- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- जानिए कब है श्री गंगा...
धर्म-अध्यात्म
जानिए कब है श्री गंगा सप्तमी, पढ़ें कथा और महत्व
Apurva Srivastav
8 May 2021 6:29 PM GMT
x
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि को मां गंगा स्वर्ग लोक से शिवशंकर की जटाओं में पहुंची थी।
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि को मां गंगा स्वर्ग लोक से शिवशंकर की जटाओं में पहुंची थी। इसलिए इस दिन को गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष गंगा सप्तमी पर्व मंगलवार, 18 मई 2021 को मनाया जा रहा है। जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती (वैशाख शुक्ल सप्तमी) और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन 'गंगा दशहरा' (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है। इस दिन मां गंगा का पूजन किया जाता है। बुधवार, 28 अप्रैल से वैशाख मास शुरू हो गया है। इसके देवता भगवान विष्णु है। इसलिए इस महीने खासतौर पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। वैशाख मास 26 मई 2021 तक चलेगा।
महत्व- गंगा सप्तमी के अवसर पर्व पर मां गंगा में डुबकी लगाने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वैसे तो गंगा स्नान का अपना अलग ही महत्व है, लेकिन इस दिन स्नान करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्ति पा जाता है। इस पर्व के लिए गंगा मंदिरों सहित अन्य मंदिरों पर भी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
कहा जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने से दस पापों का हरण होकर अंत में मुक्ति मिलती है। इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। शास्त्रों में उल्लेख है कि जीवनदायिनी गंगा में स्नान, पुण्यसलिला नर्मदा के दर्शन और मोक्षदायिनी शिप्रा के स्मरण मात्र से मोक्ष मिल जाता है। गंगा सप्तमी गंगा मैया के पुनर्जन्म का दिन है इसलिए इसे कई स्थानों पर गंगा जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। गंगा सप्तमी के दिन गंगा स्नान का बहुत महत्व है। अभी कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन चल रहा है। अत: ऐसे समय घर पर रही रहकर इस तरह से पूजन करके गंगा सप्तमी का पुण्य कमा सकते हैं।
आइए जानें कैसे करें पूजन-
* यदि गंगा मैया में स्नान करना संभव न भी हो तो गंगा जल की कुछ बूंदें साधारण जल में मिलाकर उससे स्नान किया जा सकता है।
* स्नानादि के पश्चात गंगा मैया की प्रतिमा का पूजन कर सकते हैं।
* भगवान शिव की आराधना भी इस दिन शुभ फलदायी मानी जाती है।
* इसके अलावा गंगा को अपने तप से पृथ्वी पर लाने वाले भगीरथ की पूजा भी कर सकते हैं।
* गंगा पूजन के साथ-साथ दान-पुण्य करने का भी फल मिलता है।
वैसे तो गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं, जो गंगाजी के संपूर्ण अर्थ को परिभाषित करती है। गंगा नदी हिंदुओं की आस्था का केंद्र है और अनेक धर्मग्रंथों में गंगा महत्व का वर्णन देखने को मिलता है।
मंत्र- 'ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे माँ पावय पावय स्वाहा'
यह गंगाजी का सबसे पवित्र पावन मंत्र है।
कथा- भागीरथ एक प्रतापी राजा थे। उन्होंने अपने पूर्वजों को जीवन-मरण के दोष से मुक्त करने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने की ठानी। उन्होंने कठोर तपस्या आरम्भ की। गंगा उनकी तपस्या से प्रसन्न हुईं तथा स्वर्ग से पृथ्वी पर आने के लिए तैयार हो गईं। पर उन्होंने भागीरथ से कहा कि यदि वे सीधे स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरेंगीं तो पृथ्वी उनका वेग सहन नहीं कर पाएगी और रसातल में चली जाएगी।
यह सुनकर भागीरथ सोच में पड़ गए। गंगा को यह अभिमान था कि कोई उसका वेग सहन नहीं कर सकता। तब उन्होंने भगवान भोलेनाथ की उपासना शुरू कर दी। संसार के दुखों को हरने वाले शिव शम्भू प्रसन्न हुए और भागीरथ से वर मांगने को कहा। भागीरथ ने अपना सब मनोरथ उनसे कह दिया।
गंगा जैसे ही स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरने लगीं गंगा का गर्व दूर करने के लिए शिव ने उन्हें जटाओं में कैद कर लिया। वह छटपटाने लगी और शिव से माफी मांगी। तब शिव ने उसे जटा से एक छोटे से पोखर में छोड़ दिया, जहां से गंगा सात धाराओं में प्रवाहित हुईं। इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके भाग्यशाली हुए। उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, मुक्ति भी देती है।
Apurva Srivastav
Next Story