विज्ञान

वायु प्रदूषण को लेकर चौंकाने वाली स्टडी!

jantaserishta.com
18 Jun 2022 10:06 AM GMT
वायु प्रदूषण को लेकर चौंकाने वाली स्टडी!
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न्यूज़ क्रेडिट: आजतक

नई दिल्ली: हम सब जानते हैं कि वायु प्रदूषण (Air Pollution) हमारी सेहत के लिए अच्छा नहीं है. लेकिन ये खबर और भी चिंताजनक है कि क्रोनिक वायु प्रदूषण (Chronic air pollution) की वजह से, हर व्यक्ति के जीवन में से दो से ज्यादा साल कम हो गए हैं. हाल ही में एक शोध किया गया, जिसके मुताबिक इसका असर धूम्रपान और HIV/ Aids या आतंकवाद से भी कहीं ज्यादा खराब है.

शिकागो युनिवर्सिटी (University of Chicago) के एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट (EPIC) ने अपने हाल ही के वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (Air Quality Life Index) में कहा है कि वैश्विक आबादी के 97% से ज्यादा लोग उन इलाकों में रहते हैं जहां वायु प्रदूषण बेहद ज्यादा है. एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स PM2.5 के खतरनाक स्तर को मापने के लिए सैटेलाइट डेटा का इस्तेमाल करता है. ये तैरने वाले कण हैं जो फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं.
शोध में कहा गया है कि अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा अनुशंसित ग्वोबल PM2.5 के स्तर को पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक कम कर दिया जाता है, तो औसत जीवन, करीब 2.2 साल बढ़ जाएगा.
स्मॉग की वजह से दक्षिण एशिया के लोगों के जीवन से करीब पांच साल कम हो जाते हैं. 2013 के बाद से, दुनिया में वायु प्रदूषण में हुई वृद्धि के करीब 44% के लिए भारत जिम्मेदार है.
वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है कि वायु प्रदूषण को सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे के तौर पर दरकिनार किया गया है. EPIC की AQI निदेशक क्रिस्टा हसेनकॉफ (Christa Hasenkopf) का कहना है कि अब प्रदूषण के प्रभावों को लेकर हमारी समझ बढ़ी है, अब सरकारों को इसे तुरंत पॉलिसी इश्यू के रूप में प्राथमिकता देनी चाहिए.
अगर WHO के मानकों तक पहुंच जाएं, तो चीन के लोग औसतन 2.6 साल ज्यादा जी सकते हैं. हालांकि, 2013 के बाद से, चीन में लाइफ एक्सपेक्टेंसी में करीब दो साल बढ़े हैं. क्योंकि चीन ने प्रदूषण कम करने के लिए युद्ध स्तर पर काम किया जिससे PM 2.5 का स्तर लगभग 40% तक कम हो गया.
EPIC की गणना, पिछले शोध पर आधारित थीं जिसमें दिखाया गया था कि PM2.5 के अलावा 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के संपर्क में रहने से लाइफ एक्सपेक्टेंसी लगभग एक साल कम हो जाएगी. इस साल की शुरुआत में, प्रदूषण के डेटा पर एक सर्वे किया गया था, जिसके मुताबिक 2021 में कोई भी देश WHO के 5-माइक्रोग्राम मानक तक नहीं पहुंच सका.


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