धर्म-अध्यात्म

वनवास में इन 17 जगहों पर रुके थे श्रीराम

Apurva Srivastav
5 Oct 2023 6:25 PM GMT
वनवास में इन 17 जगहों पर रुके थे श्रीराम
x
-14 वर्ष के वनवास के दौरान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण कहाँ-कहाँ गए, किन जगहों पर रुके, इस पर जाने माने इतिहासकार डॉ. राम अवतार द्वारा अध्ययन किया गया। उन्होंने अयोध्या से लेकर रामेश्वरम तक कुल 200 जगहों को खोज निकाला।
ये सभी जगहें रामायण काल से जुड़ी हुई बताई गई। लेकिन यहां हम आपको श्रीराम के वनवास से जुड़ी 17 प्रमुख जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं। इन सभी जगहों पर अब प्राचीन मंदिर बने हैं। मान्यता है कि दिवाली के समय में इन धार्मिक स्थलों के दर्शन करने से श्रीराम की कृपा होती है और मनोकामना पूर्ण होती है।
गंगा पार कर श्रीराम ‘कुरई गांव’ पहुंचे थे। यहां से उन्होंने प्रयाग की ओर प्रस्थान किया जिसे आज इलाहबाद के नाम से जाना जाता है। प्रयाग से यमुना नदी को पार कर श्रीराम ‘चित्रकूट’ पहुंच गए। यह वही स्थान है जहां भरत की सेना श्रीराम को खोजते हुई पहुंची थी। भरत ने यहां श्रीराम को राजा दशरथ के निधन की खबर दी और उनकी चरण पादुका लेकर वापस अयोध्या लौट गए।
चित्रकूट के बाद श्रीराम सतना (मध्य प्रदेश) में अत्रि ऋषि के आश्रम में रुके थे। इसके बाद ‘सज़ा’ के घने जंगलों में पहुंचे। कहा जाता है कि ये वही जगह है जहां से श्रीराम के वनवास की असल शुरुआत हुई थी। यह एक विशाल जंगल है जो आज के समय मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर बनता है।
नासिक में ही श्रीराम को पहली बार शूर्पणखा ने देखा था। इसके बाद रावण ने माता सीता का जहां हरण किया वह स्थान भी पंचवटी में है। हरण के बाद जिस स्थान पर श्रीराम जटायु से मिले थे वह स्थान ‘सर्वतीर्थ’ के नाम से जाना जाता है। यह स्थल नासिक से 56 किमी दूर स्थित है और यहां जटायु की प्रतिमा भी बनी हुई है।
माता सीता का हरण करने के बाद रावण ने जिस स्थान पर अपना पुष्पक विमान रोका था वह आंध्र प्रदेश में है। इस जगह को ‘पर्णशाला’‘पनशाला’ या ‘पनसाला’ के नाम से जाना जाता है। इस स्थान पर श्रीराम-सीता से जुड़े प्राचीन मंदिर हैं।
जटायु से माता सीता के हरण की खबर पाने के बाद श्रीराम, भाई लक्ष्मण के साथ ‘तुंगभद्रा’ और कावेरी नदी के कई क्षेत्रों में उनकी खोज करते हुए पहुंचे। इसके बाद वे ‘शबरी के आश्रम’ में भी पहुंचे। इस आश्रम को आज ‘सबरिमलय मंदिर’ के नाम से जाना जाता है।
माता सीता की खोज में घने जंगलों को पार करते हुए श्रीराम, लक्ष्मण की हनुमान और सुग्रीव से भेंट हुई। जहां वे मिले वह स्थान ‘ऋष्यमूक पर्वत’ है। यह पर्वत वानर सेना की नगरी किष्किन्धा के पास स्थित है।
हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ‘बाली साम्राज्य’ में जाकर ने सुग्रीव की बालि को मार गिराने में मदद की। सुग्रीव को उसका राज्य दिलाया। बदले में सुग्रीव ने श्रीराम को अपनी वानर सेना सौंप दी जो उनकी माता सीता को खोजने में मदद कर सकती थी।
वानर सेना को एकत्रित कर जिस जगह पर श्रीराम ने माता सीता को रावण की कैद से छुडाने के लिए योजना बनाई, वहा जगह ‘कोडीकरई’ के नाम से जानी जाती है। यह दक्षिण भारत में तमिलनाडु की 1,000 किमी लंबी तटरेखा है।
यहां से श्रीराम, लक्ष्मण, हनुमान संग पूरी वानर सेना ‘रामेश्वरम’ पहुंची। यहां श्रीराम ने ‘दक्षिण भारत के समुद्र तट’ पर भगवान शिव की पूजा की थी। इसके बाद उन्हें ‘धनुषकोडी’ के बारे में पता चला। यह रामेश्वरम के समुद्री तट पर स्थित छोटा-सा गांव है।
धनुषकोडी पहुंच नल और नील की श्रीराम ने एक विशाल पुल को बनाने की योजना बनाई। पुल पार कर श्रीराम, लक्ष्मण संग पूरी वानर सेना ‘नुवारा एलिया’ की पर्वत श्रृंखला में दाखिल हुई थी। इस स्थान परा आज भी रावण और विभीषण से जुड़ी एतिहासिक इमारते और गुफाए हैं।

Next Story