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Hindu grihastha ashram: शास्त्रों से जानें कैसा होता है Home Sweet Home
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | पद्मपुराण के अनुसार ‘गृहस्थाश्रम: पुण्यतम: सर्वदा तीर्थवद् गृहम।’
अर्थात गृहस्थाश्रम परम पवित्र है, घर सदा तीर्थ के समान है।
जीवन मुक्त, परमसिद्ध विरक्त योगी, यति, सन्यासी भी गृहस्थ के आतिथ्य का आश्रय लेते हैं और गृहस्थ ‘अतिथि देवो भव:’ सार्थक कर अपने को धन्य और बड़भागी समझता है। हिन्दू संस्कृति का प्रसाद (मार्गदर्शन) अपने वंशज तथा मानव मात्र को इस प्रकार मिला :
अभिवादन शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन: चत्वारि तस्य वर्धंते आयुॢवद्या यशो बलम।अभिवादन, विनम्रता, नित्य वृद्धजनों (अपने से श्रेष्ठजनों) की आदर सहित सेवा करने से चार चीजों की वृद्धि होती है- आयु, विद्या, सुयश एवं बल।
‘न गृर्हण गृहस्थ:’
अर्थात केवल घर में रहने से ही कोई गृहस्थ नहीं होता, इसीलिए हमारी संस्कृति स्वरूपा नारी का आदर करने की प्रेरणा देते हुए शास्त्रों में कहा गया है :
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता
अर्थात जहां नारी की पूजा (आदर) होती है, वहां देवता सदैव रमण किया करते हैं और वह घर, सुख, समृद्धि, श्रीयुक्त होकर स्वर्ग बन जाता है।