धर्म-अध्यात्म

खुल गए विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ के कपाट, जानिए केदारलिंग और धाम की रहस्यमयी बातें

Kunti Dhruw
17 May 2021 12:01 PM GMT
खुल गए विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ के कपाट, जानिए केदारलिंग और धाम की रहस्यमयी बातें
x
आज खुले केदारनाथ धाम के कपाट, जानें पंचकेदार का महत्व

विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ के कपाट छह माह के शीतकालीन अवकाश के बाद आज सुबह पांच बजे खोल दिए गए हैं। कोरोना वायरस के कारण केदारनाथ धाम में कपाट खुलने के मौके पर पुजारी और व्यवस्थाओं से जुड़े गिने-चुने लोग ही वहां पर मौजूद थे। केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही चार में तीन धामों के कपाट खुल गए हैं। वहीं आगामी मंगलवार 18 मई को भगवान बद्रीनाथ के कपाट सुबह सवा चार बजे ब्रह्म मुहूर्त में खुल जाएंगे। कोविड के कारण यहां श्रद्धालुओं को आने की अनुमति नहीं होगी। इससे पहले, शुक्रवार 14 मई को यमुनोत्री के कपाट और शनिवार पांच मई को गंगोत्री के कपाट खोल दिए गए हैं। चार धामों के नाम से मशहूर बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट हर साल छह माह के शीतकालीन अवकाश के बाद अप्रैल-मई में श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं।

