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धर्म-अध्यात्म
आर्थिक तंगी से हमेशा के लिए मिलेगा छुटकारा योगिनी एकादशी पर करें ये उपाय
Apurva Srivastav
13 Jun 2023 3:50 PM GMT
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एकादशी का व्रत सभी व्रतों में विशेष माना जाता हैं जो कि हर माह में दो बार पड़ता है। अभी आषाढ़ का महीना चल रहा है और इस माह पड़ने वाली एकादशी को योगिनी एकादशी के नाम से जाना जा रहा हैं जो कि कल यानी 14 जून दिन बुधवार को पड़ रही हैं इस दिन भक्त भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करते हैं और दिनभर का उपवास रखते हैं।
मान्यता है कि ऐसा करने से प्रभु की कृपा बरसती हैं लेकिन इसी के साथ ही अगर एकादशी के दिन पूजा पाठ के बाद अनन्त स्तव: पाठ पूरी निष्ठा और विश्वास के साथ किया जाए तो भगवान अतिशीघ्र प्रसन्न होकर अपनी कृपा करते हैं और साधक को आर्थिक तंगी से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं ये चमत्कारी पाठ।
अनन्त स्तव:
येनेदं जगदखिलं धृतं विधात्रा
विश्वं यज्जठरगतं युगान्तकाले ।
यो वेदानवति तमेत्य मत्स्यरूपं
तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्थनन्तम् ॥ १॥
यो लोकानसृजदनाद्यनन्तरूपो
विश्वात्मा विगततमोरजोभिरीड्यः ।
घृत्वेमां कमठवपुमेहीं सृजन्तं
तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ २॥
यः पृथ्वीमसुरभयाद्रसातलस्था-
मुद्धर्तुं खुरनिकरक्षतासुरौघः ।
वाराहीं तनुमभजत् त्रयीनिवास-
स्तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ ३॥
हैरण्यं कुलिशदृढं पुरा नखाग्रै-
र्वक्षो यः सपदि विदारयाश्चकार ।
रह्लादप्रियहितकृन्नृसिंहरूप-
स्तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ ४॥
स्वर्लोकस्थितिकरणाय यो धरित्री
त्रेधा विक्रमितुमयाचतासुरेशम् ।
भूत्वा वामनतनुरीश्वरं सुराणां
तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ ५॥
यः क्षत्रं निहितपरश्वधेन सर्वं
छित्वा तत्क्षतजजलेन कर्म पित्र्यम् ।
चक्रे विक्रमविभवैकसम्पदीड्य-
स्तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ ६॥
यो लोकत्रयवनवह्निमीश्वराणा-
मीशानो दशवदनं रणे निहन्तुम् ।
रामो दाशरथिरभूदुदारवीर्य-
स्तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ ७॥
यः पृथ्वीमसुरभरातिभङ्गुरार्ता-
मुद्धर्तुं मुसलहलायुधो बभूव ।
कालिन्दीकर्षणदर्शितातिवीर्य-
स्तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ ८॥
कंसादींस्त्रिदशरिपूनपाचिकीर्षु-
र्यः पृथ्व्यामिह यदुनन्दनो वभूव ।
बालार्कयुतिविकसत्सरोजवक्त्रं
तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ ९॥
पाषण्डान् कलिकलुषीकृत स्वधर्मा-
निश्शेषं सपदि निराकरिष्णुरीशः ।
यः कल्की भवति नितान्तघोररूपं
तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ १०॥
। इति सुभद्राकृतः अनन्तस्तवः सम्पूर्णः ।
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Apurva Srivastav
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