विज्ञान

तरबूज पर हुए शोध, पता चला कहां हुआ था सबसे पहले पैदा

Gulabi
29 May 2021 3:59 PM GMT
तरबूज पर हुए शोध, पता चला कहां हुआ था सबसे पहले पैदा
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दुनिया में फलों (Fruits) का भी अपना इतिहास रहा है

दुनिया में फलों (Fruits) का भी अपना इतिहास रहा है. वे सबसे पहले कहां उगाए गए. सबसे ज्यादा कहां उगाए, कहां कहां और कैसे फैले. इनमें तरबूज की कहानी जरा रोचक है क्योंकि हाल ही में हुए एक शोध ने तरबूज (Water Melon) की वास्तविक उत्पत्ति के बारे में दशकों पुरानी धारणा को तोड़ा है. अब नए शोध के मुताबिक तरबूज दक्षिणी अफ्रिका (Southern Africa) में नहीं बल्कि सबसे पहले मिस्र में उगाए गए थे.

प्रोसिडिगंस ऑप द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में प्रकाशित इस नए अध्ययन में घरेलू तरबूज (Watermelon) के उत्पत्ति की कहानी फिर से लिखी गई है. वैज्ञानिकों ने सभी और सैकड़ों प्रजातियों (Species) वाले तरबूज जो ग्रीनहाउस पौधों से पैदा किए थे, के डीएनए का अध्ययन किया और पाया कि तरबूज उत्तरपूर्वी अफ्रिका (Africa) के जगंली फसल से आए थे.
इस अध्ययन ने 90 साल पुरानी गलती को सुधारा है. तब से कहा जा रहा है कि रसीले तरबूज (Watermelon) दक्षिणी अफ्रीकी (South African) सिट्रॉन मेलन की श्रेणी में ही आया करते हैं. लेकन इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और सेंट लुईस में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी ने पाया कि सूडान का मीटा सफेद तरबूज जिसे कोरडोफैन तरबूज कहते हैं वह खेती कर उगाया जाना वाला सबसे नजदीकी तरबूज है. इस जेनेटिक शोध (Genetic Research) के नतीजे हाल ही में पाई गई मिस्र की एक पेंटिंग से मेल खाते है जिसमें दिख रहा है कि तरबूज 4 हजार साल पहले के समय से नील नदी के रेगिस्तान में खाए जाते थे
वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के आर्ट्स एंड साइंसेस में जीवविज्ञान की प्रोफेसर सुजैन एस रेनर ने बताया कि डीएनए (DNA) के आधार उनकी टीम ने पाया कि जिस तरह का तरजूब (Watermelon) आज प्रचलित है, जो मीठा, लाल और कच्चा खाने वाला होता है, वह पश्चिम और उत्तर पूर्व अफ्रीका (Africa) के जंगली तरबूज के सबसे करीब है. रेनर इवोल्यूशनरी बायोलॉजिस्ट है जो 17 साल तक जर्मनी की म्यूनिख में लुडविंग मैक्जिमिलन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के तौर पर काम करने के बाद हाल में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी से जुड़ी है.
जर्मनी में रेनर म्यूनिख बॉटेनिकल गार्डन और म्यूनिख हर्बेरियम के निदेशक भी रही हैं. उनकी लैब ने लंबे समय तक हनी मेलन और ककड़ी की प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन पिछले 10 सालों ने वे तरबूज (Watermelon) और करेले पर शोध कर रही थीं. यह अनुवांशिकी अध्ययन (Genetic Research) न्यूयॉर्क में अमेरिकी कृषि विभाग, लंदन में क्वे के द रॉयल बॉटेनिक गार्डन, और शेफील्ड यूनिवर्सिटी के साथियों के सहयोग से पूरा हुआ. रेनर का कहना है कि यह अध्ययन और ज्यादा रोगप्रतिरोधी तरबूज (Disease Resistant Watermelon) विकसित करने में काम आ सकता है
रेनर ने बताया कि आज के तरबूज (Watermelon) बहुत ही छोटे अनुवांशिकी (Genetic) समूह में आते हैं और उनमें बीमारी और कीड़े लगने की संभावना बहुत ज्यादा है जिसमें बहुत सारे वायरस, फफूंद और कीड़े शामिल हैं. अभी तक रेनर की टीम ने तीन बीमारी का प्रतिरोध (Disease Resistance) करने वाले जीन्स को खोज निकाला है. किसान इसका उपयोग कर सकते हैं.
इस अध्ययन की सबसे खास बात यह है कि इसमें शोधकर्ताओ ने तरबूज (Watermelon) के सांकृतिक संबंध की जानकारी निकाली है. रेनर के मुताबिक सबसे पहले मिस्र के गुंबद की पेंटिंग ने यह दिखाया कि मिस्र (Egyptians) के लोग भी तरबूज खाया करते थे. इनकी तस्वीरों में अंगूर और दूसरे मीठे फलों के साथ तरबूज को भी जगह दी गई है. खरबूज, खीरे और तरबूज की कई बार खेती (Farming) किए जाने के प्रमाण मिले हैं.
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