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नंदा देवी की चढ़ाई अत्यधिक कठिन मानी जाती है
उत्तराखंड के चमोली जिले में जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में नंदा देवी का सबसे ऊंचा पहाड़ है। नंदादेवी के दोनों ओर ग्लेशियर यानी हिमनद हैं। इन हिमनदों की बर्फ पिघलकर एक नदी का रूप ले लेती है। यहां दो बड़े ग्लेशियर है- नंदादेवी नॉर्थ और नंदा देवी साउथ। दोनों की लंबाई 19 किलोमीटर है। इनकी शुरुआत नंदा देवी की चोटी से ही हो जाती है जो नीचे घाटी तक आती हैं। आओ जानते हैं नंदा देवी की ऐतिहासिक यात्रा की 10 खास बातें।
1. माता पार्वती है नंदा देवी : उत्तराखंड के लोग नंदादेवी को अपनी अधिष्ठात्री देवी मानते हैं और यहां की लोककथाओं में उन्हें हिमालय की पुत्री कहा गया है, अर्थात वे माता पार्वती हैं।
2. गढ़वाल-कुमाऊं का मिलन : नंदा देवी गढ़वाल के साथ साथ कुमाऊं कत्युरी राजवंश की ईष्टदेवी थीं और वे उत्तराखंड की बेटी हैं, वह इस यात्रा के माध्यम से अपने ससुराल यानी कैलाश पर्वत जाती हैं। इस ऐतिहासिक यात्रा को गढ़वाल-कुमाऊं के सांस्कृतिक मिलन का प्रतीक भी माना जाता है।
3. सबसे ऊंची चोटी : नंदा देवी पर्वत भारत की दूसरी एवं विश्व की 23वीं सर्वोच्च चोटी है। इस चोटी को उत्तरांचल राज्य में मुख्य देवी के रूप में पूजा जाता है। इससे ऊंची व देश में सर्वोच्च चोटी कंचनजंघा है। नंदा देवी पर्वत लगभग 25,643 फीट ऊंचा है।
4. 12 वर्ष में एक बार यात्रा : नंदा देवी की चढ़ाई अत्यधिक कठिन मानी जाती है। नंदा देवी की कुल ऊंचाई 7816 मीटर यानी 25,643 फीट है। यहां तक पहुंचने के लिए प्रत्येक 12 वर्ष में एक धार्मिक यात्रा का आयोजन होता है प्रतिवर्ष भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में नंदादेवी मेला प्रारंभ होता है।
5. हिमालयी कुंभ : चूंकि इस यात्रा का आयोजन कुंभ की तरह हर बारह वर्ष के बाद होता है, इसलिए इसे हिमालयी कुंभ के नाम से भी जाना जाता है।
6. आदि शंकराचार्य ने की थी यात्रश की शुरुआत : नंदा देवी राजजात यात्रा को विश्व की सबसे लम्बी पैदल और धार्मिक यात्रा माना जाता है। इस पहाड़ पर चढ़कर माता के दर्शन करना बहुत ही कठिन होता है। इस यात्रा की शुरुआत आदि शंकराचार्य ने ईसा पूर्व की थी।
7. यात्रा का प्रारंभ और अंत : नंदादेवी की यह ऐतिहासिक यात्रा चमोली जनपद के नौटी गांव से शुरू होती है जो रूपकुंड होकर हेमकुंड तक जाती है जो 18 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है।
8. रोमांचक और खतरों से भरी होती है ये यात्रा : इस 280 किमी की धार्मिक यात्रा के दौरान रास्ते में घने जंगल, पथरीले मार्गों व दुर्गम चोटियों और बर्फीले पहाड़ों को पार करना पड़ता है। नंदादेवी चोटी के नीचे पूर्वी तरफ नंदा देवी अभयारण्य है। यहां कई प्रजातियों के जीव-जंतु रहते हैं। इसकी सीमाएं चमोली, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों से जुड़ती हैं।
9. 19 दिन लगते हैं यात्रा पूर्ण होने में : इस यात्रा को पूरा करने में 19 दिन का समय लग जाता है। इस यात्रा के 19 पड़ाव है। रास्ते में विभिन्न पड़ावों से होकर गुजरने वाली यह यात्रा में भिन्न-भिन्न पड़ावों पर लोग इस यात्रा में मिलकर इस यात्रा का हिस्सा बनते हैं। इस यात्रा का आयोजन नंदादेवी राजजात समिति द्वारा किया जाता है।
10. यात्रा का आकर्षण चौसिंगा खाडू : इस यात्रा का मुख्य आकर्षण चौसिंगा खाडू (चार सींगों वाला भेड़) होता है, जो कि स्थानीय क्षेत्र में राजजात यात्रा शुरू होने से पहले पैदा हो जाता है। उसकी पीठ में दो तरफ थैले में श्रद्धालु गहने, श्रृंगार सामग्री व अन्य भेंट देवी के लिए रखते हैं, जो कि हेमकुंड में पूजा होने के बाद आगे हिमालय की ओर प्रस्थान करता है। यात्रा में जाने वाले लोगों का मानना है कि यह चौसिंगा खाडू आगे विकट हिमालय में जाकर विलुप्त हो जाता है। माना जाता है कि यह नंदादेवी के क्षेत्र कैलाश में प्रवेश कर जाता है, जो आज भी अपने आप में एक रहस्य बना हुआ है।
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