जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है, जिसके मुताबिक चीन की नौसेना सबसे ज्यादा ताकतवर हो चुकी है. वो न केवल चीन, बल्कि आसपास के लगभग सारे पड़ोसी देशों में अपने बंदरगाह बना रही है. हिंद महासागर में भी भारत को कमजोर कर आगे निकलने की कोशिश करती ये नौसेना हर तरह के साजो-सामान से लैस है.
समुद्र में खुद को बना रहा ताकतवर
समुद्री रास्तों से अपने व्यापार को मजबूत करने की चीन की मंशा तो पहले ही साफ हो चुकी थी, अब इस देश का एक और खतरनाक इरादा स्पष्ट हो गया है. असल में साउथ चाइना सी के लगभग 80 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्से पर अपना दावा करते चीन ने वहां आर्टिफिशियल बंदरगाह बना लिए. और अब वो हिंद महासागर में भी खुद को शक्तिशाली बना रहा है. हालत ये है कि खुद पेंटागन ने पीपल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN) को समुद्री रास्तों में अब सबसे ज्यादा मजबूत करार दे दिया है.
क्या है चीन की नौसेना के पास
चीन के पास फिलहाल लगभग 350 युद्धपोत और पनडुब्बियां हैं. इनमें से ज्यादातर मिसाइल पेट्रोल बोट हैं. कई मल्टी-रोल प्लेटफॉर्म हैं. ये जहाज, हवा और जमीन से भी वार कर सकते हैं. साथ ही चीन की नौसेना के पास 52 न्यूक्लियर और डीजल पावर से चलने वाली पनडुब्बियां हैं. चार बैलिस्टिक मिसाइल हैं और दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं.
युद्धपोत भी हैं अमेरिका से ज्यादा
अमेरिका से तुलना करें तो भी चीन के पास ज्यादा युद्धपोत दिख रहे हैं. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के पास साल 2020 की शुरुआत तक 293 जहाज थे. हालांकि रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका के पास चीन से कम युद्धपोत तो हैं लेकिन वे ज्यादा आधुनिक भी हैं. अमेरिका के पास KGN 11 एयरक्राफ्ट कैरियर हैं, जिनमें हर एक पर 80 से 90 फाइटर जेट तैनात हो सकते हैं.
तेजी से चल रहा काम
चीन ने अपनी नेवी में जो नए जहाज जोड़े हैं, वे ज्यादा आधुनिक हैं. अमेरिकी जहाजों से छोटे होने के बाद भी उनमें दुश्मनों को तबाह करने के पूरे इंतजाम हैं, जैसे लॉन्च ट्यूब और मिसाइलें. जिन चीजों में चीन की नौसेना, अमेरिका से पीछे है, उसे भी बराबरी पर लाने के लिए तेजी से काम हो रहा है.
विस्तार का पूरा है प्लान
माना जा रहा है कि चीन समुद्र के रास्ते में खुद को सबसे ज्यादा ताकतवर देश बनाने के प्रयास में है. पेंटागन ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट मिलिट्री एंड सिक्योरिटी डेवलपमेंट्स इनवॉल्विंग द पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना-2020 में इस बारे में खुलकर बताया. इसमें साफ है कि समुद्र में भी विस्तार करने में जुटा ये देश थाईलैंड, सिंगापुर, इंडोनेशिया, संयुक्त अरब अमीरात, केन्या, सेशल्स, तंजानिया, अंगोला और तजाकिस्तान में अपने ठिकाने बना रहा है. बता दें कि चीन का नामीबिया, वनुआतू और सोलोमन द्वीप पर पहले से ही कब्जा है.
विवादित सागर पर दावा
इस सबके बीच साउथ चाइना सी का जिक्र बार-बार आ रहा है. दक्षिणी चीन सागर दुनिया की सबसे विवादास्पद भौगोलिक जगहों में से एक है. वैश्विक नियमों के अनुसार किसी देश की समुद्री सीमा उसकी जमीनी सीमा के बाद समुद्र में 200 नॉटिकल मील तक मानी जाती है. लेकिन चीन, वियतनाम, फिलीपींस और मलेशिया जैसे देशों के बीच स्थित इस समुद्र में यह अंतरराष्ट्रीय नियम विवादित हो जाता है. ये महासागर एशिया के दक्षिण-पूर्व में पड़ता है. इसका दक्षिणी हिस्सा चीन के मेनलैंड को छूता है. दूसरी ओर दक्षिण-पूर्वी भाग पर ताइवान अपनी दावेदारी रखता है. सागर का पूर्वी तट वियतनाम और कंबोडिया से जुड़ा हुआ है. पश्चिमी तट पर फिलीपींस है. साथ ही उत्तरी इलाके में इंडोनेशिया के द्वीप हैं.
कब्जे के लिए बनाए द्वीप
कई देशों से जुड़ा होने के कारण इसे दुनिया के कुछ सबसे ज्यादा व्यस्त जलमार्गों में से एक माना जाता है. इसी मार्ग से हर साल 5 ट्रिलियन डॉलर मूल्य का इंटरनेशनल बिजनेस होता है. ये मूल्य दुनिया के कुल समुद्री व्यापार का 20 प्रतिशत है. इस सागर के जरिए चीन अलग-अलग देशों तक व्यापार में सबसे आगे जाना चाहता है. इसी मसकद को पूरा करने के लिए चीन ने समुद्र में छोटे-छोटे नकली द्वीप तक बना रखे हैं. यहां उसके सैनिक अपने जखीरे का साथ तैनात हैं.
क्यों है भारत के लिए खतरा
पेंटागन की सितंबर में आई इस रिपोर्ट में चीन के इस विस्तारवाद को भारत के लिए भी खतरा बताया गया. उसके मुताबिक चीन एशिया में एक तरह से भारत की घेराबंदी कर रहा है. हिंद महासागर में वो खुद को मजबूत बना रहा है, जो भारत की सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है.
क्या कर रहा है इस दिशा में देश
माना जा रहा है कि गलवान तनाव लंबे समय तक कम नहीं हो सकेगा. ऐसे में अगर युद्ध टालना हो तो भी भारत को जलमार्ग पर भी खुद को मजबूत करना होगा ताकि चीन पर दबाव बढ़े. इसके तहत अंडमान निकोबार में सैन्य बेस करना फिलहाल हमारी प्राथमिकता है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक इस बारे में काफी वक्त से प्लान चल रहा था लेकिन गलवान मामले के बाद इसमें तेजी आ गई. समुद्री मार्ग पर खुद को मजबूत करने के लिए अब Andaman Nicobar Command (ANC) को मजबूत बनाने की बात हो रही है. और इसपर काम भी शुरू हो चुका है.