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कृषि वैज्ञानिकों ने खोजा समाधान, बासमती चावल को लेकर ये संकट होगी दूर

Gulabi Jagat
4 April 2022 11:21 AM GMT
कृषि वैज्ञानिकों ने खोजा समाधान, बासमती चावल को लेकर ये संकट होगी दूर
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कृषि वैज्ञानिकों ने खोजा समाधान
तय मानक से अधिक कीटनाशक मिलने की वजह से बासमती चावल (Basmati Rice) के एक्सपोर्ट पर मंडरा रहे संकट का समाधान भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने खोज लिया है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), पूसा ने तीन ऐसी किस्में विकसित की हैं जिनमें रोग नहीं लगेगा. ऐसे में कीटनाशक डालने की जरूरत नहीं होगी. जिससे एक्सपोर्ट में अड़चन नहीं आएगी. सेहत से जुड़े पहलुओं के कारण दुनिया भर में अब केमिकल फ्री कृषि प्रोडक्ट की मांग होने लगी है. उधर, यूरोपियन यूनियन ने आयातित खाद्यान्नों में कीटनाशक (Pesticide) की मात्रा पहले से तय मानक से और घटा दिया था. इस वजह से बासमती चावल का एक्सपोर्ट प्रभावित हो रहा था.
बासमती धान की किस्मों पर सबसे ज्यादा काम करने वाले पूसा ने तीन नई किस्में जारी की हैं, जो रोगरोधी हैं. बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन (BEDF) के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. रितेश शर्मा ने बताया कि आईएआरआई पूसा ने बासमती 1509 का सुधार करके 1847 बनाया है. इसी तरह 1121 का सुधार करके 1885 और 1401 का सुधार करके 1886 नाम से नई किस्म तैयार की है. ये तीनों रोगरोधी हैं. इसलिए इनमें कीटनाशकों की जरूरत नहीं होगी.
किन रोगों से मुक्त हैं नई किस्में
डॉ. शर्मा ने बताया कि पूसा बासमती की तीनों नई किस्में बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट यानी जीवाणु झुलासा नहीं लगेगा. झोंका या ब्लास्ट रोग भी नहीं होगा. ब्लॉस्ट रोग के नियंत्रण के लिए ट्राइसायक्लाजोल डालते थे, जिसकी वजह से एक्सपोर्ट (Export) में दिक्कत आई थी. लेकिन अब ऐसी समस्या आने की गुंजाइश काफी कम है. इन नई किस्मों की वजह से एक्सपोर्ट में इजाफा होगा. इन रोगों की वजह से ही किसान दुकानदारों के झांसे में आकर पेस्टिसाइड डाल देते थे. जिससे दिक्कत होती थी.
बासमती धान में लगने वाली प्रमुख बीमारियां
क्वीन ऑफ राइस कहे जाने वाले बासमती कई ऐसे रोग लगते हैं, जिनके कंट्रोल के लिए किसान कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं. इसमें ब्लॉस्ट रोग लगता है. पत्तियों में आंख जैसे धब्बे बनते हैं. वो बढ़ता जाता है और पत्तियां जल जाती हैं. जब बाली बाती है तो वहां स्पॉट पड़ता है और बाली टूट जाती है. जबकि बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट (BLB) में पत्ती ऊपर से नीचे की ओर सूखती चली जाती है. इसके अलावा शीथ ब्लाइट नामक बीमारी भी होती है, जिसमें तने में चॉकलेट रंग के धब्बे बनते हैं. जो बढ़कर पौधे को गला डालते हैं.
तय है एमआरएल
दरअसल, फसलों में कीटनाशक का अधिकतम अवशेष स्तर ( MRL-Maximum Residue limit) तय है. उससे अधिक होने पर एक्सपोर्ट में बाधा आती है. ऐसे में सरकार कीटनाशकों का इस्तेमाल कम से कम करना चाहती है. कीटनाशक नकली हो या फिर उसकी मात्रा ज्यादा हो तो चावल में उसका अवशेष मिलता है. जिससे वो एक्सपोर्ट में फेल हो जाता है.
शर्मा का कहना है कि यदि आप धान के खेत में जरूरत से अधिक यूरिया नहीं डाल रहे हैं और पानी का मैनेजमेंट सही है तो दवा डालने की जरूरत ही नहीं होगी. बता दें कि भारत से सालाना करीब 32 हजार करोड़ रुपये का बासमती चावल एक्सपोर्ट होता है.
क्या हुई थी दिक्कत
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार यूरोपियन यूनियन की एक ऑडिट रिपोर्ट में दावा किया गया था कि बासमती चावल में 19.9 प्रतिशत कीटनाशक का अंश पाया गया था. कुल 1128 में से 45 सैंपल में कीटनाशक अवशेष की मात्रा तय मानक से अधिक मिली थी. इसके बाद भारत बासमती एक्सपोर्ट में परेशानी का सामना कर रहा था.
ऐसे में सरकार ने कीटनाशकों के इस्तेमाल को लेकर जागरूकता फैलाई. लेकिन, नई किस्मोंं ने सरकार और किसानों दोनों का रास्ता आसान कर दिया है. यूरोपियन यूनियन, अमेरिका सहित कई देशों ने ट्राइसाइक्लाजोल एवं आइसोप्रोथिओलेन जैसे कीटनाशकों की अधिकतम अवशेष सीमा 0.01 मिलीग्राम प्रति किलो तय की है. इससे अधिक पर दिक्कत आएगी.
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