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जानिए क्या है पौराणिक ग्रंथों में मंडन सूत्रधार का अर्थ

Usha dhiwar
25 Jun 2024 8:14 AM GMT
जानिए क्या है पौराणिक ग्रंथों में मंडन सूत्रधार  का अर्थ
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पौराणिक ग्रंथों में मंडन सूत्रधार का अर्थ :- Meaning of Mandana Sutradhar in mythological texts

मंडन, महाराणा कुंभा (1433-1468 ई0) के प्रधान शिल्पी[1] तथा मूर्तिशास्त्री थे। He was a sculptor.
वह वास्तुशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान तथा शास्त्रप्रणेता थे। शिल्पकार मंडन मिस्त्री अर्थात् कुमावत शिल्पकार और सुथार समाज के प्रमुख व्यक्ति थे। इन्होंने पूर्वप्रचलित शिल्पशास्त्रीय मान्यताओं का पर्याप्त अध्ययन किया था। इनकी कृतियों में मत्स्यपुराण से लेकर अपराजितपृच्छा और हेमाद्रि तथा गोपाल के संकलनों का प्रभाव था।
शिल्पकार मंडन केवल शास्त्रज्ञ ही नहीं थे अपितु उन्हें वास्तुशास्त्र का प्रयोगात्मक अनुभव भी था। कुंभलगढ़ का दुर्ग, जिसका निर्माण उन्होंने 1458 ई0 के लगभग किया, उनकी वास्तुशास्त्रीय प्रतिभा का साक्षी है, जो कुमावत शिल्पियो का एक बेहतरीन नमूना है। यहाँ से मिली मातृकाओं और चतुर्विंशति वर्ग के विष्णु की कुछ मूर्तियों का निर्माण भी संभवतः इन्हीं के द्वारा या इनकी देखरेख में हुआ।
शिल्पकार मंडन, मेदपाट (मेवाड़) का रहनेवाला था। इसके पिता का नाम 'षेत' या 'क्षेत्र' था जो संभवतः गुजराती था और कुंभा के शासन के पूर्व ही गुजरात से जाकर मेवाड़ में बस गया था।
. देवमूर्ति प्रकरण/ रूपावतार - इसमें मुर्ति निर्माण व प्रतिमा स्थापना के बारे में बताया गया है। Information regarding installation of the statue has been provided.
आपतत्व के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। रूपमंडन और देवतामूर्ति प्रकरण के अतिरिक्त शेष सभी ग्रंथ वास्तु विषयक हैं। वास्तु विषयक ग्रंथों में प्रासादमंडन सबसे महत्वपूर्ण है। इसमें चौदह प्रकार के अतिरिक्त जलाशय, कूप, कीर्तिस्तंभ, पुर, आदि के निर्माण तथा जीर्णोद्धार का भी विवेचन है।
मंडन सूत्रधार मूर्तिशास्त्र का भी बहुत बड़ा विद्वान था। रूपमंडन में मूर्तिविधान की इसने अच्छी विवेचना प्रस्तुत की है।
सूत्रधार मंडन कृत राजवल्‍लभ वास्‍तुशास्‍त्र में कुंभा के काल में दुर्गों की सुरक्षा के लिए तैनात किए जाने वाले आयुधों, यंत्रों का जिक्र आया है instruments are mentioned - संग्रामे वह़नम्‍बुसमीरणाख्‍या। सूत्रधार मंडन ने ऐसे यंत्रों में आग्‍नेयास्‍त्र, वायव्‍यास्‍त्र, जलयंत्र, नालिका और उनके विभिन्‍न अंगों के नामों का उल्‍लेख किया है - फणिनी, मर्कटी, बंधिका, पंजरमत, कुंडल, ज्‍योतिकया, ढिंकुली, वलणी, पट़ट इत्‍यादि। ये तोप या बंदूक के अंग हो सकते हैं।
वास्‍तु मण्‍डनम में मंडन ने गौरीयंत्र का जिक्र किया है। अन्‍य यंत्रों में नालिकास्‍त्र का मुख धत्‍तूरे के फूल जैसा होता था The mouth of the pipe was like a Dhatura flower उसमें जो पॉवडर भरा जाता था, उसके लिए निर्वाणांगार चूर्ण शब्‍द का प्रयोग हुआ है। यह श्‍वेत शिलाजीत (नौसादर) और गंधक को मिलाकर बनाया जाता था।
निश्चित ही यह बारूद या बारुद जैसा था। आग का स्‍पर्श पाकर वह तेज गति से दुश्‍मनों के शिविर पर गिरता था और तबाही मचा डालता था। वास्‍तु मंडन जाहिर करता है कि उस काल में बारुद तैयार करने की अन्‍य विधियां भी प्रचलित थी।
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