विज्ञान

वैज्ञानिकों ने मलेरिया के मरीजों पर किया अध्ययन, हुआ चौकाने वाला खुलासा

Gulabi
19 Dec 2020 2:14 PM GMT
वैज्ञानिकों ने मलेरिया के मरीजों पर किया अध्ययन, हुआ चौकाने वाला खुलासा
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मलेरिया के मरीजों पर अध्ययन

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोरोना महामारी से पिछले एक साल में दुनियाभर में होने वाली मौतों पर तो सबका ध्यान गया. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मलेरिया (Malaria) से केवल भारत में हर साल दो लाख से ज्यादा लोगों की मौत होती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, मलेरिया के शिकार सबसे ज्यादा बच्चे होते हैं. दो लाख में 80 हजार से ज्यादा मौतें केवल बच्चों की होती है.


यह बीमारी कैसे इतनी घातक हो जाती है कि जान बच पाना मुश्किल हो जाता है! यह करीब एक सदी से गुत्थी बनी हुई थी. अब भारतीय वैज्ञानिकों ने इस गुत्थी को सुलझा लेने का दावा किया है. यह कमाल किया है, ओडिशा के सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ कांप्लेक्स मलेरिया के वैज्ञानिकों ने.

वैज्ञानिकों ने ब्रेन इमेजिंग तकनीक से यह पता लगाया कि दिमाग पर यह बीमारी किस तरह असर डालती है. बता दें कि इस बीमारी की वजह मलेरिया प्लाजमोडियम फेल्सिपेरम परजीवी है, जो मच्छरों के काटने पर इंसानों में पहुंचता है.

मलेरिया के मरीजों पर किया अध्ययन
क्लीनिकल इन्फेक्शियस डिजीजेज में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक, दिमाग पर असर डालने वाला मलेरिया यानी सेरेब्रल मलेरिया ज्यादा घातक और जानलेवा होता है. इस रिसर्च स्टडी के लिए शोधकर्ताओं ने 26 सामान्य मरीजों समेत सेरेब्रल मलेरिया के 65 मरीज को शामिल किया गया. इसके अलावा मलेरिया से उबर चुके और जान गंवा चुके लोगों के मस्तिष्क का तुलनात्मक अध्ययन भी किया.

ब्रेन में ऑक्सीजन की कमी बढ़ाती है परेशानी
वैज्ञानिकों ने इस शोध में पाया कि अलग-अलग उम्र में संक्रमण का असर अलग-अलग होता है. जैसे, बच्चों में दिमागी सूजन बढ़ती है, जबकि बढ़ती उम्र में समय के साथ सूजन घटती है. उनके मुताबिक, वयस्कों में दिमागी सूजन और मौत के बीच कोई संबंध नहीं मिला.

रिसर्च में यह भी सामने आया कि ब्रेन में ऑक्सीजन की कमी गंभीर मरीजों के लिए परेशानी बढ़ाती है. उनके दिमागी संरचना पर इसका बुरा असर होता है. शोधकर्ताओं का मानना है कि मलेरिया से मौत के मामलों में कमी लाने के लिए इसके खतरे को समझने और नाजुक हालत होने से बचाने वाला सिस्टम विकसित करने की जरूरत है.

ब्रेन इमेजिंग तकनीक से आसान हुआ अध्ययन
लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के वैज्ञानिक सैम वासमेर भी इस रिसर्च का हिस्सा थे. उनका कहना है कि पिछले कई सालों से वैज्ञानिक मलेरिया के परजीवी को समझने के लिए अटॉप्सी पर निर्भर थे. इस वजह से मलेरिया के सर्वाइवर और मृतकों के केस का तुलनात्मक अध्ययन नहीं हो पा रहा था. लेकिन अब न्यूरो ब्रेन इमेजिंग तकनीक से यह समझ पाना आसान हुआ है.

इलाज के बावजूद हर 5वें मरीज की मौत
वैज्ञानिकों के मुताबिक, मलेरिया से पीड़ित हर पांचवे मरीज की इलाज के बावजूद मौत हो रही है. जिनकी जान बच जाती है, उनमें ब्रेन से जुड़े साइड इफेक्ट देखने को मिलते हैं. बता दें कि अलग-अलग उम्र के मरीजों में ब्रेन पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने के लिए वैज्ञानिक पिछले 100 साल से जुटे हैं.

अब नया ट्रीटमेंट तैयार करने की कोशिश
इस रिसर्च से जुड़ै एक और अध्ययनकर्ता प्रो संजीब मोहंती का कहना है, सेरेब्रल मलेरिया के ट्रीटमेंट के लिए एक नई थेरेपी तैयार करने की कोशिश कर जा रही है. यह थेरेपी ऐसी होगी, जो मरीजों के ब्रेन में ऑक्सीजन की कमी होने पर भी बुरा असर नहीं पड़ने देगी. उनके मुताबिक अगर इसमें सफलता मिलती है तो मलेरिया से होने वाले मौत के आंकड़े काफी हद तक कम हो सकेंगे.


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