विज्ञान

वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी, दुनिया की आधी आबादी साल 2050 तक हो जाएगी मायोपिया की शिकार, जानें कैसे?

Kunti Dhruw
9 Oct 2021 2:07 PM GMT
वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी, दुनिया की आधी आबादी साल 2050 तक हो जाएगी मायोपिया की शिकार, जानें कैसे?
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हमारी जीवनशैली की आदतों का असर सीधे हमारे सेहत को प्रभावित करता है।

हमारी जीवनशैली की आदतों का असर सीधे हमारे सेहत को प्रभावित करता है। कोरोना के इस दौर में जहां ज्यादातर काम ऑनलाइन मोड में होने लग गए हैं, ऐसे में लोगों का स्क्रीन टाइम भी पहली की अपेक्षा काफी बढ़ गया है। स्क्रीन टाइम का मतलब, कंप्यूटर, मोबाइल या टीवी की स्क्रीन को देखते हुए बिताया जाने वाले समय है। इस बढ़े हुए स्क्रीन टाइम को स्वास्थ्य विशेषज्ञ सेहत के लिए काफी नुकसानदायक बताते हैं। इसी से संबंधित हाल ही में 'द लैंसेट डिजिटल हेल्थ जर्नल' में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने लोगों में बड़े खतरे को लेकर आगाह किया है।

अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि स्क्रीन टाइम का बढ़ना, बच्चों और युवाओं में मायोपिया के जोखिम को पहले की तुलना में काफी बढ़ा देता है। यदि समय रहते इससे बचाव के उपाय न किए गए तो आने वाले वर्षों में अधिकांश लोग इस समस्या से ग्रसित हो जाएंगे। वैज्ञानिकों का कहना है कि पहले मायोपिया का ज्यादा खतरा उम्र बढ़ने के साथ लोगों में हुआ करता था, हालांकि अब बढ़े हुए स्क्रीन टाइम के कारण युवा और कम उम्र के बच्चों में भी इस गंभीर नेत्र रोग का निदान किया जा रहा है। आइए आगे की स्लाइडों में इस अध्ययन के बारे में विस्तार से जानते हैं।
स्क्रीन टाइम और मायोपिया का खतरा
बढ़े हुए स्क्रीन टाइम और मायोपिया के खतरे को जानने के लिए सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, चीन और यूके के शोधकर्ताओं और नेत्र स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने विस्तृत अध्ययन किया। इसके लिए 3 महीने से लेकर 33 साल की उम्र के बच्चों और युवा वयस्कों के आंखों की जांच की गई। इनमें शामिल ज्यादातर लोगों का स्क्रीन टाइम काफी बढ़ा हुआ था। अध्ययन के विश्लेषण के आधार पर शोधकर्ताओं ने बताया कि स्मार्ट डिवाइस की स्क्रीन पर बहुत अधिक समय बिताना मायोपिया के खतरे को 30 फीसदी तक बढ़ा देता है। इसके साथ ही कंप्यूटर के अत्यधिक उपयोग के कारण यह जोखिम बढ़कर लगभग 80 प्रतिशत हो गया है।
मायोपिया की समस्या क्या है
नेत्र रोग विशेषज्ञों के मुताबिक मायोपिया (निकट दृष्टिदोष) से संबंधित समस्या है, जिसमें रोगी को अपने निकट की वस्तुएं तो स्पष्ट रूप से देखती हैं, लेकिन दूर की वस्तुएं धुंधली दिखाई पड़ती हैं। इसमें आंख का आकार बदल जाता है। सामान्यतौर पर आंख की सुरक्षात्मक बाहरी परत कॉर्निया के बड़े हो जाने के कारण ऐसी समस्या हो सकती है। ऐसी स्थिति में आंख में प्रवेश करने वाला प्रकाश ठीक से फोकस नहीं कर पाता है।
बच्चों में मायोपिया का खतरा
अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि दुनियाभर में लाखों बच्चों ने कोविड-19 महामारी के दौरान स्कूलों के बंद होने पर ऑनलाइन क्लासेज के लिए स्मार्ट फोन जैसे डिवाइस का ज्यादा इस्तेमाल किया। डिवाइस की स्क्रीन पर बहुत अधिक समय बिताने की यह आदत अब बच्चों और युवाओं में मायोपिया के खतरे को बढ़ा रही है। एंग्लिया रस्किन यूनिवर्सिटी (एआरयू) में विजन एंड आई रिसर्च इंस्टीट्यूट में ऑप्थल्मोलॉजी के प्रोफेसर प्रोफेसर बॉर्न कहते हैं, साल 2050 तक लगभग आधी वैश्विक आबादी को मायोपिया होने का खतरा है। इस संकट को देखते हुए लोगों को इस बारे में विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
क्या कहते हैं अध्ययनकर्ता?
प्रोफेसर बॉर्न कहते हैं, स्कूल बंद होने के कारण लंबे समय तक बच्चों को ऑनलाइन क्लासेज और युवाओं को वर्क फॉम होम करना पड़ा। अध्ययन में पाया गया है कि डिजिटल उपकरणों से निकलने वाली नीली रोशनी हमारे आंखों को प्रभावित करती है, जिससे मायोपिया के साथ आंखों की अन्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। दुनिया के लगभग सभी हिस्सों से मायोपिया के बढ़ते मामलों के आंकड़े सामने आ रहे हैं, हम निश्चित ही एक गंभीर समस्या की ओर बढ़ते जा रहे हैं, जिसकी रफ्तार को समय रहते कम करना बेहद आवश्यक है।
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