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धर्म-अध्यात्म
जाने वैष्णो माता का इतिहास, इस प्रकार है माता की कथा
Apurva Srivastav
19 Feb 2021 5:50 PM GMT
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वैष्णो देवी का पवित्र मंदिर त्रिकुटा पर्वत पर एक सुंदर, प्राचीन गुफा में है. जिसे वैष्णो माता के रूप में जाना जाता है
वैष्णो देवी का पवित्र मंदिर त्रिकुटा पर्वत पर एक सुंदर, प्राचीन गुफा में है. जिसे वैष्णो माता के रूप में जाना जाता है. जिन्हें देवी महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का अवतार माना जाता है. भारत के बाकी पवित्र स्थलों के साथ वैष्णो देवी का स्थल भी काफी पवित्र माना जाता है.
वैष्णो माता का इतिहास
भूवैज्ञानिकों की ओर से किए गए अध्ययन के अनुसार माता वैष्णो देवी का मंदिर काफी प्राचीन है. माना जाता है कि माता वैष्णो देवी ने त्रेता युग में माता पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में मानव जाति के कल्याण के लिए एक सुंदर राजकुमारी के रूप में अवतार लिया था. और त्रिकुटा पर्वत पर गुफा में तपस्या की. जब समय आया, उनका शरीर तीन दिव्य ऊर्जाओं के सूक्ष्म रूप में विलीन हो गया- महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती.
श्रीधर
माता वैष्णो देवी के एक बड़े भक्त जो लगभग सात शताब्दी पहले रहते थे. श्रीधर और उनकी पत्नी देवी मां को पूरी तरह से समर्पित थे. जहां एक बार श्रीधर को एक बार सपने में दिव्य के जरिए भंडारे करने का आदेश मिला. लेकिन श्रीधर खराब आर्थिक स्थिती के चलते इस बात से चिंतत थे कि वो ये आयोजन कैसे करेंगे. जिसकी चिंता में वे पूरी रात जगे रहें. और फिर सब किस्मत पर छोड़ दिया. सुबह होने पर लोग वहां प्रसाद ग्रहण करने के लिए आने शुरू कर दिए. जिसके बाद उन्होंने देखा कि वैष्णो देवी के रूप में एक छोटी से कन्या उनके कुटिया में पधारी हैं. उनके साथ भंडारा तैयार किया.
और गांव वालों को परोसा. इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद लोगों को संतुष्टि मिली लेकिन वहां मौजूद भैरवनाथ को नहीं उसने अपने जानवरों के लिए और खाने की मांग की. लेकिन वहां वैष्णो देवी के रूप में एक छोटी कन्या ने श्रीधर की ओर से इसके लिए इंकार कर दिया. जिसके बाद भैरवनाथ ये अपमान सह नहीं पाया. और भैरों ने दिव्य लड़की को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन ऐसा करने में विफल रहा. और लड़की गायब हो गई. इस घटना के बाद श्रीधर दुखी हो गए.
उन्होंने अपनी मां के दर्शन करने की लालसा थी. जिसके बाद एक रात, वैष्णो माता ने श्रीधर के सपने में दर्शन दिए और उन्हें त्रिकुटा पर्वत पर एक गुफा का रास्ता दिखाया, जिसमें उनका प्राचीन मंदिर हैं. श्रीधर ने बताए गई बातों के अनुसार, पवित्र तीर्थ की खोज की और अपना जीवन उनकी सेवा में समर्पित कर दिया. जिसके बाद से ही ये मंदिर दुनियाभर में माता वैष्णो देवी के नाम से जाने जाना लगा.
वैष्णो माता
एक पवित्र लेख के अनुसार, कुरुक्षेत्र और पांडवों के बीच महायुद्ध कुरुक्षेत्र में शुरू होने से पहले भगवान कृष्ण ने अर्जुन को देवी दुर्गा की पूजा करने की सलाह दी थी.
माता का बुलावा
ऐसा माना जाता है जब तक माता नहीं चाहती तब तक उनके दर्शन कोई नहीं कर सकता है. माता के बुलावे को उनका आशीर्वाद माना जाता है. जिसके चलते लोग हर तरह के लोग चाहे वे बुद्धिमान या अज्ञानी हो, पुरुष या महिला हो, बड़े या छोटे हो. सब उनके बुलावे का इंतजार करते हैं.
माता की यात्रा
माता के दर्शन करने की यात्रा लगभग 24 किलोमीटर लंबी हैं. जो कि एक कठिन यात्रा मानी जाती है. धर्मस्थल की यात्रा कटरा में बान गंगा से शुरू होती है ऐसा माना जाता है कि वैष्णो माता ने कई शताब्दियों पहले अपने दिव्य धनुष से एक तीर चलाया था. ट्रेक कठिन है, लेकिन श्राइन बोर्ड की ओर से दिए जाने वाले ढके रास्ते, सीढ़ी, वाटर कूलर, बैठने की जगह, पेंट्री और भोजन की दुकानें थके हुए यात्रियों के लिए एक राहत देती है.
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