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प्राचीन काल में ऐसी कई भाषाएं या उनकी लिपियां लुप्त होकर अब रहस्य का विषय बनी हुई है।
प्राचीन काल में ऐसी कई भाषाएं या उनकी लिपियां लुप्त होकर अब रहस्य का विषय बनी हुई है। भारत की इन लिपियों का रहस्य खुल जाए तो भारत के प्राचीन इतिहास का भी एक नया ही आयाम खुल सकता है। भारत में कई जगह ऐसी लिपियों में कुछ लिखा हुआ है जिन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। यदि किसी भी तरह से इन्हें पढ़ लिया गया तो इतिहास बदल सकता है।
जैसे कई गुफाओं में पाई गई चित्रलिपि या न मालूम किस भाषा में लिखे गए शिलालेख, मुद्रा और स्तंभों पर खुदी भाषा आज के भाषाविदों के लिए अभी भी अनसुलझी गुत्थी है। इसी क्रम में कुछ लोग ऐसे लेख या किताबें लिख गए है जिनकी भाषा वतर्ममान में प्रचलीत भाषा से भिन्न है और जिन्हें अभी तक नहीं पढ़ा जा सकता है। यह लिपियां गुहा चित्रों, भग्नावशेषों, समाधियों, मंदिरों, मृदाभांडों, मुद्राओं के साथ शिलालेखों, चट्टान लेखों, ताम्रलेखों, भित्ति चित्रों, ताड़पत्रों, भोजपत्रों, कागजों एवं कपड़ों पर अंकित है। कई वर्षों के शोध के बाद भी अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि इन मुद्राओं या शिलालेखों में क्या लिखा है। जिस दिन इसका पता चलेगा इतिहास का एक नया पन्ना खुलेगा। ऐसी ही कुछ नई और कुछ प्राचीन रहस्यमयी लिपियों के बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे।
1. रहस्यमयी लिपि : बालूमाथ चंदवा के बीच रांची मार्ग पर नगर नामक स्थान में एक अति प्राचीन मंदिर है जो भगवती उग्रतारा को समर्पित है। यह एक शक्तिपीठ है। बालूमाथ से 25 किलोमीटर दूर प्रखंड के श्रीसमाद गांव के पास तितिया या तिसिया पहाड़ के पास चतुर्भुजी देवी की एक मूर्ति मिली है, जिसके पीछे अंकित लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।
2. शंख लिपि : कुछ प्राचीन लिपियां आज भी एक अनसुलझी पहेली बनी हुई हैं। उनमें लिखित अभिलेख आज तक नहीं पढ़े जा सके हैं। भारत तथा जावा और बोर्नियो में प्राप्त बहुत से शिलालेख शंखलिपि में हैं। इस लिपि के वर्ण 'शंख' से मिलते-जुलते कलात्मक होते हैं। इसीलिए शंख लिपि कहते हैं।
शंख लिपि को विराटनगर से संबंधित माना जाता है। उदयगिरि की गुफाओं की शिलालेखों और स्तंभों पर यह लिपि खुदी हुई है। इस लिपि के अक्षरों की आकृति शंख के आकार की है। प्रत्येक अक्षर इस प्रकार लिखा गया है कि उससे शंखाकृति उभरकर सामने दिखाई पड़ती है। इसलिए इसे शंखलिपि कहा जाने लगा।
3. सिंधु घाटी की लिपि : नए शोधानुसार माना जाता है कि सिंधु घाटी के लोग द्रविढ़ियन आर्य या वैदिक धर्म का पालन करते थे। लेकिन इन लोगों की भाषा कौन-सी थी यह आज भी एक रहस्य है। सिंधु घाटी की लिपि आज तक नहीं पढ़ी जा सकी, जो किसी युग में निश्चय ही जीवंत भाषा रही होगी।
नए शोधानुसार हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिले बर्तन समेत अन्य वस्तुओं पर सिंधु घाटी सभ्यता की अंकित चित्रलिपियों को पढ़ने की कोशिशें लगातार जारी हैं। गोंडी भाषा के विद्वान आचार्य तिरु मोतीरावण कंगाली का दावा है कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सैंधवी लिपियां गोंडी में ज़्यादा सुगमता से पढ़ी जा सकती हैं। सैंधवी लिपि को पढ़ने की कोशिश करने वाले डॉक्टर जॉन मार्शल सहित आधे दर्जन से अधिक भाषा और पुरातत्वविदों के हवाले से मोतीरावण कंगाली कहते हैं, 'सिन्धु घाटी सभ्यता की भाषा द्रविड़ पूर्व (प्रोटो द्रविड़ीयन) भाषा थी।'
एक अन्य शोधानुसार सदियों पुरानी धारणा कि सिंधु लिपि एक भाषा है, इसके विपरीत एक अनुभवी विज्ञान इतिहासकार बी.वी.सुब्बारायप्पा ने दावा किया है कि यह लिपि संख्यात्मक है, जो सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरों और कलाकृतियों पर अंकित संख्याओं और प्रतीकों से स्पष्ट है। संख्यात्मक सिंधु लिपि की बेजोड़ विशिष्टताओं को दिखाते हुए उन्होंने कहा कि घाटी के लोग व्यापक रूप से अपने दैनिक व्यवसायों के लिए दशमलव, जमा और गुणात्मक संख्यात्मक प्रणाली का इस्तेमाल करते थे।
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