कपाट खुलते ही दिखता है यह चमत्कार
भगवान शिव के प्रमुख द्वादश ज्योतिर्लिंग में से 11 वां ज्योतिर्लिंग केदारनाथ है। यहां भगवान शिव की पूजा विग्रह रूप में की जाती है, जो बैल की पीठ जैसे त्रिकोणाकार रूप में है। बताया जाता है कि मंदिर के कपाट बंद करते समय एक दीप प्रज्वलित कर किया जाता है और फिर 6 महीने बाद जब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, तब यह दीप जलता हुआ मिलता है। मान्यता है कि इन 6 महीनों में देवतागण केदारधाम में शिवजी की पूजा करते हैं और इस दीपक को जलाए रखते हैं। कपाट खुलने के बाद इस प्रज्वलित दीप के दर्शन करना बहुत पुण्यदायी माना गया है।
भगवान शिव ने दिए इस तरह दर्शन
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत युद्ध में अपने परिजनों का अंत करने के कारण भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे अंतर्धान होकर केदार में जाकर बस गए। पांडव उनका पीछा करते-करते केदारधाम पहुंच गए। जब भगवान शिव ने पांडवों को देखा तो बैल बन गए अन्य जानवरों के पीछे छिप गए। पांडवों को शक हुआ तो भीम ने विशालकाय शरीर धारण कर लिया और दो पहाड़ों के बीच में अपने दोनों पैर रख लिए। अन्य सभी गाय-बैल तो भीम के पैरों के बीच में से निकल गए लेकिन बैल के रूप में भगवान शिव जाने को तैयार नहीं हुए। भीम को समझ में आ गया कि यही भगवान शिव हैं तो उन्होंने बैल की पीठ का त्रिकोण भाग पकड़ लिया। भगवान शिव पांडवों की भक्ति और दृढ़ संकल्प देखकर प्रसन्न हो गए। उन्होंने पांडवों को दर्शन दिए और उनको सभी पाप से मुक्त कर दिया। उसी समय से यहां शिवलिंग बैल की पीठ की आकृति के रूप में पूजा की जाती है।
इसलिए कहा जाता है पंचकेदार
माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमांडू में प्रकट हुआ, जो पशुपतिनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ, नाभि मद्महेश्वर और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुईं। इसलिए इन चार स्थानों को केदारनाथ धाम मिलाकर पंच केदार कहा जाता है।
केदारनाथ धाम का है सर्वोच्च स्थान
बारह ज्योतिर्लिंग में केदारनाथ धाम का श्रेष्ठ स्थान है। यहां भगवान शिव के पृष्ठ भाग के दर्शन होते हैं। केदार का अर्थ है दलदल। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली के मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसका निर्माण पांडवों ने कराया था। जबकि आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। साल 2013 में आई भीषण आपदा भी मंदिर का कुछ नहीं करपाई। मंदिर के गर्भगृह में केदारनाथ धाम का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है, जो अनगढ़ पत्थर का है।
बेहद पवित्र है मद्महेश्वर मंदिर का जल
मद्महेश्वर मंदिर, मद्महेश्वर नदी के स्रोत के पास स्थित है। मद्महेश्वर द्वितीय केदार हैं और यहां भगवान शिव के मध्य भाग के दर्शन होते हैं। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा नाभि लिंगम् के रूप में की जाती है। मान्यता है कि यहां का जल बहुत पवित्र है और मोक्ष के लिए कुछ बूंदे हीं पर्याप्त हैं। शीतकाल में 6 माह के लिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और कपाट खुलने के बाद ही पूजा-अर्चना की जाती है। मद्महेश्वर मंदिर जाने के लिए रुद्रप्रयाग में बसें मिलती हैं।
1000 साल से भी पुराना है भगवान तुंगनाथ मंदिर
पंचकेदारों में तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ हैं। यह मंदिर केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम के बीच स्थित है। डेढ़ किमी की चढ़ाई के बाद मून माउंटेन के नाम से प्रसिद्ध चंद्र शिवा नामक चोटी के दर्शन होते हैं। यहां भगवान शिव के हृदय स्थल और शिव की भुजा की आराधना होती है। कथाओं के अनुसार, कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडव के हाथों बड़ी संख्या में नरसंहार से भगवान शिव पांडवों से काफी रुष्ट हो गए थे। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने मंदिर का निर्माण करवाया। बताया जाता है कि यह मंदिर 1000 साल से भी अधिक पुराना है। यहां भी शीतकाल में कपाट बंद कर दिए जाते हैं। शीतकाल में मक्कूमठ में भगवान तुंगनाथ की पूजा की जाती है। एक मान्यता यह भी है कि भगवान राम ने जब रावण का वध किया था, तब भगवान राम ने ब्रह्महत्या के शाप से मुक्त होने के लिए यहीं तपस्या की थी। तभी से इस जगह का नाम चंद्र शिला पड़ गया।
रुद्रनाथ मंदिर में होती है भगवान शिव के चेहरे की पूजा
चतुर्थ केदार के रूप में भगवान रुद्रनाथ विख्यात हैं, यह मंदिर उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है। रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। विश्व में अकेला ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव के चेहरे की पूजा की जाती है। एकानन के रूप में रुद्रनाथ, चतुरानन के रूप में पशुपति नेपाल में पंचानन विग्रह के रूप में इंडोनेशिया में भगवान शिव के दर्शन होते हैं। यहां पूजे जाने वाले शिवजी के मुख को नीलकंठ महादेव कहते हैं। विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर में शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति है। यहां भगवान शिव गर्दन को टेढ़ी किए हुए हैं। मंदिर की एक ओर पांडवों के साथ द्रौपदी के छोटे-छोटे मंदिर मौजूद है। इस मंदिर के कपाट भी शीतकाल में बंद कर दिए जाते हैं। शीतकाल में इनकी पूजा रुद्रनाथ की गद्दी गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में की जाती है।
पंचकेदार है कल्पेश्वर महादेव
पंच केदार के रूप में कल्पेश्वर महादेव मंदिर काफी विख्यात है और इनको कल्पनाथ के नाम से भी जाना जाता है। यहां भगवान शिव की जटाओं के दर्शन किए जाते हैं और 12 महीने यहां भगवान शिव के दर्शन होते हैं। बताया जाता है कि इस स्थान पर दुर्वासा ऋषि ने कल्प वृक्ष के नीचे घोर तपस्या की थी। तभी से यह स्थान कल्पेश्वर या कल्पनाथ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। अन्य कथाओं में बताया जाता है कि देवताओं ने असुरों के अत्याचार से त्रस्त होकर कल्पस्थल में नारायण स्तुति की और भगवान शिव के दर्शन कर अभय वरदान प्राप्त किया था। यहां भगवान शिव की जटा जैसी प्रतीत होती हुई चट्टानें मिलती हैं।


Next Story