विज्ञान

रात में करने वालों को इस गंभीर बीमारी का खतरा अधिक, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

Kunti Dhruw
21 Aug 2021 5:39 PM GMT
रात में करने वालों को इस गंभीर बीमारी का खतरा अधिक, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी
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जिन कंपनियों का काम 24 घंटे का होता है.

जिन कंपनियों का काम 24 घंटे का होता है. वहां आमतौर पर कर्मचारियों को दो पाली में काम करना होता है- दिन पाली और रात पाली। काम के सुचारू ढंग से जारी रहने के लिए यह व्यवस्था आवश्यक होती है, पर क्या आप जानते हैं अलग-अलग पालियों में काम करने का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? वैज्ञानिकों ने इसी से संबंधित एक हालिया शोध में बड़ा खुलासा किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जो लोग ज्यादातर रात की पाली में काम करते हैं, उनमें हृदय रोगों के विकसित होने का खतरा अधिक होता है। मतलब, सेहत के लिहाजे से रात पाली में काम करने को विशेषज्ञ नुकसानदायक मानते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम के नेतृत्व में किए गए अध्ययन से पता चला है जो लोग रात की पाली में ज्यादा काम करते हैं उनमें अक्सर असामान्य रूप दिल के धड़कन के तेज होने की समस्या विकसित होने का खतरा रहता है। इस स्थिति को मेडिकल की भाषा में 'एट्रियल फाइब्रिलेशन' के नाम से जाना जाता है। यह स्थिति हृदय से संबंधित गंभीर जटिलताओं के विकसित होने का कारण बन सकती है। आइए आगे की स्लाइडों में जानते हैं कि नाइट शिफ्ट किस तरह से हृदय के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है?
नाइट शिफ्ट और हृदय रोगों का खतरा
रात की पाली में काम करना लोगों के लिए किस प्रकार से नुकसानदायक हो सकता है? इस बारे में जानने के लिए वैज्ञानिकों ने करीब 283,657 लोगों के डेटा का अध्ययन किया। इस डेटाबेस के अध्ययन से पता चलता है कि पूरे जीवनकाल में जो लोग जितना अधिक समय तक रात की पाली में काम करते हैं, उन लोगों में एट्रियल फाइब्रिलेशन विकसित होने का खतरा उतनी ही अधिक होता है। अध्ययन से यह भी पता चला है कि रात की पाली में काम करने से अन्य प्रकार के हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है, हालांकि यह स्ट्रोक और हार्ट फेलियर जैसी गंभीर स्थितियों के विकसित होने की आशंका कम होती है।
कई स्तरों पर किया गया अध्ययन
तमाम विश्वविद्याल के शोधकर्ताओं की टीम ने अध्ययन में एट्रियल फाइब्रिलेशन के आनुवंशिक जोखिमों का मूल्यांकन भी किया। इसके लिए शोधकर्ताओं ने इस स्थिति से संबंधित करीब 166 जेनेटिक वैरिएंटमस का मूल्यांकन किया। हालांकि अध्ययन के निष्कर्ष में पाया गया कि आनुवंशिक जोखिम, रात की पाली में काम करने और एट्रियल फाइब्रिलेशन के बीच की कड़ी को प्रभावित नहीं करते हैं। अध्ययन के लेखकों में से एक प्रोफेसर लू कहते हैं, लगातार नाइट शिफ्ट करने वाले लोगों में यह खतरा अधिक देखा गया है। इस तरह की समस्याओं से बचने के लिए नाइट शिफ्ट की आवृत्ति और अवधि दोनों कम किया जाना चाहिए।
एट्रियल फाइब्रिलेशन की बढ़ सकती है समस्या
अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि जो लोग स्थाई रूप से रात की पाली में काम करते हैं, उनमें केवल दिन के दौरान काम करने वाले लोगों की तुलना में एट्रियल फाइब्रिलेशन होने का खतरा 12 फीसदी तक अधिक हो सकता है। दस या उससे अधिक वर्षों के बाद यह जोखिम बढ़कर 18 प्रतिशत से अधिक हो जाता है। दस साल या उससे अधिक समय तक महीने में औसतन तीन से आठ दिनों तक रात की पाली में काम करने वाले लोगों में अन्य लोगों की तुलना में यह जोखिम बढ़कर 22 फीसदी तक का हो सकता है।
महिलाएं रहें विशेष सावधान
प्रमुख शोधकर्ता प्रो. क्यू कहते हैं, अध्ययन में दो और दिलचस्प चीजें सामने आई हैं। पहला- दस साल से अधिक समय तक पुरुषों की तुलना में नाइट शिफ्ट में काम करने वाली महिलाओं में एट्रियल फाइब्रिलेशन की संभावना अधिक हो सकती है। और दूसरा यह कि सप्ताह में 75 मिनट या अधिक समय तक मॉडरेट इंटेंसिटी का वर्कआउट करने वाले लोगों में इस रोग का जोखिम कम हो सकता है। यानी कि अगर इस गंभीर समस्या से सुरक्षित रहना है तो लोगों को जीवनशैली में विशेष सुधार की जरूरत है।
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