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वर्तमान में कुछ कथावचन शिव पुराण की कथाओं का वाचन करने लगे हैं और वे बहुत लोकप्रिय भी हो चले हैं। 18 पुराणों में से एक शिव पुराण में भगवान शिव और उनके अवतारों के बारे में विस्तार से जानकारी मिलती हैं। कहते हैं कि शिव पुराण की रचना महर्षि वेदव्यास के शिष्य रोमाशरण की गई थी। आओ जानते हैं कि शिव पुराण पढ़ने से क्या होगा।
क्या है शिव पुराण में?
- शिव पुराण शैवपंथियों का ग्रंथ है। शिव पुराण को महापुराण भी कहा जाता ह और इसमें सिर्फ शिवजी की महिमा का ही वर्णन है।
- शिव पुराण की संहिताओं में शिव के रूप, कार्य, अवतार आदि की महिमा के वर्णन के साथ ही ब्रह्म, ब्रह्मांड तत्व का ज्ञान मिलता है।
- शिव पुराण में ही प्रसिद्ध विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलास संहिता, वायु संहिता (पूर्व भाग) और वायु संहिता (उत्तर भाग) है जिसे पढ़ने का बहुत ही महत्व है।
- शिव मृत्यु के देवता हैं, संहारक हैं, वैरागी और योगी हैं। इसीलिए दोनों ही पुराण में अलग अलग विषयों को समेटा गया है।
- शिव पुराण में शिव सबसे महान है। शिवजी को केंद्र में रखकर सृष्टि उत्पत्ति, पालन और संहार के ज्ञान के साथ ही मनुष्य के धर्म कर्म को समझाया गया है।
- ऐसा कहते हैं कि शिव पुराण की मूल विचारधारा एकेश्वरवाद और द्वैतवाद की है जबकि विष्णु पुराण अद्वैतवाद का समर्थन करता है।
शिव महापुराण पढ़ने से क्या होगा?
- इस पुराण में संसार के साथ ही संन्यास को भी साधने की जानकारी मिलती है। इसीलिए इस पुराण को पढ़ा जाता है।
- शिव पुराण का पाठ करने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। निःसंतान लोगों को संतान की प्राप्ति हो जाती है।
- शिव पुराण का पाठ करने से वैवाहिक जीवन से संबंधित समस्याओं का समाधान होता है। व्यक्ति
- शिव पुराण का पाठ करने के समस्त प्रकार के कष्ट और पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन के अंत में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- इस पुराण को पढ़ने से हमारे जीवन में आ रही बाधओं से मुक्ति का समाधान मिलता है, क्योंकि इस पुराण में कई तरह के उपाय भी बताए गए हैं।
- शिव पुराण के अनुसार अच्छे मार्ग से धन संग्रहित करें और संग्रहित धन के तीन भाग करके एक भाग धन वृद्धि में, एक भाग उपभोग में और एक भाग धर्म-कर्म में व्यय करें। इससे जीवन में सफलता मिलती है।
- शिव पुराण के अनुसार क्रोध कभी नहीं करना चाहिए और न ही क्रोध उत्पन्न करने वाले वचन बोलने चाहिए। क्रोध से विवेक नष्ट हो जाता है और विवेक के नष्ट होने से जीवन में कई संकट खड़े हो जाते हैं।
- शिव पुराण के अनुसार शिवरात्रि व्रत करने से व्यक्ति को भोग एवं मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं और महान पुण्य की प्राप्ति होती है। पुण्य कर्मों से भाग्य उदय होता है और व्यक्ति सुख पाता है।
- शिव पुराण के अनुसार सूर्यास्त से दिनअस्त तक का समय भगवान 'शिव' का समय होता है जबकि वे अपने तीसरे नेत्र से त्रिलोक्य (तीनों लोक) को देख रहे होते हैं और वे अपने नंदी गणों के साथ भ्रमण कर रहे होते हैं। इस समय व्यक्ति यदि कटु वचन कहता है, कलह-क्रोध करता है, सहवास करता है, भोजन करता है, यात्रा करता है या कोई पाप कर्म करता है तो उसका घोर अहित होता है।
- शिव पुराण के अनुसार मनुष्य के लिए सबसे बड़ा धर्म है सत्य बोलना या सत्य का साथ देना और सबसे बड़ा अधर्म है असत्य बोलना या असत्य का साथ देना।
- शिव पुराण के अनुसार कोई भी कार्य या कर्म करते वक्त व्यक्ति को खुद का साक्षी या गवाह बनना चाहिए कि वह क्या कर रहा है। अच्छा या बुरा सभी के लिए वही खुद जिम्मेदार होता है। उसे यह कभी भी नहीं सोचना चाहिए कि उसके कामों को कोई नहीं देख रहा है। यदि वह मन में ऐसे भाव रखेगा तो कभी भी पाप कर्म नहीं कर पाएगा। मनुष्य को मन, वचन और कर्म से पाप नहीं करना चाहिए।
- शिव पुराण के अनुसार मनुष्य की इच्छाओं से बड़ा कोई दुख नहीं होता। मनुष्य इच्छाओं के जाल में फंस जाता है तो अपना जीवन नष्ट कर लेता है। अत: अनावश्यक इच्छाओं को त्याग देने से ही महासुख की प्राप्ति होती है।
- शिव पुराण के अनुसार संसार में प्रत्येक मनुष्य को किसी न किसी वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति से आसक्ति या मोह हो सकती है। यह आसक्ति या लगाव ही हमारे दुख और असफलता का कारण होता है। निर्मोही रहकर निष्काम कर्म करने से आनंद और सफलता की प्राप्ति होती है।
- शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव कहते हैं कि कल्पना ज्ञान से महत्वपूर्ण है। हम जैसी कल्पना और विचार करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। सपना भी कल्पना है। शिव ने इस आधार पर ध्यान की 112 विधियों का विकास किया। अत: अच्छी कल्पना करें।
- शिव पुराण के अनुसार मनुष्य में जब तक राग, द्वेष, ईर्ष्या, वैमनस्य, अपमान तथा हिंसा जैसी अनेक पाशविक वृत्तियां रहती हैं, तब तक वह पशुओं का ही हिस्सा है। पशुता से मुक्ति के लिए भक्ति और ध्यान जरूरी है। भगवान शिव के कहने का मतलब यह है कि आदमी एक अजायबघर है। आदमी कुछ इस तरह का पशु है जिसमें सभी तरह के पशु और पक्षियों की प्रवृत्तियां विद्यमान हैं। आदमी ठीक तरह से आदमी जैसा नहीं है। आदमी में मन के ज्यादा सक्रिय होने के कारण ही उसे मनुष्य कहा जाता है, क्योंकि वह अपने मन के अधीन ही रहता है।
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Apurva Srivastav
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