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मुखड़ा क्या देखे दर्पण में
काशी का वह ज्ञानी, लेकिन मुंहफट जुलाहा सबको समझाता था ‘कागज की इक नाव बनाई, छोड़ी गहरे जल में, धर्मी कर्मी पार उतर गए, पापी डूबे जल में, तेरे दया धरम नहीं मन में, मुखड़ा क्या देखे दर्पण में’।
26 Aug 2022 5:33 AM GMT