धर्म-अध्यात्म

जाने रामभक्त भरत और हनुमानजी की महिमा

Apurva Srivastav
16 Feb 2021 3:38 PM GMT
जाने रामभक्त भरत और हनुमानजी की महिमा
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राम के छोटे भाई भरत राजा दशरथ के दूसरे पुत्र थे।

राम के छोटे भाई भरत राजा दशरथ के दूसरे पुत्र थे। उनकी माता कैकयी थी। उनके अन्य भाई थे लक्ष्मण और शत्रुघ्न। उनकी पत्नी का नाम मांडवी और पुत्रों के नाम तक्ष और पुष्कल थे। परंपरा के अनुसार राम को गद्दी पर विराजमान होना था लेकिन मंथरा के भड़काने पर दशरथ पत्नी कैकेयी ने दशरथ से अपने वरदान मांग लिए। वरदान में राम को 14 वर्ष का वनवास और अपने पुत्र भरत को राजसिंहासन देने का वचन लिया। भरत ने इसका घोर विरोध किया, लेकिन अंतत: भरत को राजभार सौंपा दिया। राजा भरत ने सिंहासन पर राम की चरण पादुका रखकर 14 वर्ष तक राज किया। राम और भरत का मिलाप दो बार होता है जो कि बहुत ही चर्चित है। पहला चित्रकूट में और दूसरा नंदीग्राम में। भरतजी नंदीग्राम में रहकर संपूर्ण राज्य की देखरेख करते थे। उसी दौरान यह घटना घटी।

रामायण में इस बात का उल्‍लेख किया गया है कि जब भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्‍मण को मेघनाद ने युद्ध के दौरान घायल कर दिया था तो संजीवनी बूटी लेने के लिए हनुमानजी को भेजा गया था। दरअसल, राम-रावण युद्ध के दौरान जब रावण के पुत्र मेघनाद ने शक्तिबाण का प्रयोग किया तो लक्ष्मण सहित कई वानर मूर्छित हो गए थे। जामवंत के कहने पर हनुमानजी संजीवनी बूटी लेने द्रोणाचल पर्वत की ओर गए।
हनुमानजी को जब बूटी की पहचान नहीं हुई, तब उन्होंने पर्वत के एक भाग को उठाया और वापस लौटने लगे। रास्ते में उनको कालनेमि राक्षस ने रोक लिया और युद्ध के लिए ललकारने लगा। कालनेमि राक्षस रावण का अनुचर था। रावण के कहने पर ही कालनेमि हनुमानजी का रास्ता रोकने गया था। लेकिन रामभक्त हनुमान उसके छल को जान गए और उन्होंने तत्काल उसका वध कर दिया।
आकाश में पर्वत को एक हाथ में लेकर उड़ते हुए उनके मन में अयोध्या को देखने की इच्छा जागृत हुई तो लौटते वक्त वे अयोध्या के आकाश से गुजर रहे थे। जब भरतजी ने यह नजारा देखा की कोई विशालकाय वानर हाथ में पहाड़ लेकर अयोध्या के आकाश से गुजर रहा है तो उन्हें लगा कि यह कोई शत्रु है। तब भारतजी ने शत्रु समझकर हनुमानजी पर वार किया था जिसके चलते हनुमानजी नीचे गिर पड़े।
बाद में हनुमानजी के बताने पर कि मैं कौन ही और क्यों यह पहाड़ लेकर जा रहा हूं। जब भरतजी को यह पता चला तो वे बहुत पछताए और रोए तथा हनुमानजी से क्षमा मांगी। फिर हनुमानजी पुन: उस पहाड़ा को उठाकर जाने लगे तब पहाड़ का छोटासा हिस्‍सा वहीं गिर गया था। अयोध्या में आज उस छोटे से हिस्से को मणि पर्वत कहते हैं। मणि पर्वत की ऊंचाई 65 फीट है। यह पर्वत कई मंदिरों का घर है। अगर आप पहाड़ी की चोटी पर खड़े होते हैं तो यहां से पूरे शहर और आसपास के क्षेत्रों का मनोरम दृश्‍य देख सकते हैं।



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