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धर्म-अध्यात्म
जाने घर आए अतिथि या मेहमान का आदर सत्कार करना क्यों है जरूरी
Apurva Srivastav
28 Feb 2021 1:21 PM GMT
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अतिथि को मेहमान समझा जाता है। ऐसा मेहमान या आगुंतक जो बगैर किसी सूचना के आए उसे अतिथि कहते हैं।
अतिथि को मेहमान समझा जाता है। ऐसा मेहमान या आगुंतक जो बगैर किसी सूचना के आए उसे अतिथि कहते हैं। हालांकि जो सूचना देकर आए वह भी स्वागत योग्य है। अतिथि का शाब्दिक अर्थ परिव्राजक, सन्यासी, भिक्षु, मुनि, साधु, संत और साधक से भी है। तिथि देवो भव: अर्थात अतिथि देवता के समान होता है। घर आए अतिथि को अन्य जल ग्रहण कराना क्यों जरूरी है, आओ जानते हैं।
1. घर आया मेहमान यदि जल ग्रहण नहीं कर पाता है तो इससे राहु का दोष लगता है। अतिथि को कम से कम जल तो ग्रहण कराना ही चाहिए।
2. अन्न या स्वल्पाहर कराने से जहां उस अतिथि को भी लाभ मिलता है वहीं स्वागतकर्ता को भी लाभ मिलता है।
3. गृहस्थ जीवन में रहकर पंच यज्ञों का पालन करना बहुत ही जरूरी बताया गया है। उन पंच यज्ञों (1. ब्रह्मयज्ञ, 2. देवयज्ञ, 3. पितृयज्ञ, 4. वैश्वदेव यज्ञ, 5. अतिथि यज्ञ।) में से एक है अतिथि यज्ञ। यह प्रत्येक का कर्तव्य है।
4. अतिथि यज्ञ को पुराणों में जीव ऋण भी कहा गया है। यानि घर आए अतिथि, याचक तथा चींटियां-पशु-पक्षियों का उचित सेवा-सत्कार करने से जहां अतिथि यज्ञ संपन्न होता हैं वहीं जीव ऋण भी उतर जाता है।
5. तिथि से अर्थ मेहमानों की सेवा करना उन्हें अन्न-जल देना। अपंग, महिला, विद्यार्थी, संन्यासी, चिकित्सक और धर्म के रक्षकों की सेवा-सहायता करना ही अतिथि यज्ञ है। इससे संन्यास आश्रम पुष्ट होता है। यही पुण्य है। यही सामाजिक कर्त्तव्य है।
6. प्रकृति का यह नियम है कि आप जितना देते हैं वह उससे दोगुना करके लौटा देती है। यदि आप धन या अन्न को पकड़ कर रखेंगे तो वह छूटता जाएगा। दान में सबसे बड़ा दान है अन्न दान। दान को पंच यज्ञ में से एक वैश्वदेवयज्ञ भी कहा जाता है।
7. गाय, कुत्ते, कौवे, चिंटी और पक्षी के हिस्से का भोजन निकालना जरूरी है, क्योंकि ये भी हमारे घर के अतिथि होते हैं।
8. किसी ऋषि, मुनि, संन्यासी, संत, ब्राह्मण, धर्म प्रचारक आदि का अचानक घर के द्वार पर आकर भिक्षा मांगना या कुछ दिन के लिए शरण मांगने वालों को भगवान का रूप समझा जाता था। घर आए आतिथि को भूखा प्यासा लोटा देना पाप माना जाता था। यह वह दौर था जबकि स्वयं भगवान या देवता किसी ब्राह्मण, भिक्षु, संन्यासी आदि का वेष धारण करके आ धमकते थे। प्राचीन काल में 'ब्रह्म ज्ञान' प्राप्त करने के लिए लोग ब्राह्मण बनकर जंगल में रहने चले जाते थे। आश्रम के मुनि उन्हें भिक्षा मांगने ग्राम या नगर में भेजते थे। उसी भिक्षा से वे गुजारा करते थे।
9. घर आए किसी भी मेहमान या आगुंतक का स्वागत सत्कार करना, अन्न या जल ग्रहण काराने से आपके सामाजिक संस्कार का निर्वहन होता है जिसके चलते मान सम्मान और प्रतिष्ठा बढ़ती है।
10. अतिथियों की सेवा से देवी और देवता प्रसन्न होकर जातक को आशीर्वाद देते हैं।
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