धर्म-अध्यात्म

श्राद्ध के विभिन्न प्रकार और उसका महत्व

Tara Tandi
20 Sep 2021 10:51 AM GMT
श्राद्ध के विभिन्न प्रकार और उसका महत्व
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पूर्वजों की आत्माओं की संतुष्टि के लिए श्रद्धा भाव से विधि-विधान के साथ किये गये यज्ञ को श्राद्ध कहते हैं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क|पूर्वजों की आत्माओं की संतुष्टि के लिए श्रद्धा भाव से विधि-विधान के साथ किये गये यज्ञ को श्राद्ध कहते हैं. श्राद्ध की व्यवस्था वैदिक काल से चली आ रही है. शास्त्रों में इसे श्राद्ध यज्ञ कहा गया है. श्राद्ध का उद्देश्य अपने पितरों के प्रति सम्मान करना है क्योंकि यह मनुष्य योनि अर्थात् हमारा शरीर पितरों की आत्माओं की कृपा के कारण हमें मिला है. ऐसे में पूर्वजों के ऋणों से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है. श्राद्ध की मूलभूत परिभाषा यह है कि प्रेत और पितर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाय वह श्राद्ध है.

श्राद्ध के प्रकार

मत्सय पुराण के अनुसार श्राद्ध के तीन प्रकार बताए गये हैं- नित्य, नैमित्तिक और काम्य. इनमें से नित्य श्राद्ध वे हैं जो अघ्र्य तथा आवाहन के बिना ही किसी निश्चित अवसर पर किये जाते हैं. जैसे अमावस्या के दिन या फिर अष्टका के दिन का श्राद्ध. देवताओं के लिए किया जाने वाला श्राद्ध नैमित्तिक श्राद्ध कहलाता है. यह श्राद्ध किसी ऐसे अवसर पर किया जाता है जो अनिश्चित होता है. जैसे कि यह श्राद्ध पुत्र जन्म आदि के समय किया जाता है. किसी विशेष फल के लिए जो श्राद्ध किये जाते हैं वे काम्य श्राद्ध कहलाते हैं. लोग इसे स्वर्ग, मोक्ष, संतति आदि की कामना से प्रत्येक वर्ष करते हैं.

श्राद्ध का धार्मिक महत्व

मनुष्य शरीर में स्थित आत्माओं का परस्पर शाश्वत संबंध है. इसका कारण यह है कि आत्मा परमात्मा का अंश है और आत्मा स्वरूपी भौतिक शरीरधारी मनुष्य अपने पूर्वजों आदि की आत्माओं की संतुष्टि के लिए पितृपक्ष में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है. शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में पितरों के नाम और गोत्र का उच्चारण करके मंत्रों द्वारा जो अन्न उनके लिए अर्पित किया जाता है, वह उन्हें प्राप्त हो जाता है. यदि आपके पितरों को उनके कर्म के अनुसार देव योनि प्राप्त हुई है तो वह उन्हें अमृत रूप में प्राप्त होता है. यदि उन्हें गंधर्वलोक प्राप्त हुआ है तो उन्हें भोग्य रूप में और यदि उन्हें पशु योनि प्राप्त हुई है तो उन्हें तृण रूप में और यदि सर्प योनि प्राप्त हुई है तो वायु रूप में और यदि दानव योनि प्राप्ति हुई है तो मांस रूप में और यदि प्रेत योनि प्राप्ति हुई है तो रुधिर रूप में और यदि मनुष्य योनि प्राप्ति हुई है तो उन्हें अन्न रूप में प्राप्त होता है.

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