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इतने देशों की स्टडी का आया नतीजा
आप किसी बात पर तब भरोसा करते हैं, जब उसका सोर्स (Source) विश्वसनीय होता है. इस मामले में वैज्ञानिकों की साख धार्मिक और गैर-धार्मिक लोगों के बीच आध्यात्मिक गुरुओं की तुलना में काफी ज्यादा है. यह बात एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय स्टडी से निकल कर सामने आई है. इस स्टडी को किया है यूनिवर्सिटी ऑफ एमस्टर्डम (UvA) के शोधकर्ताओं ने.
यूनिवर्सिटी ऑफ एमस्टर्डम (UvA) के शोधकर्ताओं ने 24 देशों में वैज्ञानिकों और आध्यात्मिक गुरुओं द्वारा 10 हजार विषयों पर कई बेबुनियाद दावों (Nonsense Claims) को लोगों के सामने रखा. इसके बाद लोगों की प्रतिक्रियाओं का दस्तावेजीकरण किया. इसके बाद उसकी रिपोर्ट बनाकर 7 फरवरी 2022 को Nature Human Behavior में प्रकाशित कराया है.
इस स्टडी में भारत (लाल घेरे में) अमेरिका, इंग्लैंड. आयरलैंड, चिली, बेल्जियम, रोमानिया, ऑस्ट्रेलिया, लिथुआनिया, सिंगापुर, ब्राजील, स्पेन, जापान, इजरायल, तुर्की, कनाडा, डेनमार्क, चीन, इटली, फ्रांस, नीदरलैंड्स, मोरक्को, जर्मनी और क्रोएशिया को शामिल किया गया था. असलियत में भी इन देशों में आपको वैज्ञानिकों और आध्यात्मिक गुरुओं की मात्रा ज्यादा मिलेगी. इस चार्ट में लाल रंग की लाइनें गुरुओं के लिए और ग्रे कलर की लाइनें वैज्ञानिकों के लिए है. अब इसे देखकर हर देश की स्थिति को परख सकते हैं.
इस बात की सही जांच करने के लिए सबसे सटीक समय था कोरोना काल. जब विज्ञान की अग्निपरीक्षा शुरु हुई. क्या 1.5 मीटर की दूरी कोरोना से बचाएगी? क्या वैक्सीनेशन सुरक्षित है? क्या मास्क पहनने से कोई फायदा होगा? ज्यादातर मामलों में इन सवालों के जवाब पर लोगों की प्रतिक्रिया उनके बरसों पुराने भरोसे पर नहीं गई. बल्कि वो सबसे भरोसेमंद अथॉरिटी की ओर गए. यानी वैज्ञानिकों की तरफ.
इस स्टडी की प्रमुख शोधकर्ता सुजैन हूगइवीन ने कहा कि कोरोना के समय जितने भी मामले विवाद या चर्चा का विषय बने थे. उन सभी पर लोगों का भरोसा आध्यात्मिक गुरुओं की तुलना में वैज्ञानिकों पर ज्यादा था. हम ऐक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जो आस्था और सहानुभूति के बीच का इंटरफेस है. यानी कुछ लोग किसी चीज पर आस्था जरूर रखते हैं. लेकिन दूसरे पर सहानुभूति भी. इसका ठीक उल्टा भी होता है. किसी के लिए वही सहानुभूति, आस्था में बदल जाती है. वैज्ञानिकों और आध्यात्मिक गुरुओं के बीच कौन ज्यादा भरोसेमंद है, इसके लिए लोगों 7 अंकों पर रेटिंग करने को कहा गया था.
जब बात अत्यधिक धार्मिक विषयों पर हुई तब भी वैज्ञानिकों के दावों को लोगों ने स्पिरिचुअल गुरुओं की तुलना में ज्यादा भरोसेमंद माना. हालांकि ऐसे लोग कम थे लेकिन उनके भरोसे की तीव्रता बहुत ज्यादा थी. क्योंकि आध्यात्मिक गुरुओं द्वारा कही गई बातों को धार्मिक लोग ज्यादा मानते हैं, बजाय इस प्रयोग में शामिल गैर-धार्मिक लोगों के. यह असल में एक अंतर-सांस्कृतिक मतभेद है. यह अंतर देशों के स्तर पर भी देखने को मिला.
Study: Scientists carry greater credibility than spiritual gurus @UvA_Amsterdam @NatureHumBehav https://t.co/4a9N0Saqhq
— Phys.org (@physorg_com) February 8, 2022
देशों में यह अंतर कैसे दिखा...वो भी बताते हैं आपको. नीदरलैंड्स के लोग वैज्ञानिकों और आध्यात्मिक लोगों के बीच भरोसेमंद को लेकर उलझन में हैं. दोनों के बीच सबसे ज्यादा विश्वसनीय कौन है, तुर्की में अंतर स्पष्ट दिखाई दे रहा था. वहां लोग वैज्ञानिकों को ज्यादा मानते हैं. भारत, चीन, जापान में वैज्ञानिकों को ऊपर रखा जाता है लेकिन दोनों की विश्वसनीयता में ज्यादा अंतर नहीं दिखता.
सुजैन हूगइवीन ने कहा पूर्वी देशों में आध्यात्मिक गुरुओं को मानना उस देश की मान्यताओं में शामिल है. जबकि, पश्चिमी ईसाई देशों में ऐसे नहीं है. हालांकि हमारी स्टडी के मुताबिक एकदम स्पष्ट अंतर निकाल पाना मुश्किल है. लेकिन ज्यादातर देशों में वैज्ञानिकों को आध्यात्मिक गुरुओं की तुलना में ज्यादा भरोसेमंद माना जाता है.
सुजैन ने बताया कि हम तो सिर्फ सूचनाओं के स्रोत की क्रेडिबिलिटी यानी विश्वसनीयता को जांचना चाहते थे. हम सूचनाओं के भरोसे को परखना चाहते थे. क्योंकि इस समय बहुत कुछ है जिसकी वजह से लोग उलझन में है. जैसे- जलवायु परिवर्तन, वैक्सीनेशन, कोरोना खत्म होगा या नहीं आदि. यह खबर हाल ही में Phys.Org में प्रकाशित हुई है.
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Gulabi
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