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जनता से रिश्ता वेबडेस्क | करनाल/ जालंधर (अपन जैन): भारतीय परंपरा विवाह को पवित्र संस्कार मानती है। हमारा समाज बहुधर्मी और बहुसांस्कृतिक है। परिवार को एक सामाजिक इकाई के रूप में स्वीकार किया गया है। दो विपरीत लिंगियों के मिलन से परिवार बनता है जिसे भारतीय संस्कृति मान्यता देती है। भारत संत गौरव प्रबुद्ध मनीषी पीयूष मुनि महाराज ने कहा कि भारत के सभी धर्मसमूह विवाह को गृहस्थ जीवन का मूल तथा परिवार को एक-दूसरे का पूरक मानते हैं परंतु समलैंगिक संबंधों को विवाह की श्रेणी में रखने से भारतीय समाज की परिवार की अवधारणा तथा उसके आधारभूत ढांचे पर गंभीर प्रहार होगा जिसके दूरगामी विनाशकारी परिणाम होंगे जो वर्तमान के साथ भविष्य में भी भुगतने पड़ेंगे।
ऐसा होने के परिवार की संस्था के समक्ष प्रश्नचिन्ह खड़ा हो जाएगा और अनेक सामाजिक विसंगतियां जन्म लेंगी। समलैंगिक संबंधों को विवाह के रूप में स्वीकृति मिलने से इसका संयुक्त परिवार, विवाह, उत्तराधिकार, दत्तक अधिकार, भरण-पोषण आदि की मान्यताओं पर भी व्यापक असर पड़ेगा। माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चल रही सुनवाई समलैंगिक संबंधों को एक संस्थागत रूप में मान्यता प्रदान करने का दुष्प्रयास है जिससे सारा सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो सकता है।