विज्ञान

वैज्ञानिकों ने खोजा प्लास्टिक वेस्ट को खत्म करने का नया तरीका

Gulabi Jagat
4 April 2022 11:45 AM GMT
वैज्ञानिकों ने खोजा प्लास्टिक वेस्ट को खत्म करने का नया तरीका
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प्लास्टिक वेस्ट को खत्म करने का नया तरीका
New enzyme for plastic waste : ब्रिटेन के साइंटिस्टों ने प्लास्टिक वेस्ट (plastic waste) यानी प्लास्टिक के कचरे की वैश्विक समस्या के प्राकृतिक निदान की दिशा में अहम कदम बढ़ाया है. यहां कि यूनिवर्सिटी ऑफ पोर्ट्समाउथ (University of Portsmouth) की गई स्टडी में रिसर्चर्स ने एक विशेष एंजाइम (enzyme) का पता लगाया है, जो टीपीए यानी टेरेफ्थेलेट (terephthalate) को तोड़ने में सक्षम है. टीपीए का इस्तेमाल पीईटी यानी पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट (polyethylene terephthalate) प्लास्टिक बनाने में किया जाता है. आपको बता दें कि पीईटी प्लास्टिक से एक बार उपयोग वाली पेय पदार्थ की बोतलें, कपड़े व कालीन आदि का निर्माण किया जाता है.
इस स्टडी का नेतृत्व मोंटाना स्टेट यूनिवर्सिटी (Montana State University) के प्रोफेसर जेन डुबाइस (Professor Jen DuBois) और पोर्ट्समाउथ यूनिवर्सिटी (University of Portsmouth) के प्रो. जॉन मैकगीहन (John McGeehan) ने किया. इन्होंने साल 2018 में एक अंतरराष्ट्रीय टीम का नेतृत्व किया था, जिसने पीईटी प्लास्टिक को तोड़ने में सक्षम एक प्राकृतिक एंजाइम का निर्माण किया था.
इस स्टडी का निष्कर्ष 'द प्रोसीडिंग्स आफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (The Proceedings of the National Academy of Sciences)' यानी पीएनएएस जर्नल में प्रकाशित हुआ है.
क्या कहते हैं जानकार
प्रो. जॉन मैकगीहान (John McGeehan) के अनुसार, 'पिछले कुछ वर्षों में एंजाइम इंजीनियरिंग के जरिये पीईटी प्लास्टिक को बिल्डिंग ब्लाक्स के रूप में तोड़ने की दिशा में अविश्वसनीय प्रगति हुई है. इसके जरिये बिल्डिंग ब्लाक्स को सामान्य अणुओं में तब्दील कर दिया जाता है. इसके बाद बैक्टीरिया के जरिये प्लास्टिक कचरे को खाद के रूप में तब्दील कर दिया जाता है. उन्होंने आगे बताया कि हमने डायमंड लाइट सोर्स पर शक्तिशाली एक्स-रे के इस्तेमाल से टीपीएडीओ एंजाइम का 3डी ढांचा तैयार किया, जिससे पता चला कि ये किस प्रकार प्रतिक्रिया करता है.
हर साल 400 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता है, जिसका अधिकांश भाग लैंडफिल में समाप्त हो जाता है, यह आशा की जाती है कि यह कार्य टीपीएडीओ जैसे जीवाणु एंजाइमों में सुधार के द्वार खोलेगा. ये प्लास्टिक प्रदूषण की चुनौती से निपटने और जैविक प्रणालियों (biological systems) को विकसित करने में मदद करेगा, जो बेकार प्लास्टिक को मूल्यवान उत्पादों में बदल सकता है.
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