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सनातन धर्म में सूर्य को साक्षात दर्शन देने वाला देवता माना गया हैं इनकी आराधना व पूजा सामाजिक सुख, मान सम्मान व करियर कारोबार में बेशुमार तरक्की दिलाती हैं। वैसे तो इनकी पूजा आराधना के लिए रविवार का दिन समर्पित हैं लेकिन भक्त इनकी साधना रोजाना भी कर सकते हैं मान्यता है कि रोजाना नियम से सूर्य भगवान को जल अर्पित करने से उनकी कृपा प्राप्त होती हैं लेकिन इसी के साथ ही अगर आप सूर्यमंडल अष्टक स्तोत्रम् का पाठ श्रद्धा और विश्वास से करते हैं।
तो सूर्यदेव अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और आपको धन दौलत व तरक्की प्रदान करते हैं आप चाहे तो इसका पाठ रोजाना भी कर सकते हैं लेकिन अगर आपके पास वक्त की कमी हैं तो आप इस पाठ को हर रविवार जरूर करें। मान्यता है कि इसका पाठ चमत्कारी परिणाम प्रदान करता हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं, सूर्यमंडल अष्टक स्तोत्रम्।
सूर्यमंडल अष्टक स्तोत्रम्—
नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषे जगत्प्रसूतिस्थितिनाश हेतवे ।
त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरञ्चि नारायण शंकरात्मने ॥ १ ॥
यन्मडलं दीप्तिकरं विशालं रत्नप्रभं तीव्रमनादिरुपम् ।
दारिद्र्यदुःखक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ २ ॥
यन्मण्डलं देवगणै: सुपूजितं विप्रैः स्तुत्यं भावमुक्तिकोविदम् ।
तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ३ ॥
यन्मण्डलं ज्ञानघनं, त्वगम्यं, त्रैलोक्यपूज्यं, त्रिगुणात्मरुपम् ।
समस्ततेजोमयदिव्यरुपं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ४ ॥
यन्मडलं गूढमतिप्रबोधं धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम् ।
यत्सर्वपापक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ५ ॥
यन्मडलं व्याधिविनाशदक्षं यदृग्यजु: सामसु सम्प्रगीतम् ।
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प्रकाशितं येन च भुर्भुव: स्व: पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ६ ॥
यन्मडलं वेदविदो वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।
यद्योगितो योगजुषां च संघाः पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ७ ॥
यन्मडलं सर्वजनेषु पूजितं ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके ।
यत्कालकल्पक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ८ ॥
यन्मडलं विश्वसृजां प्रसिद्धमुत्पत्तिरक्षाप्रलयप्रगल्भम् ।
यस्मिन् जगत् संहरतेऽखिलं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ९ ॥
यन्मडलं सर्वगतस्य विष्णोरात्मा परं धाम विशुद्ध तत्त्वम् ।
सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ १० ॥
यन्मडलं वेदविदि वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।
यन्मण्डलं वेदविदः स्मरन्ति पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ११ ॥
यन्मडलं वेदविदोपगीतं यद्योगिनां योगपथानुगम्यम् ।
तत्सर्ववेदं प्रणमामि सूर्य पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ १२ ॥
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Apurva Srivastav
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