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हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि खास मानी जाती है जो कि हर माह में एक बार पड़ती है लेकिन पितृपक्ष के अंतिम दिन पड़ने वाली अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या के नाम से जाना जा रहा है जो कि इस बार शनिवार के दिन पड़ रही है यही कारण है कि इसे शनि अमावस्या भी कहा जा रहा है इस दिन पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है।
इस साल शनि अमावस्या 14 अक्टूबर दिन शनिवार को पड़ रही है इस दिन शनि साधना भी विशेष फल प्रदान करती है ऐसे में अगर आप अपने जीवन के कष्टों से मुक्ति पाना चाहते हैं तो शनि अमावस्या के दिन कुछ उपायों को कर सकते हैं। शनिश्चरी अमावस्या तिथि पर शनि स्तोत्र का पाठ करने से करने से शनि महाराज का आशीर्वाद मिलता है जिससे सभी दुख दर्द दूर हो जाते हैं और खुशहाली में वृद्धि होती है।
शनि स्तोत्र—
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्रहराजो महाबल:।।
शनि मंत्र—
नीलाम्बरः शूलधरः किरीटी गृध्रस्थित स्त्रस्करो धनुष्टमान् |
चतुर्भुजः सूर्य सुतः प्रशान्तः सदास्तु मह्यां वरदोल्पगामी ||
शनि महामंत्र—
ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
शनि गायत्री मंत्र—
ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।
शनि दोष निवारण मंत्र—
ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम।
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात।।
ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिश्रवन्तु नः।
ऊँ शं शनैश्चराय नमः।।
स्वास्थ्य हेतु शनि मंत्र
ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिहा।
कंकटी कलही चाउथ तुरंगी महिषी अजा।।
शनैर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन् पुमान्।
दुःखानि नाश्येन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखमं।।
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