- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- विज्ञान
- /
- शोध में खुलासा: फोन पर...
x
स्मार्टफोन और टैबलेट में उपयोग की जाने वाली टच स्क्रीन तकनीक को बिना किसी बदलाव के एक शक्तिशाली सेंसर के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
स्मार्टफोन और टैबलेट में उपयोग की जाने वाली टच स्क्रीन तकनीक को बिना किसी बदलाव के एक शक्तिशाली सेंसर के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने बताया है कि किस तरह स्क्रीन पर मिट्टी या पीने के पानी के नमूने डालकर प्रदूषण के बारे में पता लगाया जा सकता है। पहली बार इस तरह की खोज हुई है जिसमें आम आयनिक प्रदूषकों की पहचान करने के लिए एक सामान्य टच स्क्रीन का उपयोग किया जा सकता है।
फोन की स्क्रीन पर पानी की बूंद डाली: इस तकनीक की मदद से आप पानी को पीने से पहले अपने फोन में इसकी एक बूंद डाल कर पता लगा सकते है कि यह सुरक्षित है या नहीं। टच स्क्रीन सेंसर की संवेदनशीलता विशेष तरह के लैब आधारित उपकरणों के बराबर है, जो इस तरह के कामों को अंजाम दे सकती है।
एक सामान्य स्मार्टफोन की स्क्रीन इलेक्ट्रोड के ग्रिड से ढकी होती है और जब एक उंगली इन इलेक्ट्रोड के स्थानीय विद्युत क्षेत्र को बाधित करती है, तो फोन सिग्नल में बदल जाता है। अन्य टीमों ने भी इस तरह के प्रयोगों को समझने के लिए स्मार्टफोन की गणना करने की शक्ति का उपयोग किया है, लेकिन ये कैमरे या परिधीय उपकरणों पर निर्भर हैं या इनमें स्क्रीन में महत्वपूर्ण बदलाव करने की आवश्यकता होती है।
शोधकर्ताओं ने कैपेसिटेंस में बदलाव को मापने के लिए स्क्रीन पर तरल पदार्थों को डाला और टच स्क्रीन परीक्षण सॉफ्टवेयर का उपयोग करके प्रत्येक बूंद से माप को दर्ज किया। तरल में मौजूद सभी आयन स्क्रीन के विद्युत क्षेत्रों के साथ आयनों की सांद्रता और उनके आवेश के आधार पर अलग-अलग तरीके से परस्पर क्रिया करते हैं। यहां बताते चले कि कैपेसिटेंस -विद्युत आवेश को जमा करने की एक प्रणाली है।
स्मार्टफोन का सेंसर प्रदूषण को मापेगा
बर्लिन। जर्मनी के वैज्ञानिक भी एक ऐसे सेंसर का विकास कर रहे हैं जो स्मार्टफोन के साथ जोड़ा जाएगा और हवा में मौजूद धूल के स्तर को माप कर उसका मानचित्र बनाएगा। सेंसर साधारण ऑप्टिकल सेंसर के अनुरूप ही होगा। कम्प्यूटर विज्ञानी मथ्थिआस बड ने कहा कि इंफ्रारेड एलईडी के स्थान पर स्मार्टफोन में फ्लैश एलईडी को ही धूल की गणना करने वाले क्षेत्र के लिए प्रयोग में लाया जाएगा।
कंप्यूटर सिमुलेशन के साथ शुरुआत की
कैम्ब्रिज के डॉ. रोनन डेली ने कहा हम जानना चाहते थे कि क्या हम स्क्रीन को बिना बदलेे, तकनीक के साथ एक अलग तरीके से काम कर सकते हैं। शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर सिमुलेशन के साथ शुरुआत की और फिर एक टच स्क्रीन का उपयोग करके अपने सिमुलेशन को सत्यापित किया। हालांकि अब टच स्क्रीन का उपयोग करके आयनों का पता लगाना संभव है। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि वे तकनीक को और विकसित करेंगे ताकि यह अणुओं की एक विस्तृत श्रृंखला का पता लगा सके। यह संभावित स्वास्थ्य संबंधी प्रयोगों के लिए उपयोग किया जा सकता है।
Next Story