धर्म-अध्यात्म

Mythological story: Lord Jagannath के भक्त को काल भैरव ने क्यों डराया जानें ?

Admin4
24 Jun 2024 7:00 PM GMT
Mythological story: Lord Jagannath के भक्त को काल भैरव ने क्यों डराया जानें ?
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पौराणिक कथा के अनुसार रथ यात्रा के दिन Jagannath जी एक राजा की तरह पांडी विजय करते हुए धीरे-धीरे रथ पर सवार हो गए. उनके साथ बलराम जी और सुभद्रा मैया भी अपने अपने रथ पर सवार हो गए. चारों ओर भक्त जय जगन्नाथ, जय जगन्नाथ के जयकारे लगा रहे थे. अनेक प्रकार के वाद्य यंत्र बज रहे थे. लोगों की भीड़ चरम सीमा पर थी. एक के बाद एक जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा मैया के रथ गतिमान होते हुए Gundija Temple
की ओर प्रस्थान कर रहे थे. सभी लोग उसी रथ यात्रा में उनके साथ चलने लगे और पीछे छूट गया. शांत और सुमसान मानो वो भी जगन्नाथ जी के विरह में उदास हो, सिंह द्वार और उके साथ एक और व्यक्ति थे जो इस रथ यात्रा से उदास थे. वो व्यक्ति थे Indra Swami. Indra Swami Jagannath जी के एक महान भक्त थे. प्रतिदिन जगन्नाथ जी के दर्शन करने मंदिर में आते और इसके साथ ही अपने ध्यान अवस्था में भी उनके प्रत्यक्षदर्शन करते थे. जब वे जगन्नाथ जी को रथ यात्रा के समय गुंडीश मंदिर जाते हुए देखते तो बड़े उदास हो जाते. एक तो पहले ही जगन्नाथ जी 15 दिन के लिए बीमार पड़ जाते हैं और उनके दर्शन नहीं होते. ऊपर से 9 दिन और वे गुंडीचा मंदिर चले जाते हैं. ये सब देखकर इंद्र स्वामी का मन बड़ा उदास हो जाता था.
उदास इंद्र स्वामी ने क्या किया ?
एक दिन रथ यात्रा शुरू होने के बाद दुखी मन से वे सिंह द्वार के पास खड़े थे. जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा मैया के रथ गुंडीचा मंदिर के लिए निकल पड़े थे. सम्पूर्ण श्री मंदिर खाली था, क्योंकि सभी भक्त गण भी जगन्नाथ जी के साथ गए हुए थे. लेकिन इंद्र स्वामी को इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था उन्होंने मन में ही सोचा कि ऐसे कैसे भगवान अपनी रत्नवेदी छोड़कर जा सकते है. भगवान तो पुराणों में भी कहते हैं की चाहे प्रलय आजाये या फिर ये मंदिर नष्ट हो जाये, फिर भी मैं ये स्थान छोड़कर कभी नहीं जाऊंगा. तो फिर वे नीलाचर धाम छोड़कर कैसे जा सकते हैं? नहीं नहीं, भगवान नहीं गए होंगे, ये तो सिर्फ इन सब भक्तों की भूल होगी, भगवान नहीं जा सकते ऐसे वास्तव में ये सब तो सिर्फ उनके विग्रह को उठाकर रथ में लेकर जा रहे हैं. बाकी सत्य तो यही है कि जगन्नाथ जी यहीं पर हैं, इसी रत्न विधि पर जगन्नाथ जी विराजमान हैं.
इस प्रकार सोचते हुए वे वापस अपने आश्रम में आ गए. आश्रम में आकर वे ध्यान मग्न हो गए और रत्न वेदी पर विराजमान जगन्नाथ जी के दर्शन करने का प्रयास करने लगे. अब देखिए प्रतिदिन जब भी इंद्र स्वामी जगन्नाथ जी के दर्शन करने के लिए ध्यान अवस्था में बैठते तो उन्हें रत्न वेदी पर विराजमान जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा मैया के दर्शन होते थे. लेकिन आश्चर्य की बात यह हुई कि आज ध्यान अवस्था में भी उन्हें रत्न बेदी पर जगन्नाथजी के दर्शन नहीं हो पाए. ये देखकर भी बड़े उदास हो गए और उसी क्षण से द्वार से होते हुए मंदिर के अंदर चले गए. जब उन्होंने खाली रत्न वेदी को देखा तो फिर से उनका मन दुखी हो गया.
काल भैरव ने भक्त इंद्र स्वामी को क्यों डराया ?
जगन्नाथ को याद करते हुए वह रत्न वेदी की परिक्रमा करने लगे और उसी क्षण एक बड़ी सी काली परछाई उनके सिर पर मंडराने लगी. उसके लम्बे काले हाथ और पैर थे. उसके बड़े बड़े नाखून और लाल आंखें अत्यंत भयावह थी. उसके सफेद बाल जमीन को छू रहे थे और जीवा कई गुनी लंबी थी. इस भयंकर स्वरूप को देखकर इंद्र स्वामी घबरा गए. आखिर उन्होंने जगन्नाथ जी को याद किया और हिम्मत एकत्रित करके उस काली विशाल परछाई को पूछा कौन हो तुम तुम्हे शर्म नहीं आती ऐसे यहां जगन्नाथ जी के स्थान पर तुम उनके भक्त को डरा रहे हो, चलो हटो हटो यहां से मुझे भगवान की प्रदिक्षना करने दो.
इंद्र स्वामी की बात सुनकर वो काली परछाई वाला स्वरूप ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा. उसने कहा- अरे मुर्ख, मुझे आदेश देने वाले तुम कौन होते हो? मैं इस स्थान पर रक्षक हूं और मेरा नाम है भैरव. भगवान की अनुपस्थिति में मैं ही इस स्थान की रक्षा करता हूं. इस समय जगन्नाथ जी यहां नहीं हैं इसलिए इस समय तुम उनकी रत्न बेदी की प्रदिक्षना नहीं कर सकते अगर तुम उनके दर्शन करना चाहते हो तो गुंडीचा मंदिर जाओ यहां नहीं चलो जाओ आप यहां से.
भैरव की बात सुनकर इंद्र स्वामी निसहाय होकर वापस अपने आश्रम में लौट आए. आज उनका मन अत्यंत उदास था. उनके मन में बार बार यही प्रश्न उठ रहा था क्या सच में भगवान जगन्नाथ अपने नीलाचल धाम छोड़कर अदब मंडप में चले गए है? तो क्या सच में जगन्नाथजी 9 दिन के लिए अपनी रत्न बेदी छोड़ कर गुंडीचा मंदिर में ही होते हैं या फिर दोनों जगह पर रहते हैं और आखिर गुंडीचा मंदिर में ये अदब दर्शन देने के पीछे क्या रहस्य है? क्या इसके पीछे भी जगन्नाथजी की कोई लीला छुपी हुई है?
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