धर्म-अध्यात्म

हर गुरुवार के दिन करें ये आसान उपाय, दूर हो जाएगी आर्थिक तंगी

Deepa Sahu
1 Sep 2021 2:06 PM GMT
हर गुरुवार के दिन करें ये आसान उपाय, दूर हो जाएगी आर्थिक तंगी
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन विधि- विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा- अर्चना भी करनी चाहिए। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से दुख- दर्द दूर हो जाते हैं और व्यक्ति का जीवन खुशियों से भर जाता है। माता लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है। मां लक्ष्मी की कृपा से आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है और जीवन सुखमय हो जाता है। आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए गुरुवार के दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना भी करें। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें और भोग भी लगाएं। माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए श्री लक्ष्मी चालीसा और श्री विष्णु चालीसा का पाठ करें। श्री लक्ष्मी चालीसा और श्री विष्णु चालीसा का पाठ करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

Shree Lakshmi Chalisa (श्री लक्ष्मी चालीसा):
॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही॥

श्री लक्ष्मी चालीसा
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदंबा सबकी तुम ही हो अवलंबा॥1॥

तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥2॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥3॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥4॥

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥5॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥6॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥7॥

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥8॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥9॥

ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥10॥

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥11॥

पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥12॥


पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥13॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥14॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥15॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥16॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥17॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥18॥

रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥19॥

॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास। जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर। मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥
Shree Vishnu Chalisa, श्री विष्णु चालीसा
दोहा

विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय।
चौपाई

नमो विष्णु भगवान खरारी।
कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी।
त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥

सुन्दर रूप मनोहर सूरत।
सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥

तन पर पीतांबर अति सोहत।
बैजन्ती माला मन मोहत॥


शंख चक्र कर गदा बिराजे।
देखत दैत्य असुर दल भाजे॥


सत्य धर्म मद लोभ न गाजे।
काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥


संतभक्त सज्जन मनरंजन।
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥


सुख उपजाय कष्ट सब भंजन।
दोष मिटाय करत जन सज्जन॥


पाप काट भव सिंधु उतारण।
कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥


करत अनेक रूप प्रभु धारण।
केवल आप भक्ति के कारण॥

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा।
तब तुम रूप राम का धारा॥


भार उतार असुर दल मारा।
रावण आदिक को संहारा॥


आप वराह रूप बनाया।
हरण्याक्ष को मार गिराया॥


धर मत्स्य तन सिंधु बनाया।
चौदह रतनन को निकलाया॥


अमिलख असुरन द्वंद मचाया।
रूप मोहनी आप दिखाया॥


देवन को अमृत पान कराया।
असुरन को छवि से बहलाया॥


कूर्म रूप धर सिंधु मझाया।
मंद्राचल गिरि तुरत उठाया॥


शंकर का तुम फन्द छुड़ाया।
भस्मासुर को रूप दिखाया॥


वेदन को जब असुर डुबाया।
कर प्रबंध उन्हें ढूँढवाया॥


मोहित बनकर खलहि नचाया।
उसही कर से भस्म कराया॥


असुर जलंधर अति बलदाई।
शंकर से उन कीन्ह लडाई॥


हार पार शिव सकल बनाई।
कीन सती से छल खल जाई॥


सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी।
बतलाई सब विपत कहानी॥


तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी।
वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥


देखत तीन दनुज शैतानी।
वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥


हो स्पर्श धर्म क्षति मानी।
हना असुर उर शिव शैतानी॥

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे।
हिरणाकुश आदिक खल मारे॥


गणिका और अजामिल तारे।
बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥


हरहु सकल संताप हमारे।
कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥


देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे।
दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥


चहत आपका सेवक दर्शन।
करहु दया अपनी मधुसूदन॥


जानूं नहीं योग्य जप पूजन।
होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥


शीलदया सन्तोष सुलक्षण।
विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण॥


करहुं आपका किस विधि पूजन।
कुमति विलोक होत दुख भीषण॥


करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण।
कौन भांति मैं करहु समर्पण॥


सुर मुनि करत सदा सेवकाई।
हर्षित रहत परम गति पाई॥


दीन दुखिन पर सदा सहाई।
निज जन जान लेव अपनाई॥


पाप दोष संताप नशाओ।
भव-बंधन से मुक्त कराओ॥


सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ।
निज चरनन का दास बनाओ॥


निगम सदा ये विनय सुनावै।
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥


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