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अफगानिस्तान : तालिबान फिर से कोहराम मचाने को तैयार, दशकों के युद्ध के बाद भी हालात बदतर
Apurva Srivastav
18 April 2021 1:43 PM GMT
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हमले के बाद अमेरिका ने फैसला कर लिया था कि वह अफगानिस्तान से अलकायदा को पूरी तरह से उखाड़ फेंकेगा
9/11 के हमले के बाद अमेरिका ने फैसला कर लिया था कि वह अफगानिस्तान से अलकायदा को पूरी तरह से उखाड़ फेंकेगा. लेकिन क्या वह पिछले दो दशकों में कुछ ऐसा कर पाया. जवाब आपके सामने है, अब कैसे धीरे-धीरे फिर से तालिबानी लड़ाके अफगानिस्तान की सरकार पर हावी होते जा रहे हैं. पिछले दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने घोषणा की, कि 11 सितंबर तक अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों को वापस बुला लिया जाएगा. इसके साथ जो बाइडेन ने कहा कि अफगानिस्तान में जो नाटो देशों के तकरीबन 7000 सैनिक हैं वह भी अपने अपने देशों को वापस लौट जाएंगे. अब अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की सिर्फ एक टुकड़ी ही रहेगी जिसका मकसद होगा वहां अमेरिकी दूतावास की सुरक्षा करना. अमेरिकी सैनिक लगभग 20 वर्षों तक अफगानिस्तान में रहे.
अमेरिका को इन बीस सालों में तालिबानियों से लड़ाई लड़ते वक्त हर तरह से बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. इस लड़ाई ने तकरीबन 2300 अमेरिकी नागरिकों की जान ले ली और 20,000 से ज्यादा लोगों को घायल किया. हालांकि अफगानिस्तान और तालिबान का नुकसान भी कुछ कम नहीं हुआ. उसके लगभग 60,000 लड़ाके मारे गए और तकरीबन 1 लाख से ज्यादा नागरिकों की भी मौत हुई. लेकिन इन 20 सालों की लड़ाई को अब बिना किसी फैसले के बीच में ही छोड़ा जा रहा है. अमेरिका के जाते ही तालिबानी चरमपंथियों में खुशी की लहर है, वह अपनी जीत का जश्न मना रहे हैं.
अफगानिस्तान छोड़ने पर अमेरिका ने क्या कहा
जो बाइडेन प्रशासन इस बात से इनकार करता है और वह कहता है कि हमने अफगानिस्तान को पूरी तरह से नहीं छोड़ा है. हम अलकायदा से अब भी लड़ते रहेंगे और ड्रोन, खुफिया तंत्र के जरिए अलकायदा और अफगानिस्तान पर नजर रखना जारी रखेंगे. हालांकि, विशेषज्ञ जो बाइडेन के फैसले को अमेरिका की सामरिक हार के रूप में देख रहे हैं. वहीं अमेरिका के वरिष्ठ सांसद और बाइडेन के खास जैक रीड ने अमेरिका की हार का पूरा ठीकरा पाकिस्तान के सिर फोड़ दिया है. उनका मानना है कि अफगानिस्तान में तालिबान की जड़े इसलिए मजबूत हुईं, क्योंकि उसे पाकिस्तान का हमेशा से साथ मिलता रहा. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान की जंग में पाकिस्तान हमेशा से दोनों तरफ से फायदा उठाने की कोशिश करता रहा. आपको याद होगा कि 2011 में जब ओसामा बिन लादेन की खोज पूरी दुनिया में हो रही थी तब वह पाकिस्तान में छुपा बैठा था. जिसे अमेरिकी फौजों ने मार गिराया था. तभी से पाकिस्तान का असली चेहरा दुनिया के सामने आ गया था.
अमेरिका का पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई पर आरोप
अमेरिका के वरिष्ठ सांसद जैक रीड ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि, अफगानिस्तान में हम तालिबान को इसलिए नहीं खत्म कर पाए क्योंकि पाकिस्तानी सेना और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई उसे छुप-छुप कर मदद पहुंचा रही थी. एक तरफ जहां पाकिस्तानी सरकार अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ लड़ने के लिए अमेरिका का सहयोग करने का दावा कर रही थी. वहीं दूसरी ओर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी और उसकी सेना तालिबानियों की मदद कर रही थी. अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टिट्यूट के एक साथी ने कहा कि अमेरिका इसलिए भी अफगानिस्तान में कमजोर पड़ गया क्योंकि हम अमेरिका से सैकड़ों मील दूर किसी देश में आतंक विरोधी अभियान सफलतापूर्वक नहीं चला सकते.
