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भूटान: क्यों जनता संदेह की निगाह से देखती है सिविल सोसायटी संगठनों को?

HARRY
7 Jun 2023 5:30 PM GMT
भूटान:  क्यों जनता संदेह की निगाह से देखती है सिविल सोसायटी संगठनों को?
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ऐसे संगठनों को विनियमित करने के लिए भूटान सरकार ने कई कदम उठाए हैं...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | भूटान में हाल के महीनों सिविल सोसायटी संगठनों की गतिविधियां बढ़ी हैं। लेकिन कई अन्य देशों की तरह भी भूटान में समाज का एक तबका इन संगठनों को संदेह की नजर से देखता है। अक्सर यहां इन्हें स्वार्थी लोगों की जमात के रूप में देखा जाता है। इस संगठनों के आलोचक कहते सुने जाते हैं कि इनसे जुड़े लोग विदेशी चंदा जुटाने के लिए अपने देश की कमियों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं।
लेकिन सिविल सोसायटी संगठनों का दावा है कि वे भूटान की सेवा कर रहे हैं। कुछ रोज पहले यहां इन संगठनों ने एक वेबिनार आयोजित किया। उसे संबोधित करते हुए एनजीओ भूटान ट्रांसपैरेंसी इनिशिएटिव (बीटीआई) के कार्यकारी निदेशक डॉ. रिनझिन ने कहा कि ये संगठन सामाजिक निगरानी की भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि इसी कारण न्यायपालिका का इन संगठनों में भरोसा बढ़ा है, जबकि मीडिया अब इन्हें बेहतर ढंग से पेश कर रहा है।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भूटान में 54 रजिस्टर्ड सिविल सोसायटी संगठन हैं। इन संगठनों का दावा है कि वे गरीबी हटाने, पुनर्वास, पर्यावरण संरक्षण, पशु कल्याण, कला-संस्कृति, युवा सशक्तीकरण और सुशासन लाने के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे संगठनों को विनियमित करने के लिए भूटान सरकार ने कई कदम उठाए हैं। इसकी शुरुआत 2007 में हुई, जब संसद ने सिविल सोसायटी ऑर्गेनाइजेशन एक्ट पारित किया। 2016 में भूटान नरेश ने राष्ट्र निर्माण के कार्य में सिविल सोसायटी संगठनों के योगदान को मान्यता देने के लिए नेशनल ऑर्डर ऑफ मेरिट नाम का सम्मान प्रदान करने की शुरुआत की।
इसके बावजूद आम जन के मन में इन संगठनों और उनकी गतिविधियों को लेकर संदेह बना हुआ है। हाल में हुए वेबिनार के दौरान खुद इन संगठनों से जुड़े लोगों ने यह शिकायत जताई। सिविल सोसायटी कार्यकर्ता चेन्चो लाहमू ने कहा कि लोगों के मन में अक्सर इसको लेकर भ्रम बना रहता है कि ये संगठन सरकारी हैं या स्वतंत्र पहल पर बने हैं। उन्होंने कहा कि अन्य लोकतांत्रिक देशों में ऐसे संगठन सरकार सेवाएं प्रदान करने में पूरक की भूमिका निभाते हैं। लेकिन भूटान में उनकी भूमिका को लेकर भ्रम बना हुआ है।
सिविल सोसायटी संगठनों का कहना है कि 2007 का कानून पारित होने के बाद सिविल सोसायटी संगठनों के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया सख्त हो गई। इसका यह तो अच्छा नतीजा हुआ कि इन संगठनों के लिए सरकार को प्रभावित करना आसान हो गया, लेकिन साथ ही पंजीकरण प्रक्रिया इतनी कठिन हो गई, जिससे लोग ऐसे संगठन बनाने को लेकर हिचकने लगे।
हालांकि लोगों के मन यह धारणा बनी रहती है कि सिविल सोसायटी संगठनों के पास बहुत पैसा है, लेकिन इन संगठनों का कहना है कि उनके सामने प्रमुख समस्या फंडिंग की है। इन संगठनों के मुताबिक भूटान के लोग धार्मिक और चैरिटी संगठनों को उदारता से चंदा देते हैं, लेकिन सिविल सोसायटी संगठनों को सहायता देने को लेकर इच्छुक नहीं रहते। इन हालात में ये संगठन विदेशी चंदा लेने को मजबूर हो जाते हैं। मगर यही वो पहलू है, जिनकी वजह से इन संगठनों को लेकर जनता के बीच सबसे ज्यादा संदेह पैदा होता है।
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