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बिछ रही लहलही घास

बिछ रही लहलही घास

शैशव में पढ़ी, मन में बहुत गहरे छिपी बैठी कुछ कविताएं मौका पाते ही जेहन में उभर आती हैं, मानो बरसात की बूंदें पाकर अनायास उग आई घास हो या गरीबी में कुछ पैसों का जुगाड़ होते ही मन को घेर लेने वाली ढेर...

21 Jun 2022 5:10 AM