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![Sawan में पार्थिव शिवलिंग की पूजा का महत्व और विधि Sawan में पार्थिव शिवलिंग की पूजा का महत्व और विधि](https://jantaserishta.com/h-upload/2024/07/28/3905846-7.webp)
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Sawan ज्योतिष न्यूज़ : सनातन परंपरा में अलग-अलग प्रकार के शिवलिंग की पूजा के अलग-अलग फल बताए गए हैं, लेकिन सभी प्रकार के शिवलिंग में पार्थिव शिवलिंग की पूजा का बहुत ज्यादा महत्व है। सावन में पार्थिव शिवलिंग की पूजा व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करती है। यह पूजा भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का सरल और प्रभावी माध्यम है। सावन के पवित्र माह में पार्थिव शिवलिंग की पूजा कर भक्त अपने जीवन को सफल, सुखी और समृद्ध बना सकते हैं। मान्यता है कि भगवान श्री राम ने लंका पर कूच करने से पहले भगवान शिव की पार्थिव पूजा की थी।
कलयुग में भगवान शिव का पार्थिव पूजन कूष्माण्ड ऋषि के पुत्र मंडप ने किया था जिसके बाद से अभी तक शिव कृपा बरसाने वाली पार्थिव पूजन की परंपरा चली आ रही है। शास्त्रों में वर्णित है कि शनिदेव ने अपने पिता सूर्यदेव से ज्यादा पराक्रम पाने के लिए काशी में पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा की थी।
पार्थिव शिवलिंग की पूजा का महत्व
लिंग पुराण में भी पार्थिव शिवलिंग की पूजा का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार, जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से पार्थिव शिवलिंग की पूजा करता है उसके जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि आती है,समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। जिन दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो रही है, वे सावन के महीने में पार्थिव शिवलिंग की पूजा करें तो उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान मिल सकता है।मान्यता है कि जिन युवतियों का विवाह नहीं हो पा रहा है, वे सावन में पार्थिव शिवलिंग की पूजा करें तो उन्हें मनचाहा वर प्राप्त होता है। शिवपुराण के अनुसार पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने वाले शिवसाधक के जीवन से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है।
पार्थिव शिवलिंग की पूजा विधि
शास्त्रों के अनुसार सावन के महीने में पार्थिव शिवलिंग की पूजा के लिए किसी नदी या पवित्र स्थान की मिट्टी को लेकर उसमें गंगाजल, पंचामृत, गाय का गोबर और भस्म मिलाएं। यदि संभव हो तो गंगा नदी की मिट्टी से पार्थिव शिवलिंग बनाना चाहिए। इसके बाद शिव मंत्र बोलते हुए उस मिट्टी से शिवलिंग बना लें। ध्यान रहे पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह रखकर शिवलिंग बनाना चाहिए। पार्थिव शिवलिंग की विधि-विधान से पूजा भी इन्ही दिशाओं में मुख करके करें। शिवलिंग की ऊँचाई 12 अंगुल से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए। फिर, शिवलिंग को गंगा जल या शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अभिषेक करें। पूजा के दौरान बेलपत्र, धतूरा और विभिन्न पुष्प अर्पित करें। धूप और दीप जलाकर भगवान शिव की आरती करें और "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें। पूजा के अंत में शिवलिंग पर चंदन का तिलक लगाएं और नैवेद्य अर्पित करें। सावन मास में इस पूजा का विशेष महत्व होता है, जिससे भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं।
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Tara Tandi
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