस लक्ष्य की नाकामी का असर इस साल नवंबर में होने वाले वार्षिक जलवायु सम्मेलन (COP27) पर दिखाई देगा. कई विशेषज्ञों का कहना है कि अन्य कारणों के साथ इसकी एक वजह कोविड-19 महामारी के कारण हुए आर्थिक प्रभाव भी हो सकते हैं.
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के निपटने के लिए अमीर देशों (Rich countries) ने गरीब देशों की मदद करने का वादा किया था. ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को ऑपरेशन एंड डेवेलपमेंट (Organisation for Economic Co-operation and Development, OECD) का कहना है कि अमीरे देशों ने लंबे समय पहले जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए गरीब देशों को जो सौ अरब डॉलर की मदद देने का बहुत पहले जो संकल्प लिया था, उसे पूरा करने में वे नाकाम रहे हैं. साल 2009 में विकसित देशों ने वादा किया था कि 2020 तक वे उन देशों को सौ अरब डॉलर प्रतिवर्ष देंगे जो गंभीर जलवायु संबंधी बढ़ते प्रभावों और आपदाओं के शिकार होते हैं.
ओईसीडी (OECD) का कहना है कि हकीकत में अमीर देशों (Rich Countries) ने 2020 में केवल 83.3 अरब डॉलर ही दिए हैं जो कि लक्ष्य से 16.7 अरब डॉलर कम है. लक्ष्य में चूक कोई हैरत वाली बात नहीं है. ओईसीडी संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के उन आंकड़ों का उपयोग करता है जिन्हें संसाधित होने में दो साल का समय लगता है. और अमीर देशों ने पहले ही इस बात का इशारा कर दिया था कि वे इस लक्ष्य को 2023 से पहले हासिल नहीं कर सकेंगे.
लेकिन यह संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के वार्षिक जलवायु सम्मलेन COP27 से पहले एक बड़ा झटका माना जा रहा है जहां देशों को तेजी से CO2 उत्सर्जन (CO2 emissions) कम करने का दबाव झेलना है. वित्त इन चर्चाओं में एक बड़ा मुद्दा है और विकासशील देशों का कहना है कि वे प्रदूषण (Pollution) को बिना अमीर देशों के सहयोग के नहीं रोक सकते जो पृथ्वी को गर्म करने वाले अधिकांश CO2 उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं.
ओपन सोसाइटी फाउंडेशन्स में क्लाइमेट जस्टिस निदेशक यामिदे डैग्नेट का कहना है कि विश्वास को फिर से बहाल करने के लिए प्रतिबद्धताओं का सम्मान करना जरूरी है. सौ अरब डॉलर कमजोर देशों (Poor Countries) की जलवायु परिवर्तन (Climate change) संबंधी वास्तविक जरूरतों की तुलना में कुछ भी नहीं है. हमें जरूरत है कि विकसित देश अपने जलवायु वित्त (Climate Fincance) को बढ़ाने के लिए एक विश्सनीय योजना पेश करें.
ओईसीडी (OECD) ने हर देश के लिए अलग अलग आंकड़े जारी नहीं किए. उसका कहना है कि यह अभी स्पष्ट नहीं है कि कोविड-19 (Covid-19) महामारी की वजह से आए आर्थिक संकट (Economic Crisis) का इन देशों पर कैसा असर हुआ था यह स्पष्ट नहीं है. इसमें इन देशों केवे सार्वजनिक कर्ज, अनुदान, निजी निवेश जिससे सार्वजनिक निकायों को वित्तीय कार्यों को करने में मदद मिलती है.
हाल ही में यूरोपीय संघ (European Union) और उसके 27 देश मिल कर सबसे बड़े जलवायु वित्त (Climate Finance) प्रदाता बने हैं. फसलों को खाने वाले सूखे, बढ़ते समुद्री जल स्तर, मारक ग्रीष्म लहरें दुनिया के सबसे गरीब देशों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा रही हैं और वे बढ़ते जलवायु संबंधी नुकसान के लिए मुआवजे की भी मांग कर रहे हैं. अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य दूसरे बड़े प्रदूषक देशों (Big Pollutors) ने अभी तक इस भुगतान को रोकने के लिए कोशिशें की हैं. लेकिन कुछ देशों की स्थिति बदल रही है.
Gulabi Jagat

Gulabi Jagat

    Next Story