धर्म-अध्यात्म

Guru Purnima2024: सर्वार्थ सिद्धि योग में 21 जुलाई को मनाई जाएगी गुरु पूर्णिमा

Sanjna Verma
20 July 2024 12:09 PM GMT
Guru Purnima2024: सर्वार्थ सिद्धि योग में 21 जुलाई को मनाई जाएगी गुरु पूर्णिमा
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Guru Purnima 2024: हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक गुरु पूर्णिमा है। यह शुभ दिन गुरु की पूजा और उनका सम्मान करने के लिए समर्पित है, जो ज्ञान और आत्मज्ञान के मार्ग पर व्यक्तियों का मार्गदर्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि रविवार 21 जुलाई 2024 को मनाई जाएगी। ज्योतिषाचार्य ने बताया कि गुरु पूर्णिमा रविवार 21 जुलाई को सर्वार्थ सिद्धि योग में मनाई जाएगी। गुरु पूर्णिमा के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है। इस योग में गुरु की पूजा से हर तरह के सिद्धियों की प्राप्ति होती है और जीवन में आने वाली समस्याएं भी दूर हो जाती हैं। रविवार 21 जुलाई को पूरे दिनभर सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। भारत में इस दिन को बहुत श्रद्धा- भाव से मनाया जाता है। धार्मिक शास्त्रों में भी गुरु के महत्व को बताया गया है। गुरु को भगवान से भी श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि गुरु ही भगवान तक पहुंचने का मार्ग बताते हैं।
पूर्णिमा तिथि
Astrologer ने बताया कि हिन्दू पंचाग के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 20 जुलाई को शाम 5:09 मिनट से शुरू होगी। जो अगले दिन 21 जुलाई को दोपहर बाद 3:56 मिनट तक रहेगा। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई को होगी।
जीवन में गुरु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि जीवन में गुरु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है। धर्म शास्त्रों में भी कहा गया है कि बिना गुरु के ईश्वर नहीं मिलता। इसलिए जीवन में गुरु का होना अत्यंत आवश्यक है। सनातन धर्म में गुरु की महिमा का बखान अलग-अलग स्वरूपों में किया गया है। इसी कड़ी में आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का विशेष पर्व मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा को गुरु की पूजा की जाती है।
गुरु का अर्थ
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार और रु का का अर्थ- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाता है। प्राचीन काल में शिष्य जब गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे तो इसी दिन पूर्ण श्रद्धा से अपने गुरु की पूजा का आयोजन करते थे।
इसलिए मनाते हैं गुरु पूर्णिमा का पर्व
भविष्यवक्ता ने बताया कि भारतीय संस्कृति में गुरु देवता को तुल्य माना गया है। गुरु को हमेशा से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्य माना गया है। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था। उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन व्यास जी ने शिष्यों एवं मुनियों को सर्वप्रथम श्री भागवतपुराण का ज्ञान दिया था। अत: यह शुभ दिन व्यास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
वेद व्यास के शिष्यों ने शुरु की थी यह परंपरा
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि इसी दिन वेदव्यास के अनेक शिष्यों में से पांच शिष्यों ने गुरु पूजा की परंपरा प्रारंभ की। पुष्पमंडप में उच्चासन पर गुरु यानी व्यास जी को बिठाकर पुष्प मालाएं अर्पित कीं, आरती की तथा अपने ग्रंथ अर्पित किए थे। जिस कारण हर साल इस दिन लोग व्यास जी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। कई मठों और आश्रमों में लोग ब्रह्मलीन संतों की मूर्ति या समाधि की पूजा करते हैं।
महत्व
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि गुरू के बिना एक शिष्य के जीवन का कोई अर्थ नहीं है। रामायण से लेकर महाभारत तक गुरू का स्थान सबसे महत्वपूर्ण और सर्वोच्च रहा है। गुरु की महत्ता को देखते हुए ही महान संत कबीरदास जी ने लिखा है- “गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये।” यानि एक गुरू का स्थान भगवान से भी कई गुना ज्यादा बड़ा होता है। गुरु पूर्णिमा का पर्व महार्षि वेद व्यास के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है।
Vedavyasa
जो ऋषि पराशर के पुत्र थे। शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास को तीनों कालों का ज्ञाता माना जाता है। महार्षि वेद व्यास के नाम के पीछे भी एक कहानी है। माना जाता है कि महार्षि व्यास ने वेदों को अलग-अलग खण्डों में बांटकर उनका नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद रखा। वेदों का इस प्रकार विभाजन करने के कारण ही वह वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए।
गुरु के महत्व को बताते हुए संत कबीर का एक दोहा बड़ा ही प्रसिद्ध है। जो इस प्रकार है -
गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥
इसके अलावा संस्कृत के प्रसिद्ध श्लोक में गुरु को परम ब्रह्म बताया गया है -
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
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