धर्म-अध्यात्म

Shiva Lingam Parikrama Niyam : कैसे और किस दिशा में करनी चाहिए शिवलिंग की परिक्रमा? जानिए जरूरी नियम

Renuka Sahu
11 Jun 2025 3:11 AM GMT
Shiva Lingam Parikrama Niyam : कैसे और किस दिशा में करनी चाहिए शिवलिंग की परिक्रमा? जानिए जरूरी नियम
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Shiva Lingam Parikrama Niyam : हिंदू धर्म में परिक्रमा का विशेष महत्व है। परिक्रमा का अर्थ होता है किसी पवित्र स्थान या देवता के चारों ओर घूमना, जो हमेशा बाएं यानी बाहिनी दिशा में किया जाता है। इसे प्रदक्षिणा भी कहा जाता है और यह पूजा-अर्चना का अनिवार्य हिस्सा माना जाता है। यह परंपरा बहुत प्राचीन है और वेदकाल से चली आ रही है। देवी-देवताओं की पूजा में परिक्रमा का बड़ा ही पावन और आध्यात्मिक महत्व होता है, जिससे भक्तों को उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
लेकिन शिवजी की परिक्रमा को लेकर एक खास मान्यता प्रचलित है कि शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं बल्कि केवल आधी परिक्रमा की जाती है। आइए जानते हैं कि शिवजी की आधी परिक्रमा करने के पीछे क्या धार्मिक और पौराणिक मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं।
भगवान शिव की परिक्रमा में सोमसूत्र का उल्लंघन वर्जित
संपूर्ण ब्रह्मांड को ज्योतिर्लिंग के समान माना गया है। शिवजी की परिक्रमा आधी ही करने का नियम इसलिए है क्योंकि शिव के सोमसूत्र को पार नहीं किया जाता। जब कोई व्यक्ति आधी परिक्रमा करता है, तो इसे चंद्राकार परिक्रमा कहा जाता है। शिवलिंग को प्रकाश का प्रतीक माना जाता है और उसके आसपास का क्षेत्र चंद्र के समान होता है। जैसे आसमान में अर्धचंद्र के ऊपर शुक्र तारा होता है, ठीक वैसे ही शिवलिंग भी उस प्रतीक का रूप है। शिवलिंग की निर्मलता को सोमसूत्र कहा जाता है और शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव की परिक्रमा करते समय इस सोमसूत्र को लांघना वर्जित है।
सोमसूत्र में समाहित है ऊर्जा का स्रोत:
सोमसूत्र में ऊर्जा और शक्ति का केंद्र होता है, इसलिए इसे पार करते समय पैर फैलाने से इसके प्रवाह में बाधा आती है। इससे शरीर में देवदत्त और धनंजय वायु के संचालन में रुकावट आती है, जो मन और शरीर दोनों पर नकारात्मक असर डालती है। इसलिए शास्त्रों में भगवान शिव की परिक्रमा आधी यानी अर्द्ध चंद्राकार करने का निर्देश दिया गया है।
परिक्रमा करते समय किन नियमों का पालन करें:
शास्त्रों के अनुसार, यदि सोमसूत्र को तृण, लकड़ी, पत्ते, पत्थर या ईंट जैसे किसी आवरण से ढका हो, तो इसका उल्लंघन दोष नहीं देता। शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाईं ओर से शुरू करनी चाहिए। जलाधारी (जल वाले हिस्से) के सामने से चलते हुए परिक्रमा करनी होती है। जल स्रोत तक पहुंचकर फिर विपरीत दिशा में लौटते हुए पूरी परिक्रमा पूरी करनी चाहिए।
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