तालिबानी सरकार आई तो होगा महिलाओं का बुरा हाल
तालिबान कानून में महिलाओं के लिए कड़े नियम हैं, बच्चियों को स्कूल तक जाने से रोका जाता है. उनके ऊपर कड़े प्रतिबंध होते हैं जिसके लेकर कई महिला संगठनों ने विश्वस्तर तक इस पर अपनी आवाज बुलंद की है. तालिबान हमेशा से शरिया कानून के पक्ष में रहा है और उसके तालिबानी कानून में महिलाओं को लेकर काफी सख्त नियम कानून हैं. यही वजह है कि जब तक तालिबान अफगानिस्तान में मजबूत था तब तक महिलाओं के लिए वहां जीवन जीना बेहद दयनीय था. लड़कियों के लिए तो स्कूल की कल्पना करना भी मुश्किल था. लेकिन जब से अमेरिकी फौजों ने वहां मोर्चा संभाला था तब से अफगानिस्तान की महिलाओं और लड़कियों की हालत में सुधार हुआ था 2001 में अफगानिस्तान में 9.2 मिलीयन छात्र पढ़ाई कर रहे थे, जिसमें 3.7 मिलियन लड़कियां थीं. लेकिन अमेरिका के फैसले के बाद अब भी वहां इस तरह से लड़कियां पढ़ पाएंगी इस पर संदेह है. तालिबानी किसी भी कीमत पर अफगानिस्तान में इस्लामी शासन लागू करना चाहते हैं, उसके लिए वह कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं. अब अमेरिकी सैनिकों और नाटो देशों के सैनिकों का वापस चले जाना उनके लिए खुली छूट होगी. क्योंकि अफगानिस्तान की सरकार में इतनी शक्ति नहीं है कि वह तालिबान को पूरी तरह से रोक सके.
तेजी से पांव पसारता तालिबान
1996 से 2001 तक अलकायदा ने ओसामा-बिन-लादेन की मदद से अपने आप को अफगानिस्तान में स्थापित कर लिया था. उस वक्त उन्होंने दुनिया भर से आए लड़ाकों को अपने दल में शामिल किया. उन्हें प्रशिक्षण दिया. दुनिया भर में उसने अमेरिकी लोगों को निशाना बना कर उन पर हमले किए. जब सोवियत संघ की आर्मी अफगानिस्तान से वापस लौटी तो वहां भीषण गृह युद्ध हुआ और तालिबान ने पूरे देश पर अपना नियंत्रण बना लिया. हालांकि बाद में अमेरिकी और नाटो देशों की सेना ने मिल कर तालिबान को पाकिस्तान की सीमा तक धकेल दिया और अफगानिस्तान में फिर से अशरफ गनी की लोकतांत्रिक सरकार बनाई. लेकिन तालिबान अफगानिस्तान सरकार को भ्रष्ट और गैर इस्लामिक मानता है. उसका मानना है कि अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार ही सही से शासन कर सकती है.
अफगानिस्तान में पिछले कुछ समय से अमेरिका ने तालिबान के खिलाफ अपनी कार्यवाही को कम कर दिया है. जिसकी वजह से तालिबानी अब पूरे अफगानिस्तान में तेजी से पांव पसार रहे हैं और उनकी मजबूत होती स्थिति वहां की सरकार के लिए गंभीर चिंता का विषय बनती जा रही है. अफगानिस्तान के 325 जिलों में से तालिबान का फिलहाल 76 जिलों पर प्रभाव है. जबकि 127 जिलों पर सरकारी सेना का प्रभाव है जो धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा है. 2001 के बाद से ही तालिबानी अफगानिस्तान में मजबूत हैं. अब अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में एक बार फिर से गृह युद्ध देखने की संभावना है. हालांकि तालिबानी पहले से ही इसमें अपनी जीत मान कर चल रहा है.
दशकों के युद्ध के बाद भी हालात बदतर
पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से अफगानिस्तान जंग की आग में जल रहा है. वहां इतनी लाशें दफ्न हैं कि अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि रिसर्च समूह एक्शन ऑन आर्म्ड फोर्सेस वॉयलेंस के अनुसार 2020 में किसी भी देश की तुलना में विस्फोटक उपकरणों से मारे गए लोगों में अफगानिस्तान का नंबर सबसे ऊपर है. अमेरिका और अन्य देशों की बड़ी-बड़ी कार्रवाईयों ने अभी तक अलकायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी संगठनो का खात्मा नहीं कर पाई. और अब अमेरिका और नाटो देशों के सैनिकों का अफगानिस्तान से जाना उनके लिए जीवनदायी साबित होगा. दुनिया को डर है कि यह स्लामिक संगठन अब और बड़े बनकर उभरेंगे जिससे पूरी दुनिया को खतरा होगा.
खास तौर से भारत के लिए यह किसी मायने में ठीक नहीं है क्योंकि भारत पिछले कई सालों से आतंकवाद से लड़ाई लड़ रहा है. पाकिस्तान हमेशा से सामने-सामने की लड़ाई में भारत से युद्ध हारता आया है. यही वजह है कि वह आतंकवाद का सहारा लेकर भारत को भीतर से कमजोर करना चाहता है. कश्मीर में इस वक्त जितनी भी आतंकी गतिविधियां होती हैं उनमें से ज्यादातर पाकिस्तान की शह पर होती हैं. अब जब इस्लामिक स्टेट या तालिबान मजबूत होगा तो जाहिर सी बात है पाकिस्तान के आतंकी सोच को बल मिलेगा और वह इन आतंकी संगठनों के जरिए हिंदुस्तान को नुकसान पहुंचाने की पूरी कोशिश करेगा.
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