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धर्म-अध्यात्म
Kanwar Yatra: जाने कब से हुई कांवड़ यात्रा की शुरुआत
Sanjna Verma
14 July 2024 12:46 PM GMT
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Kanwar Yatra Special: जैसा कि, सावन महीने की शुरूआत होने लगी है वहीं पर इस पावन महीने में एक से बढ़कर एक व्रत और त्यौहार आते है जिनके लिए पहले से तैयारी भक्त करने लगते है। सावन के महीने में सावन सोमवार के व्रत जितने पावन माने जाते है उतना ही इस महीने से कांवड़ यात्रा की शुरुआत होती है। जिसमें बड़ी संख्या में कांवड़िएं यात्रा निकलते है और नंगे पाव सैकड़ों Kilometer दूर तक चलते है।
यात्रा में कांवड़ तो जमीन पर नहीं रखते है तो मान्यता यह भी है कि,शिवभक्त जो जल लाते है उससे ही भगवान का जलाभिषेक होता है। क्या आपने सोचा है कभी कि, आखिर कांवड़ यात्रा की शुरूआत किसने की और कौन था पहला कांवड़ियां। चलिए जानते है इसके पीछे की पौराणिक कथाएं।
जानिए पहले कांवड़िए से जुड़ी पौराणिक कथा
कांवड़ यात्रा की कब से शुरुआत हुई इसके लिए पौराणिक कथा प्रचलित है जो इस प्रकार है…
एक बार की बात हैं जब सहस्त्रबाहु, ऋषि जमदग्नि के यहां पहुंचे थे जहां पर ऋषि ने उनकी सेवा और आदर सत्कार किया।सहस्त्रबाहु इससे काफी खुश हुए लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि, गरीब और साधारण साधु के पास आदर-सत्कार के लिए इतनी व्यवस्था और धन कैसे है। इसके लिए उन्होंने पता लगाने की कोशिश की सैनिकों के पास से जानकारी मिली कि, ऋषि जमदग्नि के पास एक कामधेनु नाम की दिव्य गाय है, जिससे कुछ भी मांगो, वह सब कुछ प्रदान करती है।
जब राजा को यह ज्ञात हुआ कि इसी कामधेनु गाय के कारण ऋषि जमदग्नि संसाधन जुटाने में कामयाब हो पाया तो उस गाय को प्राप्त करने के लिए सहस्त्रबाहु के मन में लालच उत्पन्न हो गया। उसने ऋषि से कामधेनु गाय मांगी परंतु ऋषि जमदग्नि ने Kamadhenu गाय देने से मना कर दिया। इस पर सहस्त्रबाहु क्रोधित होकर ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी।
परशुराम ने सहस्त्रबाहु को दिया दंड
कहा जाता है अपने पिता ऋषि जमदग्नि की हत्या की खबर जब भगवान परशुराम को पता चली तो उन्होंने सहस्त्रबाहु की सभी भुजाओं को काटकर उसकी हत्या कर डाली। इसके बाद परशुराम ने कठोर तपस्या से अपने पिता जमदग्नि को पुनः जीवनदान दिया। ऋषि को यह पता चला कि परशुराम ने सहस्त्रबाहु की हत्या कर दी तो उन्होंने इसके पश्चाताप के लिए परशुराम से भगवान शिव का जलाभिषेक करने को कहा। जिसके बाद पिता के कहने पर परशुराम ने अनेकों मील दूर नंगे पांव चलकर गंगा जल लेकर आए तथा आश्रम के पास ही शिवलिंग की स्थापना कर महादेव का महाभिषेक किया और उनकी स्तुति की।
लंकापति रावण भी है पहला कांवड़ियां
भगवान परशुराम के अलावा लंकापति रावण को भी पहला कांवड़ियां कहते हैं इसे लेकर एक पौराणिक कथा कहती हैं कि, कांवड़ का संबंध समुद्र मंथन से है जहां पर मंथन में जब विष निकला तो संसार इससे त्राहि-त्राहि करने लगा। तब भगवान शिव ने इसे अपने गले में रख लिया। लेकिन इस ऊर्जा को खत्म करना भी जरूरी था इसके लिए भगवान शिव के परम भक्त रावण ने इसे दूर करने का काम किया। रावण ने तप करने के बाद गंगा के जल से पुरा महादेव मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक किया, जिससे शिव इस उर्जा से मुक्त हो गए।
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Sanjna Verma
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