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मुस्लिम कैलेंडर के अनुसार शाबान महीने की 14 वीं तारीख और 15वीं तारीख के मध्य रात को शब-ए-बारात का त्योहार मनाया जाता है।
मुस्लिम कैलेंडर के अनुसार शाबान महीने की 14 वीं तारीख और 15वीं तारीख के मध्य रात को शब-ए-बारात का त्योहार मनाया जाता है। इबादत, तिलावत और सखावत यानी दान-पुण्य का यह त्योहार इस वर्ष 28 मार्च से लेकर 29 मार्च को मनाया जाएगा। इस रात दान का भी खास महत्व बताया गया है। इस त्योहार के लिए मस्जिदों और कब्रिस्तानों में खास सजावट की जाती है, लेकिन इस बार इस त्योहार पर भी कोरोना का असर दिखाई देगा।
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार शब-ए-बारात में अल्लाह की इबादत करते हुए उनसे अपने गुनाहों को माफ करने की दुआ मांगी जाती है। पिछले साल किए गए कर्मों का लेखा-जोखा तैयार करने और आने वाले साल की तकदीर तय करने वाली इस रात को शब-ए-बारात कहा जाता है। इस रात को पूरी तरह इबादत में गुजारने की परंपरा है। इस्लाम धर्म में इसे चार मुकद्दस रातों में से एक माना जाता है, जिसमें पहली आशूरा की रात, दूसरी शब-ए-मेराज, तीसरी शब-ए-बारात और चौथी शब-ए-कद्र होती है।
नमाज, तिलावत-ए-कुरआन, कब्रिस्तान की जियारत और हैसियत के मुताबिक खैरात करना इस रात के अहम काम है। मालवा-निमाड़ में इस त्योहार पर तरह-तरह के स्वादिष्ट मिष्ठानों पर दिलाई जाने वाली फातेहा के साथ मनाया जाता है।
मुस्लिम धर्मावलंबियों के प्रमुख पर्व शब-ए-बरात के मौके पर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में इस बार शब-ए-बरात की ज्यादा रौनक दिखाई नहीं देगी। इस्लामी मान्यता के मुताबिक शब-ए-बारात की सारी रात इबादत और तिलावत का दौर चलता है।
हिजरी कैलेंडर के अनुसार, शब-ए-बारात की रात हर साल में एक बार शाबान महीने की 14 तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होती है। शब-ए-बारात का अर्थ है शब यानी रात और बारात यानी बरी होना। साथ ही इस रात मुस्लिम धर्मावलंबी अपने उन परिजनों, जो दुनिया से रूखसत हो चुके हैं, की मगफिरत मोक्ष की दुआएं करने के लिए कब्रिस्तान भी जाते हैं।
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