आर्मीनिया-अजरबैजान : आर्मीनिया और अजरबैजान की जंग के बाद अब बिखरी लाशें और टूटे अशियाने समेट रहे लोग
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| नई दिल्ली, न्यूयॉर्क टाइम्स न्यूज सर्विस। नागोर्नो-काराबाख इलाके को लेकर आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच हुई लड़ाई के बाद अब चारों तरफ पड़ी लाशें और टूटे पड़े अशियाने समेटे जा रहे हैं। दोनों ओर की गोलीबारी से लाखों का नुकसान हुआ है और सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं।
तीन सप्ताह से अधिक समय से चल रही इस लड़ाई में अजरबैजान ने काफी आक्रामक तरीके से आर्मीनिया पर हमला किया और बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया है। अजरबैजान ने आर्मीनिया पर हमला करने के लिए ड्रोन तकनीक का भी इस्तेमाल किया जिसका मुकाबला करने के लिए आर्मीनियाइ सेना किसी तरह से तैयार नहीं थी। इस वजह से उन्हें अधिक नुकसान हुआ। इस तरह के हमले से युद्ध में एक नई तकनीक का इस्तेमाल देखा गया।
खोदी जा रही सामूहिक कब्रें
तीन सप्ताह से दोनों देशों के बीच चल रही गोलीबारी में अब तक सैकड़ों की जानें जा चुकी हैं मगर हमले की वजह से इन सैनिकों के शवों को उठाकर ठिकाने नहीं लगाया जा सका। अब युद्ध विराम की घोषणा होने के बाद दोनों देशों के सेना अपने-अपने इलाके में सैनिकों के शवों को उठाने और उनका सामूहिक दाह संस्कार करने में लग गई है। युद्ध की शुरूआत में जिन सैनिकों की मौत हो गई थी, अब तक उनके शव उठाए नहीं जा सके थे जिसकी वजह से शवों में खराबी भी आ रही थी। रूस की मध्यस्थतता के बाद अब इन सैनिकों के शवों को दफनाने के लिए सामूहिक कब्रें खोदी जा रही हैं।
नागोर्नो-काराबाख इलाके में रहने वालों ने घर छोड़ा
अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच युद्ध शुरू होने के बाद नागोर्नो काराबाख और इसके आसपास के इलाके में रहने वाले लोग अपना घर छोड़कर दूसरी जगह पर चले गए। दोनों ओर की गोलीबारी में यहां लोगों की घरों की छतें उड़ गई, कई घरों की दीवारें अलग हो गई। कई की दीवारें और छतें दोनों गायब हो गई। अब ऐसे पीड़ित लोग अपने घरों को देखकर आंसू बहा रहे हैं।
ड्रोन के हमलों से तबाह हुआ आर्मीनिया
अजरबैजान ने इस बार के युद्ध में काफी बड़े पैमाने पर ड्रोन से हमला किया। ड्रोन के हमले को किसी भी तरह से रोक पाने में आर्मीनिया की सेना विफल रही जिसकी वजह से उनको बड़ा नुकसान हुआ। इससे पहले जब साल 1994 में दोनों के बीच युद्ध हुआ था तो आर्मीनिया ने युद्ध जीत लिया था। उस युद्ध में 20 हजार लोगों की मौत हो गई थी और 10 लाख लोग विस्थापित हुए थे।
क्या है नागोर्नो-काराबाख का इतिहास
नागोर्नो-काराबाख 4,400 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ एक बड़ा इलाका है। इस इलाके में आर्मीनियाई ईसाई और मुस्लिम तुर्क रहते हैं। ये इलाका अजरबैजान के बीच आता है। बताया जाता है कि सोवियत संघ के अस्तित्व के दौरान ही अजरबैजान के भीतर का यह एरिया एक स्वायत्त (Autonomous Area) बन गया था।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस इलाके को अजरबैजान के हिस्से के तौर पर ही जाना जाता है लेकिन यहां अधिकतर आबादी आर्मीनियाई रहती है। 1991 में इस इलाके के लोगों ने खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित करते हुए आर्मेनिया का हिस्सा घोषित कर दिया। उनके इस हरकत को अजरबैजान ने सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद दोनों देशों के बीच कुछ समय के अंतराल पर अक्सर संघर्ष होते रहते हैं।
अजरबैजान के हिस्से कैसे आया नागोर्नो-काराबाख का इलाका
आर्मेनिया और अजरबैजान 1918 और 1921 के बीच आजाद हुए थे। आजादी के समय भी दोनों देशों में सीमा विवाद के चलते कोई खास मित्रता नहीं थी। पहले विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद इन दोनों देशों में से एक तीसरा हिस्सा Transcaucasian Federation अलग हो गया। जिसे अभी जार्जिया के रूप में जाना जाता है। 1922 में ये तीनों देश सोवियत यूनियन में शामिल हो गए। इस दौरान रूस के महान नेता जोसेफ स्टालिन ने अजरबैजान के एक हिस्से (नागोर्नो-काराबाख) को आर्मेनिया को दे दिया। एक बात ये भी कही जाती है कि जोसेफ स्टालिन ने आर्मेनिया को खुश करने के लिए नागोर्नो-काराबाख का इलाका उनको सौंपा था।