धर्म-अध्यात्म

जानिए कांवड़ यात्रा के नियम, प्रकार और महत्व

Tara Tandi
21 July 2022 8:07 AM GMT
जानिए कांवड़ यात्रा के नियम, प्रकार और महत्व
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अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र सावन मास (Sawan Month) की शुरुआत 14 जुलाई 2022 से हो चुकी है. यह माह भगवान भोलेनाथ की भक्ति का माह माना जाता मान्यता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र सावन मास (Sawan Month) की शुरुआत 14 जुलाई 2022 से हो चुकी है. यह माह भगवान भोलेनाथ की भक्ति का माह माना जाता मान्यता है कि इस महीने में जो भगवान शिव को प्रसन्न कर लेता है, उसकी हर मनोकामना बिना देरी के जल्द ही पूरी हो जाती है. सावन के महीने में आप सभी ने कांवड़ियों को कांवड़ यात्रा (Kawad Yatra) करते हुए देखा होगा. आपके मन में ये सवाल जरूर आया होगा कि आखिर कांवड़ यात्रा होती क्या है? इसके नियम और महत्व क्या हैं? साथ ही ये कितने प्रकार की होती है? इस विषय में बता रहे हैं भोपाल के रहने वाले ज्योतिषी एवं पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.

कांवड़ यात्रा क्या है?
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग पर गंगा जल या पवित्र जल अर्पित करने की परंपरा को कांवड़ यात्रा कहते हैं. यह जल पवित्र स्थान से अपने कंधे पर लाकर भगवान शिव को सावन के महीने में अर्पित किया जाता है. कांवड़ यात्रा के दौरान हर भक्त बोल-बम के नारे लगाते हुए पैदल यात्रा करते हैं. मान्यता के अनुसार, कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को अश्वमेध यज्ञ जितना फल प्राप्त होता है.
कांवड़ यात्रा के नियम
-धार्मिक शास्त्रों के अनुसार यात्रा के दौरान कांवड़ नीचे नहीं रख सकते है. नीचे रखने से कांवड़ यात्रा सफल नहीं मानी जाती. कांवड़ को पेड़ (साफ सुथरा जगह) पर टांग सकते हैं.
-यात्रा के दौरान आपने जिस भी मंदिर का संकल्प लिया है, वहां तक नंगे पैर जाते हैं.
-जो व्यक्ति कांवड़ यात्रा में शामिल होता है, इस दौरान वह मांस, मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन नहीं कर सकता.
-इसके अलावा बिना स्नान किए कोई भी व्यक्ति कांवड़ को हाथ तक नहीं लगा सकता.
कांवड़ यात्रा के प्रकार
कांवड़ यात्रा तीन प्रकार की होती है.
1. सामान्य कांवड़
सामान्य कांवड़ यात्रा में कांवड़िए अपनी जरूरत और थकान के अनुसार जगह-जगह रुककर विश्राम करते हुए कांवड़ यात्रा करते हैं.
2. डाक कांवड़
डाक कांवड़ यात्रा में भगवान शिव के जलाभिषेक होने तक लगातार चलते रहना पड़ता है. इसमें कांवड़िए आराम नहीं कर सकते.
3. दांडी कांवड़
दांडी कांवड़ यात्रा में कांवड़िए नदी किनारे से शिव धाम तक दंड देते हुए कांवड़ यात्रा करते हैं. इस यात्रा में उन्हें महीने भर का समय लग जाता है.
कांवड़ यात्रा का महत्व
कावड़ के जरिए जल की यात्रा का यह पर्व भगवान शिव की आराधना का पर्व माना जाता है. एक बार कांवड़िए जल स्रोत से जल भर कर इसे भगवान शिव तक पहुंचे से पहले जमीन पर नहीं रखते. इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि जल से सीधे प्रभु को जोड़ा जाए, जिससे यह धारा प्राकृतिक रूप से भगवान भोलेनाथ पर बनी रहे. साथ ही उनकी कृपा हमारे ऊपर इसी धारा के समान निरंतर बहती रहे, जिसकी वजह से हम यह संसार रूपी सागर को पार कर सकें.
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