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B से बुलेट, L से लैंड माइन... जिंदा रहने के लिए हथियारों को पहचानने का पाठ पढ़ रहे अफगानी बच्चे

Renuka Sahu
19 Nov 2021 4:20 AM GMT
B से बुलेट, L से लैंड माइन... जिंदा रहने के लिए हथियारों को पहचानने का पाठ पढ़ रहे अफगानी बच्चे
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फाइल फोटो 

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के 100 दिन होने वाले हैं. जब से तालिबान ने काबुल पर सत्ता हथियाई है, तब से अफगानी नर्क की जिंदगी जी रहे हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अफगानिस्तान (Afghanistan Crisis) पर तालिबान (Taliban) के कब्जे के 100 दिन होने वाले हैं. जब से तालिबान ने काबुल पर सत्ता हथियाई है, तब से अफगानी नर्क की जिंदगी जी रहे हैं. महिलाओं और बच्चों का बुरा हाल है. इस बीच, दक्षिणी हेलमंड प्रांत में नाद-ए-अली समेत कई गांव ऐसे हैं, जहां बच्चे पढ़ाई के बजाय जान बचाने की तालीम ले रहे हैं. उन्हें हथियारों, मिसाइल सैल और लैंड माइंस पहचानना सिखाया जा रहा है. अफगानी बच्चे यहां B से बैट नहीं बल्कि बुलेट (Bullet) और L से लायन के बजाय लैंड माइन (Land Mine) का पाठ पढ़ रहे हैं.

दरअसल, सबसे आखिर तक तालिबान का मुकाबला यहीं के लोगों ने किया. जब तालिबान हावी हुआ तो जान बचाने के लिए गांव छोड़कर परिवार भाग गए थे. अब यह लौट आए हैं. गांव के स्कूल-घर मोर्टार और गोलियों से छलनी हैं. मकान खंडहर में तब्दील हो चुके हैं. लोग मजबूरन ऐसे ही मकानों में रह रहे हैं. उनलोगों को शक है कि मैदानों और रास्तों में तालिबान लड़ाके लैंड माइंस बिछा गए होंगे. इसलिए लैंड माइंस और जमीन में दबे विस्फोटकों के अवशेष खोजे जा रहे हैं. मैदानों या रास्तों में बिछी इन माइंस की चपेट में बच्चे और महिलाएं न आ जाएं, इसलिए उन्हें जानकारी दी रही है.
सफेद-लाल पत्थरों से रहते हैं सर्तक
जितने इलाके में सर्चिंग हो चुकी है, उन्हें सफेद-लाल पत्थरों से चिह्नित किया जा रहा है. सफेद का मतलब है कि जगह सुरक्षित है. वहीं, लाल निशान संकेत देते हैं कि यहां बारूदी सुरंगें हैं. 1988 से इन बारूदी सुरंगों ओर गैर फटे विस्फोटकों से 41 हजार लोगों की जान जा चुकी है.
बच्चे भुखमरी का शिकार
प्रत्येक बीत रहे दिन के साथ, देश का मानवीय संकट और अधिक गंभीरता के साथ सामने आ रहा है. इसकी वजह यह है कि भोजन और पानी की बुनियादी आवश्यकता के पहुंच की कमी ने कई लोगों को भुखमरी में डाल दिया है. इससे कई छोटे बच्चों की मौत हो गई है, जबकि भुखमरी के चलते सैकड़ों का इलाज किया गया है.
अफगानिस्तान के कई प्रभावित प्रांतों में से एक घोर में स्थानीय लोगों ने कहा, 'अफगानिस्तान में बच्चे भूख से मर रहे हैं.' अंतरराष्ट्रीय असहायता एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि अगर इस मामले को आपात स्थिति और युद्धस्तर पर नहीं सुलझाया गया तो साल के अंत तक लाखों छोटे बच्चों को गंभीर और जानलेवा कुपोषण का सामना करना पड़ सकता है. घोर प्रांत में पिछले छह महीनों में कम से कम 17 बच्चों की कुपोषण से मौत हो चुकी है.
रोटी के लिए बेची जा रही बच्चियां
एक रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान में ऐसे कई परिवार हैं जिन्होंने अपने बच्चों को बेच दिया है या बेचने के लिए तैयार हैं. हाल ही में एक मां ने अपने बाकी बच्चों को भूखों मरने से बचाने के लिए अपनी कुछ महीने की बच्ची को 500 डॉलर यानी करीब 37 हजार रुपये में बेच दिया. मतलब अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से लोगों के लिए पेट भरना तक मुश्किल हो गया है. कई बच्चे कुपोषण के शिकार हो चुके हैं और इलाज की कमी से जूझ रहे हैं.
खासतौर पर अल्पसंख्यक समुदाय और अनाथ बच्चों की हालत सबसे ज्यादा खराब है. हाल ही में पश्चिमी काबुल के एतेफाक शहर में आठ बच्चों की भूख से मौत हो गई. ये बच्चे छोटे-मोटे काम करके अपनी जिंदगी चला रहे थे, लेकिन तालिबानी शासन में उनके पास कोई काम नहीं बचा था. तालिबान राज से आती ये खबरें इस बात पर मुहर लगा रही हैं कि देश की इकोनॉमी बेहद बुरे दौर से गुजर रही है या यूं कहें कि अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है.
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